घर के आंगन में रोहित की तस्वीर के सामने एक दिया जल रहा था। हर चेहरा उदास, हर आँख नम, और हर दिल भारी था। नीति को घेरे हुए रोहित की माँ और बहनें उसे ताने दे रही थीं, मानो उसकी वजह से ही सब कुछ बर्बाद हो गया हो।
“तू हमारे बेटे को निगल गई,” रोहित की माँ रो-रोकर चिल्ला रही थी। “हमने तो पहले ही कहा था कि ये शादी मत कर! पंडित ने भी चेताया था कि ये रिश्ता हमारे परिवार के लिए अपशगुन लेकर आएगा, लेकिन तुझसे हमारा बेटा इतना प्यार करता था कि हमारी बात की एक नहीं सुनी।"
नीति एक किनारे बैठी रोते-रोते अपनी किस्मत को कोस रही थी। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी शादी, उसका सबसे प्यारा सपना, एक ऐसा दुःस्वप्न बन जाएगा। बचपन से लेकर अब तक हर लड़की की तरह उसने भी अपने सपनों के राजकुमार का इंतजार किया था। जब वह रोहित से मिली, उसे लगा कि यही उसका हमसफ़र है, वही इंसान जो उसके दिल की हर धड़कन को समझ सकता है।
रोहित और नीति के बीच प्यार बेहद गहरा था। दोनों ने मिलकर इस रिश्ते के लिए अपने-अपने घरवालों को मनाया था। खासकर रोहित ने अपने परिवार के हर सदस्य को समझाया था कि उनका प्यार सच्चा है और उन्हें एक होने से कोई रोक नहीं सकता। पंडित के कहने पर भी रोहित ने अपने माता-पिता को विश्वास दिलाया कि प्यार और भरोसे से हर अपशगुन को पार किया जा सकता है। उसकी माँ ने हारकर इस रिश्ते के लिए हाँ कह दी थी, मगर दिल में कहीं एक डर बसा हुआ था।
शादी की रात हर तरफ खुशियों का माहौल था। रोहित ने नीति का हाथ थामकर उसे भरोसा दिलाया था कि अब वे हमेशा साथ रहेंगे। पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। शादी के बाद का हर पल नीति के लिए किसी सपने जैसा था। विदाई के समय उसके आँसू रुक नहीं रहे थे, मगर रोहित ने उसका हाथ पकड़कर मुस्कुराते हुए कहा, “अब हमेशा साथ रहेंगे, हर दुख-सुख में। बस अब से हमारी दुनिया बसाने का वक्त आ गया है।” नीति ने हल्की मुस्कान के साथ अपनी आँखों के आँसू पोछे और नए जीवन की उम्मीद के साथ अपने ससुराल के सफर पर निकल पड़ी।
गाड़ी में दोनों एक-दूसरे को देखकर खामोशी में भी बहुत कुछ कह रहे थे। अचानक, उनकी गाड़ी ने मोड़ लिया और सामने एक बड़ा ट्रक तेज रफ्तार से उनकी ओर बढ़ता हुआ नजर आया। ड्राइवर के अचानक ब्रेक मारने के बावजूद गाड़ी काबू में नहीं आ सकी, और भयंकर आवाज के साथ गाड़ी पलट गई। नीति की चीखें और रोहित की आवाज हादसे की गूँज में दब गईं। चारों तरफ चीख-पुकार मच गई, गाड़ी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी थी।
कुछ मिनटों बाद जब नीति ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं, तो उसका सिर चकरा रहा था। उसके सिर से खून बह रहा था, और उसकी आँखों के सामने सब धुंधला दिख रहा था। उसकी हालत नाजुक थी, मगर उसकी आँखें रोहित को खोज रही थीं। तभी उसने देखा कि रोहित उसके पास ही अधमरी हालत में पड़ा था, उसका चेहरा लहूलुहान था। नीति की मुँह से बेसाख्ता आवाज निकली, "रोहित...!"
अस्पताल पहुँचते ही दोनों को तुरंत इमरजेंसी वार्ड में ले जाया गया। नीति दर्द से कराह रही थी, पर उसका पूरा ध्यान रोहित की ओर था। डॉक्टरों ने नीति को थोड़ा दूर कर दिया और रोहित का इलाज शुरू किया, मगर उसकी हालत बेहद गंभीर थी। डॉक्टरों के हाथों में उसकी जान जैसे फिसल रही थी।
कुछ समय बाद डॉक्टर ने नीति की तरफ देखा, उसकी आँखों में अनकही बात का दर्द था। डॉक्टर ने धीमे से कहा, “हमें माफ करना, हम उन्हें नहीं बचा सके।”
यह सुनते ही नीति के शरीर से जैसे सारी ताकत ही खींच ली गई। वह बुरी तरह रोने लगी, उसकी चीखें अस्पताल के गलियारों में गूँज उठीं। उसके सामने उसकी जिंदगी, उसका प्यार, उसकी खुशियाँ एक पल में खत्म हो चुकी थीं। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जिस रोहित के साथ उसने नई शुरुआत का सपना देखा था, वह अब हमेशा के लिए उससे दूर जा चुका था।
अस्पताल में हर तरफ उदासी और शोक का माहौल था। नीति का दिल एक बेजान काया की तरह महसूस हो रहा था, मानो उसके अंदर की सारी भावनाएँ और सारी इच्छाएँ भी उस हादसे में दम तोड़ चुकी थीं। उसने बेमन से अपने शरीर को संभाला और खामोशी से आँखों में आँसू लिए, अस्पताल के उस कोने में बैठ गई जहाँ उसका रोहित अब कभी नहीं लौटने वाला था।
जब नीति रोहित के बिना ससुराल पहुँची, वहाँ हर कोई उसे शंका भरी नजरों से देख रहा था। उसकी सास ने उसे देखते ही गुस्से में कहा, “तू हमारे घर का विनाश लेकर आई है! तेरा यह रिश्ता अपशगुन था। मैंने कहा था, मगर किसी ने सुनी नहीं।”
नीति अब अकेली खड़ी थी, उसकी आँखों में आँसू और दिल में दर्द था। वह अपने प्यार को खो चुकी थी, और अब जिनके बीच में रहने आई थी, वे ही उसे दोषी ठहरा रहे थे। उसकी ननद ने उसे धिक्कारते हुए कहा, “तेरी वजह से हमारा भाई हमें छोड़कर चला गया। तू एक मनहूस है, एक अपशकुन!”
नीति के पास अपनी सफाई देने का हौसला भी नहीं बचा था। उसका रोहित उससे छिन चुका था, और अब उसके पास केवल एक खालीपन बचा था। वह चाहकर भी किसी को नहीं समझा पा रही थी कि वह खुद इस दर्द से जूझ रही है।
उसने अपने कमरे में जाकर खुद से सवाल किया, “क्या यही प्यार था? क्या इसी अंजाम के लिए मैंने सबको मनाया था? उसकी आँखों से बहते आँसू अब दर्द के अलावा कुछ नहीं कह रहे थे।