आज का विषय पराक्रम दिवस
देश के वीर सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 126वी जयंती है। भारत सरकार द्वारा साल 2021 से 23 जनवरी को हर साल पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का देश के स्वाधीनता संग्राम में अग्रणी योगदान था।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म साल 1897 को उड़ीसा के कटक में एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था। उनके पिता कटक के मशहूर वकील थे। नेताजी बचपन से ही पढ़ने-लिखने में काफी मेधावी थे। नेताजी ने इंपीरियल सिविल सर्विस (अब आईएएस) की परीक्षा पास की थी। हालांकि, देश सेवा की भावना से उन्होंने नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए। नेताजी कई साल तक कांग्रेस के सदस्य रहे थे। साल 1930 से लेकर 1931 तक वह कलकत्ता के मेयर रहे। वहीं, 1938 से 1939 तक वह कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे थे। पराक्रम दिवस के मौके पर नेताजी के क्रांतिकारी विचारों और अनमोल वचन को पढ़कर आप भी प्रेरणा ले सकते हैं।
तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।'
'चलो दिल्ली'
'याद रखिये सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।'
" लिख रहा हूं मैं अजांम जिसका कल आगाज आएगा मेरे लहू का हर एक कतरा इकंलाब लाएगा |'
'इतिहास में कभी भी विचार -विमर्श से कोई ठोस परिवर्तन नहीं हासिल किया गया है।'
'ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने
बलिदान और परिश्रम से जो आजादी मिले, हमारे अंदर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी
चाहिए।'
'आपको यदि अस्थाई रूप से झुकना पड़े तब भी वीरों की तरह ही झुके।'
'मुझे ये देखकर बहुत दुःख होता है कि मनुष्य –जीवन पाकर भी उसका अर्थ समझ नहीं पाया है।
यदि आप अपनी मंजिल पर ही पंहुच नहीं पाए, तो हमारें इस जीवन का क्या मतलब।'
'राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और सुन्दर से प्रेरित है।
'मुझे यह नहीं मालूम की स्वतंत्रता के इस युद्ध में हममे से कौन कौन जीवित बचेंगे !
परन्तु में यह जानता हूं,अंत में विजय हमारी ही होगी!'
'जीवन में प्रगति का आशय यह है की शंका संदेह उठते रहें और उनके समाधान के प्रयास का
क्रम चलता रहे!'
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने आजाद हिंद फौज का नेतृत्व किया था। साल 1945 में
जापान से रूस जाते वक्त ताइवान में प्लेन क्रेश में उनकी मौत हो गई थी।
कविता से लेख का अंत करते हैं |
मैं रहूं या न रहूं पर ये वादा है तुमसे मेरा कि
मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा
हौसला बारूद रखते हैं
वतन के कदमों में जान मौजूद रखते हैं
हस्ती तक मिटा दे दुशमन की
हम फौजी हैं फौलादी जिगर रखते हैं
चलो फिर से आज वो नजारा याद कर लें
शहीदों के दिल में थी वो ज्वाला याद कर लें
जिसमें बहकर आज़ादी पहुंची थी किनारे पे
देशभक्तों के खून की वो धारा याद कर लें