"चलो, प्लास्टिक का पहाड़ बनाएं "
चलो, प्लास्टिक का पहाड़ बनाएँ।
जिसपर फलदार, फूलदार और पत्तिदार वृक्ष लगाएँ।
रंग बिरंगी पुष्प देवालय पर चढ़ाएँ, बाजार सजाएँ, व्यापार बढ़ाएँ।
देश के विकास के लिए कुछ तो गुल खिलायें।।
प्लास्टिक के पहाड़ चढ़ें, दुर्गम तीर्थ स्थलों के दर्शन कर प्रभु को रिझाएँ।
ग्लेशियर स्वतः निर्मित होगा, पिघलायें, नदियों को समंदर से मिलायें।
न कीचड़ लगे न कंकड़ धँसे, जीवन को अति आधुनिक बनाएँ।।
कागज की पुरानी नाव छोड प्लास्टिक के जलयान दौड़ाएँ।
न सड़े न गले ऐसे कीमती धातु का जग में परचम लहरायें।
धर्म का ध्वज लाहरायें, खुद को मोक्ष के करीब लाएँ।।
पी पी ई को पहनें पहनायें, अछूत (कोरोना रोगी) को गले लगायें।
दो गज की दूरी बहुत जरुरी, ईश्वर अल्ला को करीब लाएं।
महँगी खेती पस्त किसान प्लास्टिक की जयकार लगायें।।
चलो, प्लास्टिक का पहाड़ बनाएँ।।
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी