एक पुराना जमाना था, जब चिट्ठियाँ और पोस्टकार्ड्स हमारे दिल की आवाज़ बनते थे। ये सिर्फ कागज़ नहीं थे, बल्कि उन पर लिखे हर शब्द एक गहरी दास्तान बयां करते थे। उस दौर में हर चिट्ठी एक रिश्ते की गवाही थी, जिसमें लिखने वाले के एहसास, उसकी ख्वाहिशें और उसके अनकहे शब्द समाए रहते थे। ये चिट्ठियाँ अपने आप में पूरी एक दुनिया थीं – कभी खुशी की, कभी इंतजार की, और कभी दर्द की दुनिया।
कुछ चिट्ठियाँ ऐसी होती थीं, जो पूरी होने के बाद भी अधूरी रहती थीं। हम उन्हें भेजना चाहते थे, मगर किसी ना किसी वजह से वो कभी भेजी नहीं जा सकीं। ये वो चिट्ठियाँ थीं जो लिखने वाले के दिल की गहराइयों से निकलती थीं, मगर शायद हालात या डर की वजह से अपनी मंज़िल तक कभी नहीं पहुंच पाईं। इन्हें हम कुंवारी चिट्ठियाँ कह सकते हैं – ऐसी चिट्ठियाँ जो किसी को अपना संदेश देने के लिए तो बनाई गई थीं, मगर कभी भी वो काम पूरा नहीं कर सकीं।
किसी अधूरे प्यार की कुंवारी चिट्ठी में वो तमाम जज़्बात छिपे रहते थे, जो शायद जुबां से बयां नहीं किए जा सकते थे। किसी के नाम लिखे वो शब्द, जिन्हें कभी पढ़ने का सौभाग्य उसे नहीं मिला, पर उन पन्नों में लिखने वाले के दिल का वो अनकहा सच्चा प्यार समाया हुआ था। कभी-कभी ऐसा होता था कि कागज़ पर अपने दिल का हाल लिखते हुए आँखें भीग जाती थीं, क्योंकि दिल जानता था कि ये शब्द शायद उस तक कभी नहीं पहुँच पाएंगे। फिर भी उन चिट्ठियों में मोहब्बत की खुशबू बसी रहती थी, जो वक्त के साथ भी कम नहीं होती थी। वो चिट्ठियाँ अलमारी में कहीं छिपी रहतीं, जैसे किसी ने अपनी दुनिया का सबसे हसीन खजाना किसी कोने में संभाल कर रखा हो।
फिर कुछ चिट्ठियाँ ऐसी थीं जो इश्क़ से लबालब होती थीं। वो चिट्ठियाँ महज़ प्यार के इज़हार के लिए लिखी गई थीं। उनमें हर शब्द ऐसे होता था जैसे किसी ने दिल के किसी कोने से उन जज़्बातों को निकाला हो और कागज़ पर बिखेर दिया हो। वो हर अल्फ़ाज़ दिल की गहराई से जुड़ा होता, जैसे किसी ने खुद की रूह का एक टुकड़ा ही शब्दों में ढाल दिया हो। इन चिट्ठियों में वो मोहब्बत की मिठास होती थी, जो किसी नर्म और खामोश एहसास की तरह दिल को छू जाती। जब ऐसी चिट्ठियाँ हाथों में आतीं, तो ऐसा महसूस होता जैसे कागज़ की हर तह में उस शख्स का दिल धड़क रहा हो। वो अल्फ़ाज़, वो इज़हार किसी महकते गुलाब की तरह होते थे, जिनकी खुशबू सीधी दिल तक पहुंचती थी।
और फिर वो चिट्ठियाँ थीं, जिनमें गहरे दर्द और बिछड़ने की टीस थी। वो किसी टूटी हुई मोहब्बत की निशानी होतीं, जिसमें हर शब्द में बिछड़ने का दर्द और खो जाने का ग़म छुपा होता। वो आखिरी अल्फ़ाज़ किसी अधूरे वादे की तरह होते, जिन्हें शायद किसी ने पूरे दिल से लिखा था, मगर वो कभी उस शख्स तक नहीं पहुँच पाए। ऐसी चिट्ठियाँ पढ़ते ही जैसे एक अजीब सी टीस दिल में उठ जाती थी। वो किसी भूले-बिसरे रिश्ते की आखिरी कड़ी होतीं, और हर शब्द उस बिछड़े हुए पल को दोबारा जी लेने का एहसास कराता था। उन चिट्ठियों में एक अलग ही गहराई होती थी, जैसे कोई दरिया अपने अंदर समुंदर छुपाए हुए हो।
आज जब हम इस डिजिटल दौर में हैं, तो वो चिट्ठियाँ हमें बहुत याद आती हैं। हम कितनी भी तेज़ी से मैसेज भेज सकते हैं, लेकिन उनमें वो खामोशी नहीं होती जो चिट्ठियों में होती थी। आज के मैसेज बस स्क्रीन पर चमकते हैं, मगर उनमें वो गहराई नहीं होती जो उन पुराने खतों में थी। वो इंतजार का मज़ा, वो धीमे-धीमे दिल तक उतर जाने वाली मोहब्बत, और वो अनकही बातों का अनमोल एहसास – ये सब अब बस यादों में ही बचा है।
वो पुराने जमाने की कुंवारी चिट्ठियाँ और अधूरी मोहब्बतों के खत, वो बेझिझक लिखी गई बातें और वो इंतजार की मिठास – ये सब कुछ अब भले ही लौटकर न आए, मगर हमारी यादों में हमेशा महफूज़ रहेंगे। वो चिट्ठियाँ हमारे दिल के किसी कोने में आज भी साँस लेती हैं, जैसे पुराने ख़्वाब किसी ज़माने का हिस्सा हों। और शायद, जब हम उन पुरानी बातों को याद करते हैं, तो वो अनकही बातें और वो कुंवारी चिट्ठियाँ हमारी तन्हाई का सबसे सच्चा सहारा बन जाती हैं।