"कुंडलिया"
आए दिन अब हो रहे, झगड़े और विवाद।
रिश्ते नाते लड़ रहे, बजा बजाकर नाद।।
बजा बजाकर नाद, खाद भरपूर छिड़कते।
पहुँचाते हैं चोट, हाथ औ पैर पटकते।।
गौतम घटी जमीन, नापते दायें बायें।
बढी तेज रफ्तार, कनक चढि कलयुग आए।।
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी