मातृभाषा का अर्थ :
मातृभाषा का शाब्दिक अर्थ हैं, माँ की भाषा। जिसे बालक माँ के सानिध्य में रह कर सहज रूप से सुनता और सीखता है। ध्यान योग बात यह है कि मातृभाषा को बालक माता-पिता, भाई-बहन अन्य परिवारीजनों तथा पड़ौसियों के बीच रह कर सहज और स्वाभाविक रूप से सीखता हैं। चूँकि बालक सामान्यतः माँ के संपर्क में ही अधिक रहता हैं, इसलिए बचपन में सीखी गई भाषा को मातृभाषा कहा जाता हैं।
मातृभाषा का महत्व :
मातृभाषा मनुष्य के विकास की आधारशिला होती हैं। मातृभाषा में ही बालक इस संसार में अपनी प्रथम भाषिक अभिव्यक्ति देता हैं। मातृभाषा वस्तुतः पालने या हिंडोल की भाषा हैं। बालक अपनी माँ से लोरी इसी भाषा में सुनता हैं, इसी भाषा में बालक राजा-रानी और परियों की कहानी सुनता है और एक दिन यही भाषा उस शिशु की तुतली बोली बनकर उसके भाव-प्रकाशन का माध्यम बनती हैं। इस प्रारंभिक भाव-प्रकाशन में माँ-बेटे दोनों आनन्द-विभोर हो जाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस :
यूनिस्को(UNESCO) प्रतिवर्ष 21 फरवरी को भाषायी और सांस्कृतिक विविधता तथा बहुभाषावाद के विषय में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाता है। इसकी घोषणा यूनेस्को द्वारा 17 नवंबर, 1999 को की गई थी और जिसे विश्व द्वारा वर्ष 2000 से मनाया जाने लगा। यह दिन बांग्लादेश द्वारा अपनी मातृभाषा बांग्ला की रक्षा के लिये किये गए लंबे संघर्ष की भी याद दिलाता है। 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का विचार कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम द्वारा सुझाया गया था। इन्होंने बांग्ला भाषा आंदोलन के दौरान ढाका में वर्ष 1952 में हुई हत्याओं को याद करने के लिये उक्त तिथि प्रस्तावित की थी। इस पहल का उद्देश्य विश्व के विभिन्न क्षेत्रों की विविध संस्कृति और बौद्धिक विरासत की रक्षा करना तथा मातृभाषाओं का संरक्षण करना एवं उन्हें बढ़ावा देना है। विश्व में 7,000 से अधिक भाषाएँ हैं, जिसमें से सिर्फ भारत में ही लगभग 22 आधिकारिक मान्यता प्राप्त भाषाएँ, 1635 मातृभाषाएँ और 234 पहचान योग्य मातृभाषाएँ हैं।
महात्मा गाँधी ने मातृभाषा की श्रेष्ठता को समझाते हुए कहा हैं," मनुष्य के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा उतनी ही जरूरी हैं, जितना की बच्चे के शारीरिक विकास के लिए माता का दूध। बालक पहला पाठ अपनी माता से ही पढ़ता हैं, इसलिए उसके मानसिक विकास के लिए उसके ऊपर मातृभाषा के अतिरिक्त कोई दूसरी भाषा लादना मैं मातृभूमि के विरूद्ध पाप समझता हूँ।"अधिकांशतः लगभग सभी देशों की मातृभाषा को ही राष्ट्र भाषा का दर्जा मिला हुआ करता हैं। लेकिन भारत में ऐसा नही हैं। भारत की कोई राष्ट्र-भाषा नहीं है। हिंदी एक राजभाषा है यानि कि हिंदी भाषा राज्य के कामकाज में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा हैं। भारतीय संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। भारत अपनी विविधता के कारण अनेक देशों का एक देश प्रतीत होता हैं। लगभग एक सहस्त्र वर्ष की अवधि के बाद पराधीनता के कारण भारत में समय-समय पर विविध भाषाओं का प्रसार होता रहा। वस्तुतः " यदि किसी जाति, धर्म अथवा देश को पराधीन रखना है तो उसके साहित्य को नष्ट कर देना चाहिए, वह स्वयं नष्ट हो जायेगा।"