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संगिनी

21 अक्टूबर 2024

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नोट: कहानी उस समय पर आधारित है जब सती प्रथा प्रचलित थी


एक छोटे से गांव में एक हृदयविदारक दृश्य उभर रहा था। सात साल की छोटी सी बच्ची, जिसके सिर से बाल हटाकर उसे विधवा घोषित कर दिया गया था,समाज के ठेकेदारों के बीच असहाय खड़ी थी। उसका मासूम चेहरा और खाली आंखें उस समाज की बेदर्दी को बयां कर रही थीं, जो उसे उसकी उम्र का भी एहसास नहीं होने दे रहा था।

वह बच्ची 'रमा' थी, जिसे छोटी उम्र में ही गांव के सबसे धनाढ्य परिवार के बेटे से ब्याह दिया गया था। विवाह के बाद कुछ ही महीने बीते थे कि उसके पति की अकस्मात मृत्यु हो गई। समाज का नियम था कि पति की मृत्यु के साथ उसकी संगिनी को भी सती होना पड़ता था, चाहे वह कितनी ही छोटी क्यों न हो। रमा को "मैं तेरी संगिनी हूं," ये शब्द अब उसे अभिशाप लगने लगे थे।

गांव के लोग, धर्म और समाज की आड़ लेकर, रमा के सती दहन की तैयारी कर रहे थे। चारों ओर ढोल-नगाड़ों की आवाज और शोरगुल था,सूरज की आखिरी किरणें आसमान में हल्की सी नारंगी रोशनी बिखेर रही थीं, लेकिन रमा की दुनिया में अंधेरा घिर चुका था। रमा हवन कुंड के सामने ज़मीन पर बैठी थी, उसकी आंखें लाल और सूजी हुई थीं, जैसे कई दिनों से रो रही हो। उसके सिर के बाल मुंड दिए गए थे, अब उसका सिर नंगा था—सभी उसके चारों ओर बैठे लोग उसकी ओर देख रहे थे, लेकिन किसी की निगाहों में उसके लिए सहानुभूति नहीं थी। उसके नन्हे हाथों की कलाई पर टूटी हुई चूड़ियों के गहरे खरोंचें थे, जो उसे उसके बिछड़े पति की याद दिला रही थीं, एक ऐसा पति जिसे उसने ठीक से कभी जाना भी नहीं था।

सफेद सूती साड़ी उसके छोटे से शरीर पर बेमेल लग रही थी, वह उसे ठीक से संभाल भी नहीं पा रही थी। साड़ी बार-बार उसके कंधों से खिसक रही थी, और वह कांपते हाथों से उसे संभालने की नाकाम कोशिश कर रही थी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, जैसे हर धड़कन के साथ उसकी मौत करीब आ रही हो। लेकिन एक स्त्री थी, जो इस अन्याय के खिलाफ अकेली खड़ी थी—रमा की सास, 'गंगा बाई'। गंगा बाई अपने बेटे की मौत से टूटी जरूर थी, लेकिन वह जानती थी कि उसकी मासूम बहू को इस क्रूर प्रथा की बलि चढ़ाना घोर अन्याय होगा। उसने ठान लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह रमा को इस दुष्चक्र से बचाएगी। रमा अपनी छोटी-छोटी उंगलियों से गंगा बाई के पल्लू को कसकर पकड़ चुकी थीं, मानो वह उसके जीवन की आखिरी उम्मीद हो।
रमा के अंदर का डर अब चरम पर था। उसके दिल और दिमाग में घबराहट और असमंजस की एक ऐसी जंग चल रही थी जिसे वह समझ भी नहीं पा रही थी। वह एक सात साल की मासूम बच्ची थी, जिसने अभी तक दुनिया को सही से देखा भी नहीं था, और अब उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि यह सारा हवन और तैयारी किसलिए है। उसे सिखाया गया था कि पति का साथ निभाना ही धर्म है, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या एक साथ मौत के आगोश में समाना भी इसी धर्म का हिस्सा है?

उसके अंदर एक अजीब सा खालीपन था। मन में एक हलचल थी, लेकिन उसे समझ नहीं आ रही थी कि वह किससे मदद मांगे। हर जगह उसे चेहरे नजर आ रहे थे, लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं बढ़ रहा था। उसे अपने चारों ओर बैठे लोगों की नजरों में एक खतरनाक इंतजार दिखाई दे रहा था—उसे सती होने के लिए तैयार किया जा रहा था, और वह खुद को एक जीती-जागती मोमबत्ती की तरह महसूस कर रही थी, जिसे चिता की आग में पिघल जाना था।

रमा (अपने मन में सोचते हुए):
"मुझे यहाँ से भागना है, पर कैसे? माँ कहती है, पति के बिना औरत का जीवन अधूरा है, तो क्या मैं भी अधूरी रह जाऊंगी? पर मैं तो अभी बच्ची हूँ, मुझे तो ये भी नहीं पता कि पति क्या होता है... और क्या मुझे भी मर जाना पड़ेगा?"

रमा के मन में लगातार सवाल उठ रहे थे, लेकिन किसी सवाल का कोई जवाब नहीं था। वह इतनी डरी हुई थी कि अब उसकी आवाज भी निकलना बंद हो गई थी। उसकी सांसें तेज हो रही थीं, और घबराहट से उसकी छोटी सी छाती बार-बार ऊपर नीचे हो रही थी। उसकी आंखें हवन कुंड की आग पर टिकी हुई थीं, और हर पल उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे यह आग उसे अपनी चिता की आग में बदलने वाली है। उसकी छोटी-छोटी आँखों में अनगिनत सवाल थे। वह अपने नन्हे हाथों से बार-बार अपनी कलाई को सहला रही थी, डर के मारे अपनी सास गंगा बाई को कसकर पकड़ लेती। उसकी सांसें तेज़ चल रही थीं, और आंखों में सती होने का भय साफ झलक रहा था।

हवन के चारों ओर बैठे समाज के लोग, पुरोहित, और गाँव के मुखिया मंत्रोच्चार कर रहे थे। रमा का दिल धड़क रहा था, मानो कोई तूफान उसके भीतर मच रहा हो। लेकिन रमा की मासूमियत से परे कोई भी उसकी पीड़ा को समझने को तैयार नहीं था। सभी मानते थे कि सती होने से वह अपने पति के साथ अमर हो जाएगी, और समाज में उसका सम्मान बढ़ेगा।

पंडित (मंत्र पढ़ते हुए):
"धर्म के विधान में यही लिखा है। पति के साथ पत्नी को भी देह त्याग कर सती होना चाहिए। यही तुम्हारा कर्तव्य है, बिटिया।"

रमा की आंखों में आंसू भर आए। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसके साथ क्या होने वाला है। वह डरी-सहमी खड़ी हुई।

रमा (कांपते हुए):
"माँ... मुझे डर लग रहा है। मैं नहीं जाऊंगी वहां, माँ!"

गंगा बाई आगे बढ़ती है। रमा की बात सुनते ही उसके कलेजे में एक टीस उठती है। वह रमा को अपने पास खींच लेती है।

समाज के नेताओं और पुरोहितों ने गंगा बाई पर भारी दबाव डाला। "ये तो विधि का विधान है," उन्होंने कहा। "तुम्हारी बहू सती होकर पुण्य प्राप्त करेगी, तुम्हारे परिवार की प्रतिष्ठा बनी रहेगी।"

गंगा बाई (सख्त स्वर में):
"रमा कहीं नहीं जाएगी! ये छोटी बच्ची है। इसे क्यों सती बना रहे हो? क्या यही धर्म है, जो एक मासूम जान लेता है?"

समाज के लोग चौंकते हैं। पंडित का चेहरा तमतमा जाता है।

पंडित (गुस्से में):
"गंगा, तुझे धर्म का अपमान करने का हक नहीं है! ये विधि का विधान है। ये तुम्हारी बहू अब सती बनकर अपने पति के साथ स्वर्ग जाएगी।"

गंगा बाई का चेहरा सख्त हो जाता है। वह समाज के सामने पूरी हिम्मत से खड़ी होती है।

गंगा बाई (कड़क आवाज में):
"कौन सा धर्म? कौन सा विधान? ये बच्ची जानती भी नहीं कि शादी क्या होती है, पति क्या होता है। उसे क्या समझ सती प्रथा की? तुम लोग धर्म की आड़ में एक बच्ची की हत्या करने पर तुले हो। मैं इसे मरने नहीं दूंगी।"

रमा गंगा बाई के आँचल में छिप जाती है, उसकी छोटी-छोटी उंगलियां कसकर गंगा बाई की साड़ी पकड़ लेती हैं।

गांव का मुखिया (गुस्से में):
"गंगा, तू पागल हो गई है! अगर रमा सती नहीं हुई, तो पूरे गांव में तुम्हारे परिवार की नाक कट जाएगी। लोग तुम्हें दोष देंगे!"

गंगा बाई (आंखों में आंसू और गुस्से के साथ):
"नाक से बढ़कर एक बच्ची की जान है! क्या तुम अपनी बेटियों को भी यही सिखाओगे? क्या धर्म में इंसानियत की कोई जगह नहीं? मैं अपने बेटे को खो चुकी हूं, लेकिन अब और नहीं खोऊंगी।"

मुखिया और बाकी लोग अब खामोश हो जाते हैं। गांव की कुछ महिलाएं धीरे-धीरे गंगा बाई की तरफ आती हैं, उनके चेहरों पर सहमति और साहस दिखने लगता है। गंगा बाई ने ठोस आवाज़ में उत्तर दिया, "क्या तुम सबको अपनी बेटियों की कोई परवाह नहीं? क्या ये तुम्हारे लिए भी सही होगा कि एक सात साल की बच्ची को आग के हवाले कर दिया जाए? मैं अपने बेटे को खो चुकी हूं, पर मैं अपनी बहू को यूं मरने नहीं दूंगी।"

समाज के लोग चुप हो गए, लेकिन उनमें गुस्सा उमड़ पड़ा। कुछ ने गंगा बाई को धमकाया, तो कुछ ने उसे पाखंडी कहा।  गंगा बाई के साहस ने सभी को हिला दिया था, और धीरे-धीरे कुछ महिलाएं भी उसके साथ खड़ी होने लगीं। वे भी अपने दिलों में इस क्रूर प्रथा के प्रति विरोध महसूस करने लगीं थीं, लेकिन पहले कभी अपनी आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं कर पाई थीं।

गंगा बाई ने रमा को अपने आंचल में छिपा लिया। रमा अब थोड़ी सहज हो गई थी। वह गंगा बाई की ओर देखती है और पहली बार हल्की सी मुस्कान देती है। उसकी मासूम आंखों में चमक लौट आती है, मानो उसने जीवन फिर से पा लिया हो।

रमा (धीरे से):
"माँ, अब मुझे डर नहीं लगता।" गंगा बाई उसकी पेशानी पर एक चुम्बन देती है।

गंगा बाई (भावुक होकर):
"अब कभी डरने की जरूरत नहीं, बेटी। तुम मेरी संगिनी हो, और मैं हमेशा तुम्हारे साथ खड़ी रहूंगी।"

Dr.Vijay Laxmi "अनाम अपराजिता"

Dr.Vijay Laxmi "अनाम अपराजिता"

बहुत हृदयस्पर्शी कहानी

22 अक्टूबर 2024

Deepak Singh (Deepu)

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22 अक्टूबर 2024

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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खुशी एक ऐसी भावना है जो हमारे मन को संतुष्ट करती है और हमें जीवन के अनुभवों से खुश रखती है। यह हमारे मन और शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह हमें स्वस्थ और सकारात्मक बनाती है। खुशी के मनो

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16 जून 2023 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्म आदिपुरूष आजकल खूब सुर्खियां बटोर रही है जिसके पीछे का कारण इसके पात्रों का चरित्र चित्रण और उनके द्वारा बोले गए डायलॉग हैं।फिल्म के टीजर के समय भी प

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पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले का संदेशखाली पिछले दो माह से सुर्खियों में है. ईडी अधिकारियों पर हमले के बाद अब टीएमसी नेता शाहजहां शेख और उनके समर्थकों पर महिलाओं पर अत्याचार करने और उनका यौन उत्

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गोपाल का जन्म हुआ, मथुरा नगरी आई बहार,कंस के कारागार में, छाया आनंद का संसार।यशोदा के नंदलाला, वसुदेव-देवकी के लाल,तोड़ दीं सब बेड़ियाँ, खुल गए बंदीगृह के ताल।कृष्णा की लीला न्यारी, माखन-चोर बन खेले र

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सरिता की मुस्कान

12 सितम्बर 2024
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सरिता एक घरेलू महिला थी ,सरीता के चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान होती थी। एक ऐसी मुस्कान, जिसे देखकर कोई भी कह सकता था कि वह दुनिया की सबसे खुशहाल महिला है। लेकिन उसकी मुस्कान का सच सिर्फ वही जानती थी। सरी

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भारत के अनमोल रत्न: रतन नवल टाटा

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रतन नवल टाटा का निधन भारत और दुनिया भर में उद्योग जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनका जीवन एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसने अपनी लगन, मेहनत और समाज के प्रति जिम्मेदारी के भाव से न केवल टाटा समूह बल्

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बहराइच हिंसा

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बहराइच में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा ने पूरे क्षेत्र में भय और असुरक्षा का माहौल पैदा कर दिया है। यह घटना तब शुरू हुई जब एक धार्मिक जुलूस के दौरान दूसरे समुदाय के लोगों से विवाद की स्थिति उत्पन

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शरद पूर्णिमा

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शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह पर्व शरद ऋतु क

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कसक अधूरे प्रेम की....

17 अक्टूबर 2024
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घर के आंगन में रोहित की तस्वीर के सामने एक दिया जल रहा था। हर चेहरा उदास, हर आँख नम, और हर दिल भारी था। नीति को घेरे हुए रोहित की माँ और बहनें उसे ताने दे रही थीं, मानो उसकी वजह से ही सब कुछ बर्बाद हो

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संगिनी

21 अक्टूबर 2024
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आत्म साक्षात्कार - एक अनोखा साक्षात्कार

22 अक्टूबर 2024
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अस्पताल के कमरे में हल्का अंधेरा था। मशीनों की बीप-बीप की आवाज़ें वातावरण को और भी गंभीर बना रही थीं। रामेश्वर, जो 75 वर्ष के थे, अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रहे थे। परिवारजन बाहर बैठे थे, लेकिन राम

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पटाखों पर बैन: स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा के लिए एक जरूरी कदम

23 अक्टूबर 2024
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दिवाली और अन्य त्यौहार देश भर में धूमधाम से मनाए जाते हैं। इन त्योहारों में आतिशबाजी करना एक पुरानी परंपरा रही है, लेकिन जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे यह समझ में आने लगा है कि पटाखे न केवल ह

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यादों का सूना संसार

25 अक्टूबर 2024
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गांव के एक छोटे से घर में, सुनीता अपनी यादों के सहारे ज़िन्दगी गुजार रही थी। उसका एकलौता सहारा, उसका बेटा रोहित, एक हादसे में उससे हमेशा के लिए दूर हो गया था। हर दिन का एक-एक पल जैसे उसे उन पुरानी याद

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