आज का विषय : निरंतरता ही सफलता की कुंजी है |
कहानी के रूप में.....
आज शुक्ला जी बेटा चार साल बाद घर वापस आ रहा है उनका बेटा विदेश में अपने कारोबार को स्थापित करने गया था और आज उनका बेटा (सार्थक) एक जाना माना कारोबारी है, उसका नाम देश विशेष की प्रसिद्ध हस्थियों में लिया जाता है | शुक्ला जी बैठक में बैठे हैं और बाहर की तरफ नज़र गड़ाए हुए हैं |
शुक्ला जी की पत्नी (मालती): आ तो जाना था अब तक उसको, पता नहीं ! अभी तक क्यों नहीं आया |
शुक्ला जी: हो जाता है कभी कभी !आजकल रास्ते में ट्रैफिक बहुत होता है शायद इसलिए देरी हो रही है|
मालती: आज हमारा बेटा पूरे चार साल बाद वापस आ रहा है पता नहीं अब कैसा दिखता होगा, कहीं दुबला पतला तो नहीं हुआ हो | मैंने आपसे बोला था मत भेजो उसको विदेश यहीं कर लेता कुछ न कुछ उतनी काबिलियत है उसमें, लेकिन आपने मेरी एक ना सुनी और भेज दिया दूर |
शुक्ला जी: तुम अब भी मुझे ही गलत समझती हो,तुमको लगता है कि मुझे उस पर दया नहीं आती | लेकिन सच में ऐसा कुछ भी नहीं है मेरा भी मन करता था उसके साथ रहूँ, उसको अपनों से दूर न करूँ |
मालती: हाँ हाँ आपने ही दूर किया था | जब वो छोटा था अपनी हर क्लास में अव्वल आता था लेकिन आपने कभी उसकी खुलकर तारीफ़ नहीं की हमेशा ये कहकर टाल दिया की अभी तुमको स्कूल में टॉप करना बाकी है | सार्थक मेरे पास आकर हमेशा यही कहता था कि पापा को मेरी कमियाँ की क्यों दिखती है?
शुक्ला जी: लेकिन मेरे ऐसा बोलने पर ही तो उसने स्कूल में टॉप करके दिखाया था |
मालती: फिर भी आपने उसको ये कह दिया था कि शहर के बेस्ट कॉलेज की प्रवेश परीक्षा देकर प्रवेश लेना अभी बाकी है | ये क्या बात हुई आप बताओ उसको आपने टॉप आने की ख़ुशी तक मनाने नहीं दी | ये तो आपने उस पर अत्याचार जैसा कर दिया था |
शुक्ला जी: अरे मालती ! जब उसने कॉलेज की डिग्री पूरी की थी तब सबसे पहले उसने ये खबर मुझको ही दी थी | क्यूंकि वो तब तक समझ गया था की उसके पापा कभी गलत नहीं थे |
मालती: नहीं जी ऐसा नहीं था तब तक सार्थक को आपके इस स्वभाव की आदत हो गयी थी | पता है आपको मुझे हमेशा यही डर सताता था कहीं आपकी इच्छा पूरी करने के दबाव में कहीं वो कुछ गलत कदम न उठा ले | लेकिन आपको क्या ? आपने तो कभी उसके मन की इच्छा तो पूछी ही नहीं |
शुक्ला जी: मालती तुमको क्या लगता है, मै स्वार्थी हूँ? मैंने जो कुछ भी किया उसके अच्छे भविष्य के लिए किया | और तुम अब गुस्सा मत करो वरना सार्थक क्या सोचेगा कि आज के दिन भी मै तुमसे लड़ा हूँ |
मालती: (गुस्से में) हाँ, आखिर उसको भी तो पता चले |
इतने में सार्थक घर आ जाता है, और मालती नंगे पैर दौड़ती हुई उसको लेने के लिए बाहर के प्रमुख द्वार तक पहुँच जाती है | सार्थक माँ को गले लगाकर भावुक हो जाता है | तभी पीछे से आवाज आती है " अरे हम भी लाइन में हैं| " सार्थक पीछे मुड़कर देखता है उसके पापा आये हैं वो उन्हें देखकर खुद को रोक नहीं पाया और गले से लग जाता है |
शुक्ला जी: ( पीठ थपथपाते हुए) चलो अंदर अब क्या यही रहने का इरादा है |
मालती: इनका बस चले तो तुमको यहीं रोक देंगे |
सार्थक: माँ ऐसा क्यों बोल रही हो ? पापा का वो मतलब नहीं था |
शुक्ला जी : ( सार्थक का हाथ पकड़कर उससे धीरे से बोले) तेरी मम्मी आज मुझ पर गुस्सा है | तू अंदर चल वरना आज खाना बाहर भी मिल सकता है |
सारे घर के अंदर आकर बैठक में बैठते हैं
सार्थक: माँ क्या हुआ है तुमको क्यों पापा से नाराज़ हो ?
मालती : अपने पापा से ही पूछ लो |
शुक्ला जी : अरे ! अब तुम खुद ही बताओ क्या मैंने कभी तुम्हारे ऊपर अपनी इच्छाएँ थोपी हैं या कभी तुम्हारी इच्छाओं को दबाया है क्यूकी तुम्हारी माँ को ऐसा लगता है कि मैंने कभी तुम्हारी सफलता की तारीफ तुमसे नहीं की |
सार्थक: माँ, ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा आप सोच रही हो, पता है आपको! अगर मै पापा की जगह होता तो मै भी शायद ऐसा ही करता | पापा भले ही कभी मुझे मेरी सफलता पर शाबाशी न देते हों लेकिन कभी ये भी नहीं जताया की मै किसी से कम हूँ उनकी नज़र में मै हमेशा सबसे काबिल ही रहा हूँ तभी तो उन्होंने हमेशा मुझे ये जताया की तुम और काबिल हो |
मालती : इन्होने कभी तुमसे पूछा की तुम क्या चाहते हो तुमको परिवार छोड़कर जाना है या नहीं ?
सार्थक: यकीन नहीं होता पापा आपने अब तक माँ को नहीं बताया कि विदेश जाने की बात मैंने आपसे कही थी | माँ मै आपसे नहीं कह पाया था की मुझे विदेश जाना है क्यूकि मुझे पता था आप नहीं मानोगी इसलिए मैंने पापा से अपने दिल की बात कही थी और उन्होंने अब तक इस बात को अपना फैसला बताकर तुम्हारी नाराज़गी झेलते रहे |
मालती : तुम दोनों के सफल होने की कोशिश में मै कितने साल अपनों के लिए तरसती रही |
सार्थक: माँ अगर पापा मेरी तारीफ स्कूल में अव्वल आने पर ही कर देते तो मै उसको ही अपनी सफलता मान लेता लेकिन पापा हमेशा आगे और आगे बढ़ने के लिए मुझे प्रेरित करते आ रहे हैं | पापा की सोच हमेशा से मुझे निरन्तर आगे बढ़ते देखने की रही है और इसलिए आज भी मै उनकी नज़रों में सफल नहीं हूँ और अब तो मै भी यही मानता हूँ |
शुक्ला जी :( मज़ाकिया भाव में) छोड़ो ये सब बात,मालती अब मुँह मत फुलाओ ,अरे तुम खाना कब दोगी, मुझको और सार्थक को भूख लग रही है
मालती : (नखरीले भाव में) हाँ मै ही तो मुँह फुलाती हूँ अगर ऐसे बोलोगे तो खाना नहीं मिलेगा |
सार्थक: माँ खाना ला दो , बहुत तेज भूख लग रही है |
मालती : अच्छा अच्छा खाना लगा रही हूँ दोनों आकर खाना खाओ |
शुक्ला जी : सार्थक, बेटा उद्योगपति तो तुम बन गए हो अब आगे का क्या करना है?
सार्थक: पापा, आपसे ही सीखा है कि " दौड़ अभी बाकी है" |
शुक्ला जी : यही उम्मीद है तुमसे |