"चित्रलेखा"
"कुंडलिया"
बचपन था जब बाग में, तोते पकड़े ढ़ेर।
अब तो जंगल में कहाँ, मोटे तगड़े शेर।।
मोटे तगड़े शेर, जी रहे अब पिजरे में।
करते चतुर शिकार, नजर रहती गजरे में।।
कह गौतम कविराय, उमर जब आती पचपन।
मलते रहते हाथ, लौट आता क्या बचपन।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी