19 जून 2022
रविवार
समय 11:45 रात
मेरी प्यारी सहेली,
बारिश के कारण मौसम खुशनुमा हो गया है। कई बार तो मन करता है बारिश में भीग कर समोसे खाए। बड़ा ही मजा आता है।
आज सुहाने मौसम का मजा ले रही थी कि दिमाग से निकल ही गया गैस पर दूध रखा है। बस फिर तो मजे ही मजे थे। दूध भी उस चंचल बच्चे की तरह बाहर निकल कर अठखेलियां करने लगी। जैसे मां को सामने ना देख बच्चा मिट्टी खाने में व्यस्त हो जाता है। वैसे मिट्टी तो श्रीकृष्ण ने भी खाई थी। यशोदा माता भी दूसरी मांओं की तरह परेशान होती हुई दौड़ी-दौड़ी अपने लल्ला के पास आई।
मुंह खोलो लल्ला अपना, पर श्रीकृष्ण भी थे नटखट नंद किशोर। तुरंत मुंह खोल कर उन्होंने पूरा ब्रह्मांड अपने मुंह में मां को दिखा दिया। मां को चाहे भान हो कि उसका पुत्र भगवान है पर मां तो मां ही होती है ना। वह तो नाना प्रकार की चिंताओं में मग्न सिर्फ अपने पुत्र के कल्याण की ही चिंता करती रहती है।
मैं भी कहां से कहां चली गई? दरअसल मौसम सुहाना है क्या करें मन एक जगह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। कई बार मन करता है दौड़ कर पार्क जाकर झूले में बैठ जाए तो वहीं दूसरी तरफ सड़क पर चलते हुए आंखें बंद कर दोनों हाथों को फैलाकर गोल गोल घूमते हुए आगे बढ़े। वैसे सखी ऐसे सुहाने मौसम में ना भीगे तो कैसे काम चले? चाहे तबीयत ही खराब क्यों ना हो जाए।
बारिश के इस मौसम में गमलों की भी सार संभाल उपयुक्त रहती है। बारिश आई नहीं कि मैं भी तेजी से दौड़ कर गमलों को ठीक करने में जुट चुकी हूं। शायद इसी वजह से पूरे बदन में दर्द होने लगा है। बताया नहीं है अभी किसी को। बताने पर दो बोल मीठे बोलने की जगह मुझे ही डांट देंगे। तो फिर ऐसे में बताने का क्या फायदा?
शुभ रात्रि