गांव के एक छोटे से घर में, सुनीता अपनी यादों के सहारे ज़िन्दगी गुजार रही थी। उसका एकलौता सहारा, उसका बेटा रोहित, एक हादसे में उससे हमेशा के लिए दूर हो गया था। हर दिन का एक-एक पल जैसे उसे उन पुरानी यादों में खींच लेता था, जहां वह अपने बेटे के साथ उसके बचपन के हर हंसी-खुशी के लम्हों को याद करती थी।
बचपन की बातें
सुनीता अक्सर रोहित के बचपन को याद करती। "मां, जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो आपको कोई काम नहीं करने दूंगा," रोहित का यह मासूम सा वादा आज भी सुनीता के कानों में गूंजता था। सुनीता सोचती, कैसे उसके रोहित ने तो अपने छोटे-छोटे हाथों से उसकी गोद में ही उसे मजबूत बनाने का सपना देखा था।
रोहित को पढ़ाने के लिए सुनीता ने कितनी मेहनत की थी, यह याद करते ही उसकी आंखों में आंसू आ जाते थे। गांव में लोग अक्सर उसे ताने मारते, "तू अकेली औरत क्या कर पाएगी? अकेली औरत के लिए इस दुनिया में जीना आसान नहीं है।" पर सुनीता के हौसले को ये बातें हिला न सकीं, क्योंकि उसे अपने बेटे के रूप में जीने का एक कारण मिल गया था।
बेटे के बड़े होने का सपना
जैसे-जैसे रोहित बड़ा होता गया, वह सुनीता का सहारा बनता गया। "मां, मुझे डॉक्टर बनना है। मैं आपको किसी भी तरह की तकलीफ में नहीं देख सकता," उसने एक दिन उसे बताया था। उसकी आंखों में उस वक्त रोशनी थी। सुनीता के लिए वो पल किसी सपने से कम नहीं था।
रोहित की हर सफलता पर सुनीता का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता। परीक्षा में अच्छे अंक आने पर वह उसकी पसंद का खाना बनाती और उसे बड़े चाव से खिलाती। रोहित को भी मां के हाथ की खीर बहुत पसंद थी, और वह हंसते हुए कहता, "मां, जब मैं बड़ा हो जाऊंगा, तो हर दिन मुझे यह खीर खिलाना पड़ेगा।"
हादसे के दिन का दर्द
फिर वह मनहूस दिन आया। सुनीता उस दिन की हर एक बात को आज भी याद करती थी। शाम का वक्त था, और रोहित का फोन नहीं आया था। उसे चिंता होने लगी थी। अचानक पड़ोस की लड़की भागते हुए आई और रोते हुए बोली, "मांजी, रोहित भैया का एक्सीडेंट हो गया है।"
सुनीता के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसका सपना, उसका एकलौता सहारा, अब इस दुनिया में नहीं था। उसे इस बात पर विश्वास करना भी मुश्किल हो रहा था।
बेटे की यादें और टूटे सपने
रोहित के जाने के बाद, सुनीता की ज़िन्दगी जैसे एक खाली पन्ना बन गई थी। वह अक्सर रोहित के पुराने खिलौने और किताबें देखती, जैसे कि उसमें अपना बेटा फिर से देख पा रही हो। हर एक चीज़ में उसे रोहित की मुस्कान दिखाई देती, उसकी हंसी की आवाज़ सुनाई देती।
सुनीता की आंखों में आंसू आ जाते और वह दीवार पर टंगी उसकी तस्वीर की ओर देखती, "तूने तो कहा था बेटा, कि कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ेगा। फिर क्यों चला गया? क्यों मेरा सपना अधूरा छोड़ दिया?" रोहित के जाने के बाद सुनीता का सपना मानो चूर-चूर हो गया था। उसका सपना उसके बेटे के रूप में ही पूरा हो सकता था, जो अब इस दुनिया में नहीं था।