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सरिता की मुस्कान

12 सितम्बर 2024

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सरिता एक घरेलू महिला थी ,सरीता के चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान होती थी। एक ऐसी मुस्कान, जिसे देखकर कोई भी कह सकता था कि वह दुनिया की सबसे खुशहाल महिला है। लेकिन उसकी मुस्कान का सच सिर्फ वही जानती थी। सरीता का जीवन उसके पति रमेश के कारण नर्क बन गया था। रमेश रोज़ाना शराब के नशे में धुत होकर घर आता और छोटी-छोटी बातों पर सरीता को मारता-पीटता।

हर रात, जब रमेश का नशा सिर चढ़कर बोलता, तब सरीता का दर्द शुरू होता। हाथों में चूड़ियों के टूटने की आवाज़, शरीर पर घूंसे और थप्पड़ों की मार, और आँखों में आंसूओं की लहरें... ये सब उसके जीवन का हिस्सा बन चुके थे। फिर भी, वह हर सुबह बच्चों के सामने वही मुस्कान लेकर खड़ी होती।

उसके दो प्यारे बच्चे थे - शिवा और स्वाति। दोनों छोटे थे, लेकिन उनकी आंखों में चमक और दिल में मासूमियत भरी थी। शिवा बारह साल का था और स्वाति दस साल की। सरीता जानती थी कि वह अपने बच्चों को अपने दर्द से दूर रखना चाहती है। वह नहीं चाहती थी कि शिवा और स्वाति को उसके कष्ट का एहसास हो।

हर सुबह वह अपने दर्द को छुपा कर अपने बच्चों के लिए खाना बनाती, उन्हें स्कूल भेजती, और जब वे लौटते, तब उनके लिए कहानियाँ सुनाती। बच्चों को उसकी मुस्कान देखकर लगता था कि उनकी माँ सबसे खुश इंसान है।
 सरिता एक रात को रोज़ाना की तरह रात का खाना बना रही थी, रमेश का काफी इंतजार करने के बाद भी रमेश नही आया जैसे जैसे देर होती जा रही थी वैसे वैसे रात का अंधेरा गहराता जा रहा था। दीवार घड़ी ने दस बजने की आवाज़ दी। रमेश लड़खड़ाते कदमों से दरवाजे पर आया और जोर से उसे धक्का देकर खोला। उसके मुंह से शराब की गंध और आँखों में नशा साफ दिखाई दे रहा था। सरीता किचन में काम कर रही थी, उसकी नजरें दरवाजे की ओर थीं, और चेहरे पर वही जानी-पहचानी मुस्कान।

रमेश (गुस्से में): “सरीता! कहाँ हो तुम? खाना अभी तक तैयार नहीं हुआ?”

सरीता (शांत स्वर में, मुस्कान के साथ): “हाँ, बस थोड़ी देर में लगा देती हूँ। आप हाथ-मुँह धो लीजिए।”

रमेश को यह सुनकर और गुस्सा आ गया। वह तेज़ी से सरीता की ओर बढ़ा और उसकी कलाई को कसकर पकड़ लिया।

रमेश (कर्कश आवाज़ में): “मुझे तुम्हारी ये मुस्कान पसंद नहीं है! हर बार, हर हाल में मुस्कुराती रहती हो। किस बात की खुशी है तुम्हें?”

सरीता (धीमे स्वर में, दर्द छुपाते हुए): “मैं बस चाहती हूँ कि हमारे बच्चे खुश रहें...”

रमेश ने उसे धक्का दे दिया। सरीता लड़खड़ा कर गिर पड़ी, लेकिन उसकी आँखों में आँसू आने से पहले ही उसने अपने होंठों पर मुस्कान ला दी। उसे पता था कि बच्चों की आंखें दरवाजे के पीछे से उसे देख रही थीं।

उधर, शिवा और स्वाति अपने कमरे के दरवाजे के पीछे खड़े थे। दोनों ने अपनी माँ की चीखें सुनीं और उनकी आँखों में डर और चिंता के साथ-साथ आंसू भी थे।

शिवा (धीमे स्वर में, स्वाति से): “दीदी, अब और नहीं। हमें कुछ करना होगा। माँ को रोज़ ये सब सहना पड़ता है... सिर्फ हमारे लिए।”

स्वाति (आँसू पोछते हुए): “हाँ, भाई। पर पापा को कौन रोकेगा? वह हमें भी मारेंगे।”

शिवा ने अपनी मुट्ठी भींच ली, उसकी आँखों में दृढ़ता थी। उसने दरवाजा खोला और तेजी से कमरे से बाहर आ गया।

शिवा (तेज आवाज में, गुस्से से): “पापा, छोड़ो माँ को! अब और नहीं!”

रमेश ने एक पल के लिए शिवा को देखा, फिर उसके चेहरे पर कुटिल हंसी आई।

रमेश (उपहास करते हुए): “तू क्या करेगा, छोटा बच्चा! अपने बाप के सामने खड़ा होगा?”

शिवा ने हिम्मत जुटाई और सीधा अपने पिता की ओर देखा।

शिवा (कड़े स्वर में): “हाँ, मैं खड़ा होऊंगा। आप माँ को मारते हैं, हम सब जानते हैं। लेकिन अब हम चुप नहीं रहेंगे।”

इतने में स्वाति भी दौड़ती हुई बाहर आ गई। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उसकी आवाज़ में एक नई मजबूती थी।

स्वाति (रोते हुए लेकिन दृढ़ता से): “पापा, माँ हमें खुश रखने के लिए मुस्कुराती हैं, पर आप उनके साथ ऐसा क्यों करते हैं? हमें भी बहुत दर्द होता है, पापा।”

रमेश ने पहली बार अपने बच्चों की आँखों में इतनी मजबूती देखी। वह एक पल के लिए चुप हो गया। उसका नशा कुछ कम हुआ, और उसने हाथों से माथा पकड़ा।
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रमेश (आवाज़ में थोड़ा पश्चाताप): “बच्चो, यह... यह हमारा मामला है...”

सरीता (कमजोर लेकिन स्नेहिल आवाज़ में): “बच्चो, सब ठीक है... पापा थके हुए हैं... चलो, सो जाओ।”

लेकिन आज शिवा और स्वाति ने ठान लिया था कि वे पीछे नहीं हटेंगे।

शिवा (मजबूती से): “नहीं माँ, अब और नहीं। पापा, अगर आपने फिर से माँ को हाथ लगाया, तो हम आपको छोड़ देंगे। हम माँ के साथ रहेंगे, आपके बिना।”

रमेश के हाथ रुक गए। उसकी आंखों में शर्मिंदगी और पछतावा था। वह सोफे पर गिरकर बैठ गया, उसकी आंखों में आंसू थे।

रमेश (आँखें नीची करते हुए, धीमे स्वर में): “मुझे माफ कर दो... मुझे नहीं पता था कि मैं कितना गलत हूँ...”

सरीता ने अपने बच्चों को गले से लगा लिया। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन आज उसकी मुस्कान में एक सच्चाई थी, एक नई उम्मीद थी। उसने महसूस किया कि अब वह अकेली नहीं है। उसके बच्चे उसके साथ हैं, उसके लिए लड़ने के लिए तैयार हैं।

सरीता (आँखों में आँसू और मुस्कान के साथ): “मेरी मुस्कान अब झूठी नहीं है, क्योंकि तुम दोनों मेरे साथ हो।”

उस रात, सरीता के जीवन में एक नया सवेरा हुआ। उसकी मुस्कान अब सच थी, और वह जानती थी कि अब वह अपने बच्चों के लिए हर लड़ाई लड़ सकती है।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने सर पढ़ें मेरी कहानी कचोटती तन्हाइयां पढ़कर सभी भागों पर अपना लाइक और रिव्यू देकर आभारी करें 😊🙏

14 सितम्बर 2024

Deepak Singh (Deepu)

Deepak Singh (Deepu)

14 सितम्बर 2024

मैने आपकी लिखी हुई "शापित संतान" पढ़ी थी , वो मुझे बहुत अच्छी लगी थी

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गांव के एक छोटे से घर में, सुनीता अपनी यादों के सहारे ज़िन्दगी गुजार रही थी। उसका एकलौता सहारा, उसका बेटा रोहित, एक हादसे में उससे हमेशा के लिए दूर हो गया था। हर दिन का एक-एक पल जैसे उसे उन पुरानी याद

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एक पुराना जमाना था, जब चिट्ठियाँ और पोस्टकार्ड्स हमारे दिल की आवाज़ बनते थे। ये सिर्फ कागज़ नहीं थे, बल्कि उन पर लिखे हर शब्द एक गहरी दास्तान बयां करते थे। उस दौर में हर चिट्ठी एक रिश्ते की गवाही थी,

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