महिला दिवस को समर्पित
"छंद मुक्त काव्य"
महिला का मन
सुंदर मधुवन
तिरछी चितवन
नख-सिख कोमलता फूलों सी
सर्वस्व त्याग करने वाली
काँटों के बिच रह मुसुकाए
मानो मधुमास फाग गाए।।
महिला सप्तरंगी वर्णी है
प्रति रंग खिलाती तरुणी है
गृहस्त नाव वैतरणी है
कल-कल बहती है नदियों सी
हर बूँद जतन करने वाली
नैनों से सागर छलकाए
बिनु पानी पपीहा पी गाए।।
शक्ति-भक्ति नभ तारों सी
विचलित कर देती पारो सी
राधा के शुद्ध विचारों सी
बंसी को सौत बनाने वाली
ज्ञानी उद्धव को भरमाए
मथुरा गृह जीवन जी जाए।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी