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भाग 9

5 अगस्त 2022

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फूल तोड़ते चौबीस दिन हो गये। इतने दिनों में काम कुछ न निकला, यह बात बासमती के जी में आठ पहर खटकने लगी। कामिनीमोहन भी बेचैन हो चला था, इसलिए वह भी कभी-कभी बसमाती को जली कटी सुनाता, इससे बासमती और घबरायी। आज वह चुपचाप देवहूती के घर आयी, और सीधे उसकी कोठरी में चली गयी। वहाँ उसने देवहूती को सोया पाया, फिर क्या था, चटपट उसने अपना काम पूरा किया और वहाँ से चलती हुई।

पारबती ने बासमती को आते-जाते देख लिया था। बासमती क्यों आयी? और क्यों लगे पाँव चली गयी? इस बात का उसको बड़ा खटका हुआ। वह कई दिनों से देवहूती का रंग-ढंग देख रही थी, पर कोई बात जी में लाती न थी। क्यों जी में लाती नहीं थी? इसके लिए इस घड़ी मैं इतना ही कहता हूँ। उसके जी में कोई खटक नहीं थी-पर बासमती की आज की चाल ने उसको चौंका दिया। वह सोचने लगी, हो न हो कोई बात है। बासमती घर की मालिन है-उसके लिए कोई रोक नहीं-वह बे-अटक देवहूती के पास आ-जा सकती है-मैंने कभी उसको देवहूती के पास उठने-बैठने से नहीं रोका। फिर आज वह मेरी आँख बचा कर क्यों उसके पास गयी? और क्यों बिना मुझसे कुछ कहे-सुने यहाँ से चुपचाप चली गयी? ये बातें ऐसी हैं जिस से पाया जाता है, उसके मन में कोई चोरी है! चोर का जी आधा होता है, वह साह का सामना नहीं कर सकता। अपने मन की चोरी ही से वह इस घड़ी अपना मुँह मुझको न दिखला सकी। जिस काम को करने के लिए इस घड़ी वह यहाँ आयी थी, उस काम को करके वह मेरी ओर से बुरी थी, इसी से मेरे सामने आने का बल उसमें नहीं था। नहीं तो मेरे जी में तो कोई बात न थी। जो बुरा काम करता है, वह बस भर छिपने का पथ भी ढूँढ़ता है।

फिर सोचने लगी-देवहूती का रंग ढंग भी तो इन दिनों कुछ और हो गया है! वह इतनी अनमनी क्यों रहती है? मैं इन बातों पर दीठ नहीं डालती थी, समझती थी लड़की है, कोई बात होगी। पर यह कोई ऐसी वैसी बात नहीं है, कोई गहरी बात जान पड़ती है। नहीं तो, देवहूती को किस बात का दुख है? जो चाहती है, खाती है। जो चाहती है, पहनती है। मैं उसका मुँह देखती ही रहती हँ। एक भाई है, वह भी कभी उसको आधी बात नहीं कहता, फिर वह इतनी अनमनी क्यों? हाँ, यह मैं कह सकती हूँ वह सयानी हो गयी है! उसके दूसरे दिन हैं! पर सयानी वह आज तो नहीं हुई है-एक बरस से भी ऊपर हो गया। जब इतना दिन हो गया-और हँसी खेल ही में वह लगी रही, तो इधर दस पाँच दिन से-सयानी होने ही से वह अनमनी है, यह बात जी में नहीं समाती। फिर पड़ोस में नन्दकुमार, कामिनीकिशोर, नन्दकिशोर, देवमोहन, कामिनीमोहन सभी लड़के हैं-बात चलने पर देवहूती जैसे नन्दकुमार, नन्दकिशोर और देवमोहन नाम लेती है-वैसा बेअटक कामिनीमोहन का नाम क्यों नहीं लेती? फिर मौसेरे भाई कामिनीकिशोर को जब वह पुकारती है, तो क्या कारण है जो कामिनीमोहन का नाम उसके मुँह से निकल जाता है? और जो निकल जाता है, तो फिर अपने आप वह लजा क्यों जाती है? कोई टोकता भी तो नहीं। जब घर में कभी कोई बात कामिनीमोहन की उठती है, और देवहूती वहाँ बैठी रहती है-तो क्या कारण है जो वह इधर-उधर करने लगती है? क्यों वह वहाँ से उठ जाना चाहती है? क्यों उसकी बातें सुनने में उसको लाज लगती है? कामिनीमोहन का साथ बहुत दिनों से हमलोगों का है, ऐसे ही सदा उसकी बातें घर में होती आयी हैं, पर पहले देवहूती की ऐसी दशा तो कभी नहीं देखी गयी!! फिर थोड़े दिनों से उस के जी का ढंग ऐसा क्यों हो गया?

अब की बार पारबती का मुँह गम्भीर हो गया, वह फिर सोचने लगी-देवहूती का ढंग था, वह चार लड़कियों को लेकर सदा खेला करती, किसी को सर गूंधना, किसी को बेलबूटे बनाना, किसी को गुड़िया बनाना सिखलाती-किसी को माला गूँथना, किसी को फूल के गहने बनाना, किसी को पोत पिरोना बतलाती। किसी को छेड़ती-किसी को प्यार करती। पर आजकल ये सब बातें उसकी छूट सी गयी हैं-अकेले रहना उसको अच्छा लगता है-कोठे पर, कभी-कभी अपनी कोठरी में चुपचाप बैठी न जाने वह क्या सोचा करती है। दो, चार दिन से तो उसकी यह गत है-पास ही बैठी रहती है-और पुकारने पर कभी-कभी बोलती भी नहीं। सच्ची बात यह है-उसका जी किसी ओर खिंचा हुआ है-जब वहाँ से हटे तब तो दूसरी ओर लगे-किस ओर उसका जी खिंचा है-अब यह समझने को नहीं है-सब बात भली-भाँति समझ में आ गयी। पर इसमें चूक किसकी है? हमारी! जो अपने पति की बात नहीं मानती, उसका भला कभी नहीं होता। पति ने कहा था, जिस घर में ओझा का पाँव पड़ा, वही घर चौपट हुआ। फिर मैं क्यों उनकी बात भूल गयी, क्यों अपने घर में ओझा को बुलाया, जो बुलाया, तो अब भुगतेगा कौन?

पारबती ने धीरे-धीरे सब समझा, कुछ घबरायी, पीछे सम्हल गयी, सोचा घबरा कर क्या होगा, यह घबराने का समय नहीं है, जैसा रंग ढंग देखने में आता है, उससे बात अभी बहुत बिगड़ी नहीं पायी जाती, अभी बिगड़ने के लच्छन ही देखे जाते हैं, इस लिए घबराने से बिगड़ती हुई बात के बनाने का जतन करना अच्छा है। पारबती ने सोच कर ठीक किया, चाहे जो हो अब, आज से देवहूती को फूल तोड़ने के लिए न जाने दूँगी, इतना करने ही से सब झंझट दूर होगा। स्त्री कितना ही जीवट करे, पर देवी देवता की बातों में उसका जीवट काम नहीं करता। देवकिशोर अब तक भली-भाँति अच्छा भी नहीं हुआ था, इसलिए ठीक करने को उसने ठीक तो किया, पर थोड़े ही पीछे उसका जी फिर चंचल हो गया, उसने सोचा, देवी की पूजा को अधूरा छोड़ना ठीक नहीं; जैसे हो छ: दिन इस काम को और करना होगा। तो क्या बासमती भी पहले की भाँति साथ रहेगी? अब उसके जी में यह बात उठी। उसने सोचकर ठीक किया, हाँ! बासमती भी साथ रहेगी, जो देखने में हित बनी है, उससे बिगाड़ा क्यों किया जाय! न जाने वह क्या सोचे, और क्या करे, यह समय उससे बिगाड़ करने का नहीं है। फिर सुधार क्या हुआ, वे ही सब बातें तो हुईं-अब यह विचार उसको सताने लगा। पर इस घड़ी सर उसका चकरा रहा था, और जो अड़चनें सुधार में आन पड़ी थीं, वे सहज न थीं, इसलिए विचार के लिए दूसरा समय ठीक करके वह घर के दूसरे काम में लग गयी।

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रचनाएँ
अधखिला फूल
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अधखिला फूल "अधखिला फूला उपाध्याय जी का दूसरा सामाजिक उपन्यास है है देवहूती एक विवाहित स्वी है । उसका पति देवस्वरूप संसार से विरक्त रहते के कारण कहीं बाहर चला जाता है । कहने की आवश्यकता नहीं कि आज के पाठक को यह भाषा कुछ कृत्रिम-सी लगेगी । सिर भी ऐसा नहीं है कि वह इस रचना में रस न ले सके ।
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अधलिखा फूल भाग 1

5 अगस्त 2022
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वैशाख का महीना, दो घड़ी रात बीत गयी है। चमकीले तारें चारों ओर आकाश में फैले हुए हैं, दूज का बाल सा पतला चाँद, पश्चिम ओर डूब रहा है, अंधियाला बढ़ता जाता है, ज्यों-ज्यों अंधियाला बढ़ता है, तारों की चमक

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भाग 2

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जिस खेत में यह टूटा हुआ तारा गिरा, उसमें देखते-ही-देखते एक भीड़ सी लग गयी, लोग पर लोग चले आते थे, और सब यही चाहते थे, किसी भाँत भीड़ चीरकर उस तारे तक पहुँचें, पर इतने लोग वहाँ इकट्ठे हो गये थे, जिससे

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भाग 3

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एक बहुत ही सजा हुआ घर है, भीतों पर एक-से-एक अच्छे बेल-बूटे बने हुए हैं। ठौर-ठौर भाँति-भाँति के खिलौने रक्खे हैं, बैठकी और हांड़ियों में मोमबत्तियाँ जल रही हैं, बड़ा उँजाला है, बीच में एक पलँग बिछा हुआ

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भाग 4

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चाँद कैसा सुन्दर है, उसकी छटा कैसी निराली है, उसकी शीतल किरणें कैसी प्यारी लगती हैं! जब नीले आकाश में चारों ओर जोति फैला कर वह छवि के साथ रस की वर्षा सी करने लगता है, उस घड़ी उसको देखकर कौन पागल नहीं

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भाग 5

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चाँद कैसा सुन्दर है, उसकी छटा कैसी निराली है, उसकी शीतल किरणें कैसी प्यारी लगती हैं! जब नीले आकाश में चारों ओर जोति फैला कर वह छवि के साथ रस की वर्षा सी करने लगता है, उस घड़ी उसको देखकर कौन पागल नहीं

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भाग 6

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बासमती जाने से कुछ ही पीछे हरलाल को ले कर लौट आयी। हरलाल छड़ी से टटोल-टटोल कर पाँव रखते हुए घर में आया। उसके आते ही पारबती और देवहूती वहाँ से हटकर कुछ आड़ में बैठ गयीं, पर पड़ोस की दोनों स्त्रियों पहल

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भाग 7

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भोर के सूरज की सुनहली किरणें धीरे-धीरे आकाश में फैल रही हैं, पेड़ों की पत्तियों को सुनहला बना रही हैं, और पास के पोखरे के जल में धीरे-धीरे आकर उतर रही हैं। चारों ओर किरणों का ही जमावट है, छतों पर, मुड

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भाग 8

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चमकता हुआ सूरज पश्चिम ओर आकाश में धीरे-धीरे डूब रहा है। धीरे-ही-धीरे उसका चमकीला उजला रंग लाल हो रहा है। नीले आकाश में हलके लाल बादल चारों ओर छूट रहे हैं। और पहाड़ की ऊँची उजली चोटियों पर एक फीकी लाल

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भाग 9

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फूल तोड़ते चौबीस दिन हो गये। इतने दिनों में काम कुछ न निकला, यह बात बासमती के जी में आठ पहर खटकने लगी। कामिनीमोहन भी बेचैन हो चला था, इसलिए वह भी कभी-कभी बसमाती को जली कटी सुनाता, इससे बासमती और घबराय

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भाग 10

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हमारे हरमोहन पाण्डे इसी ढंग के लोग हैं-होनहार के भरोसे बाप का कमाया लाखों रुपया उड़ा चुके हैं। बीसों गाँव पास थे, पर एक-एक करके सब बिक चुके हैं। अब तक रहने का घर बचा था। आज उससे भी हाथ धोना चाहते हैं।

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भाग 11

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चारों ओर आग बरस रही है-लू और लपट के मारे मुँह निकालना दूभर है-सूरज बीच आकाश में खड़ा जलते अंगारे उगिल रहा है और चिलचिलाती धूप की चपेटों से पेड़ तक का पत्ता पानी होता है। छर्रों की भाँत धूल के छोटे-छोट

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भाग 12

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देवहूती और उसकी मौसी के घर के ठीक पीछे भीतों से घिरी हुई एक छोटी सी फुलवारी है। भाँत-भाँत के फूल के पौधे इसमें लगे हुए हैं, चारों ओर बड़ी-बड़ी क्यारियाँ हैं, एक-एक क्यारी में एक-एक फूल है-फुलवारी का स

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भाग 13

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पहाड़ों में जाकर नदियों को देखो, दूर तक कहीं उनका कुछ चिह्न नहीं मिलता। आगे बढ़ने पर थोड़ा सा पानी सोते की भाँति झिर झिर बहता हुआ देख पड़ता है और आगे बढ़ने पर इसी की हम एक पतली धार पाते हैं। यही पतली

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भाग 14

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कामिनीमोहन की फुलवारी के चारों ओर जो पक्की भीत है उसमें से उत्तरवाली भीत में एक छोटी सी खिड़की है। यह खिड़की बाहर की ओर ठीक धरती से मिली हुई है, पर भीतर की ओर फुलवारी की धरती से कुछ ऊँचाई पर है। खिड़क

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भाग 15

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>बड़ी गाढ़ी अंधियाली छायी है, ज्यों-ज्यों आकाश में बादलों का जमघट बढ़ता है, अंधियाली और गाढ़ी होती है। गाढ़ापन बढ़ते-बढ़ते ठीक काजल के रंग का हुआ, गाढ़ी अंधियाली और गहरी हुई, इस पर अमावस, आधी रात और स

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भाग 16

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अपनी फुलवारी में टहलते हुए कामिनीमोहन ने पास खड़ी हुई बासमती से कहा- बासमती-क्या मैंने कोई आपके साथ चाल की बात की है? आपके होठों पर आज वह हँसी नहीं है, आँखें डबडबायी हुई हैं, मुँह बहुत ही उतरा हुआ है

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भाग 17

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आज भादों सुदी तीज है, दिन का चौथा पहर बीत रहा है, स्त्रियों के मुँह में अब तक न एक दाना अन्न गया, न एक बूँद पानी पड़ा, पर वह वैसी ही फुरतीली हैं, काम काज करने में उनका वही चाव है, दूसरे दिन कुछ ढिलाई

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भाग 18

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आज भादों सुदी तीज है, दिन का चौथा पहर बीत रहा है, स्त्रियों के मुँह में अब तक न एक दाना अन्न गया, न एक बूँद पानी पड़ा, पर वह वैसी ही फुरतीली हैं, काम काज करने में उनका वही चाव है, दूसरे दिन कुछ ढिलाई

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भाग 19

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एक बहुत ही घना बन है, आकाश से बातें करनेवाले ऊँचे-ऊँचे पेड़ चारों ओर खड़े हैं-दूर तक डालियों से डालियाँ और पत्तियों से पत्तियाँ मिलती हुई चली गयी हैं। जब पवन चलती है, और पत्तियाँ हिलने लगती हैं, उस घड

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भाग 20

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बन में जहाँ जाकर खोर लोप होती थी, वहाँ के पेड़ बहुत घने नहीं थे। डालियों के बहुतायत से फैले रहने के कारण, देखने में पथ अपैठ जान पड़ता, पर थोड़ा सा हाथ-पाँव हिलाकर चलने से बन के भीतर सभी घुस सकता। पथ य

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भाग 21

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बासमती के चले जाने पर देवहूती अपनी कोठरी में से निकली, कुछ घड़ी आँगन में टहलती रही, फिर डयोढ़ी में आयी। वहाँ पहुँच कर उसने देखा, बासमती पहरे के भीलों से बातचीत कर रही है। यह देखकर वह किवाड़ों तक आयी-औ

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भाग 22

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>कामिनीमोहन की भी आज ठीक यही दशा है-वह खाते पीते, सोते जागते, भोले-भाले मुखड़े का ध्यान करता, जहाँ रसीली बड़ी-बड़ी आँखें देखता वहीं लट्टू होता, गोरे-गोरे हाथों में पतली-पतली चूरियाँ उसको बावला बनातीं,

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भाग 23

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एक चूकता है-एक की बन आती है। एक मरता है-एक के भाग्य जागते हैं। एक गिरता है-एक उठता है। एक बिगड़ता है-एक बनता है। एक ओर सूरज तेज को खोकर पश्चिम ओर डूबता है-दूसरी ओर चाँद हँसते हुए पूर्व ओर आकाश में निक

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भाग 24

5 अगस्त 2022
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आज तक मरकर कोई नहीं लौटा, पर जिसको हम मरा समझते हैं, उसका जीते जागते रहकर फिर मिल जाना कोई नई बात नहीं है। ऐसे अवसर पर जो आनन्द होता है-वह उस आनन्द से घटकर नहीं कहा जा सकता-जो एक मरे हुए जन के लौट आने

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भाग 25

5 अगस्त 2022
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बासमती के मारे जाने पर दो चार दिन गाँव में बड़ी हलचल रही, थाने के लोगों ने आकर कितनों को पकड़ा, मारनेवाले को ढूँढ़ निकालने के लिए कोई बात उठा न रखी, पर बासमती से गाँववालों का जी बहुत ही जला हुआ था, इस

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भाग 26

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आज दस बरस पीछे हम फिर बंसनगर में चलते हैं। पौ फट रहा है, दिशाएँ उजली हो रही हैं, और आकाश के तारे एक-एक कर के डूब रहे हैं। सूरज अभी नहीं निकला है, पर लाली चारों ओर दिशाओं में फैल गयी है। कहीं-कहीं पेड़

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