चौपाई आधारित गीत......
पथ गरल धरे लिपटे भुजंग, खिले वादियों में नए रंग
फुफकार रहे खुद को मतंग, मतिमंद चंद बिगड़े मलंग......
प्रीति प्रकृति से यूं नहि होती
झरता झरनों से रस मोती
शनै शनै ऋतु शहद बनाए
कण पराग मधुमखी सजोती॥
नए तरुन तके तिरछे ढंग, मानों घाँटी में उगी भंग
पथ गरल धरे लिपटे भुजंग, खिले वादियों में नए रंग.......
मनभाती जन चाह जगाती
कलकल कलरव गंग सुहाती
नीड़ खीड़ पर्वत पय झीलें
सप्तरंगी नभ धनुष सजाती॥
उत्साह उजाड़ रहे सलंग, घर बार पछाड़ रहे धड़ंग
पथ गरल धरे लिपटे भुजंग, खिले वादियों में नए रंग......
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी