“बाल गीत”, छंद- आल्हा
चूँ-चूँ करती चिड़िया रानी, डाली पर करती चकचार
कौन ले गया निरा घोंसला, छीन गया उसका संसार
लटक रहें डाली पर उसके, हैं चूँजे उसकी पहचान
झूल रहे थे दृश्य मनोरम, हों मानों सावनी बहार॥
रोज रोज उड़ वह जाती थी, दाना चुँगती दूर दरार
बच्चों को फुसलाते जाती, मत डरना है अपना द्वार
लाऊंगी पकवान पका के, तुमहिं खिलाऊँ जतन दुलार
रखना धीरज बच्चे मेरे मत उड़ना डगरी अंझार॥
दाना लाई हूँ चुँग लेना, मत करना मानव व्यवहार
खुश थे चूँजे नन्हे नटखट, कभी नहीं करते तकरार
सहसा आया अंधड एका, चिड़िया दौडी लेकर हेर
बिखरे टूट घोंसले डाली, चूँजे हों गए बेर-बिखेर॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी