7 जून 2022
मंगलवार
समय 11:05 रात
मेरी प्यारी सहेली,
कई बार ना चाहते हुए भी हम ऐसी अनेकों बातों पर मौन रह जाते हैं जिन बातों के लिए हमारा मन शय नहीं देता।
पर फिर भी हम सामाजिक होने के नाते, अपने परिवार को बचाने के नाते मौन धारण कर लेते हैं। ना चाहते हुए भी साबुत मक्खी हमें निगलनी पड़ती है।
कहा जाता है अन्याय करने वाले से अन्याय को सहने वाला भी उतना ही दोषी होता है जितना कि अन्याय करने वाला। लेकिन ना चाहते हुए भी कई बार अपनी स्वीकृति गलत कार्यों के लिए भी देनी ही पड़ती है।
एक स्त्री होने के नाते ससुराल में आने के बाद न जाने कितनी ही तरह के समझौते करने होते हैं।
शायद उस समय उचित अनुचित का भान होने के बावजूद कुछ नहीं कर पाते। दिल अजीबो-गरीब कशमकश में जूझता रहता है।
एक तरफ गर्मी में जहां जान से निकली जा रही है ऐसे मौसम में भी चाय पीने वालों को समय दर समय चाय की तलब लग ही जाती है। इस समय चाय पीने वाले ही दरअसल चाय के शौकीन माने जा सकते हैं।
नहाने से तरावट आ रही है पर बाथरूम से बाहर निकलते ही अपने आपको भट्टी में झोंकने जैसे हालात लगने लगते है।
सखी शायद शब्द इन में कुछ परिवर्तन करने की वजह से मैं अब साथी लेखकों के लेख नहीं पढ़ पा रही हूं। क्या करूं ताकि मैं साथी लेखकों द्वारा लिखे गए लेख पढ़ पाऊं समझ ही नहीं पा रही। मेरा मार्गदर्शन करो।
अभी के लिए इतना ही।
शुभ रात्रि