आज का विषय : एक गृहणी का जीवन
जब एक लड़की की शादी होती है तो वह पत्नी बनने के साथ ही गृहिणी भी बन जाती है. लोग उस महिला को घर की मालकिन कहते हैं, गृहस्वामिनी कहते हैं, घर की कर्ता-धर्ता कहते हैं. असल में ये नाम और ओहदे इतने बड़े होते हैं कि इन जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते वह एक दिन खुद को ही भूल जाती है.
वह शादी से पहले जैसी होती है अब वैसी तो बिल्कुल नहीं रह जाती. बात सिर्फ उसके पहनावे और हेयर स्टाइल की नहीं है कि लेयर्ड हेयर कट में रहने वाली लड़की मां बनते ही अपने बालों में अपने सपनों को समेटकर जूड़ा बना लेती है. बात है उसके अरमानों की, जिसकी गठरी बांधकर रसोई में रखकर कहीं भूल जाती है. वह सपनों की गंठरी कभी धूप दिखाने के लिए भी बाहर नहीं निकलती...जैसे उस महिला ने कभी रसोई के सामान में देखा ही नहीं हो. उसे तो बस बच्चों और पति के टिफिन की चिंता सताती रहती है. गृहिणी होने के साथ-साथ एक महिला इंसान भी होती है।
एक पत्नी, एक बहू के बाद वह अब सिर्फ बिट्टू की मम्मी बन जाती है और इस तरह लोग उसका नाम भी भूल जाते हैं. वो कहीं गुम हो जाती है. समय बदला है, आजकल महिलाएं घर और ऑफिस दोनों काम संभाल रही हैं. ऐसा नहीं है कि बाहर काम करने पर वे घर की जिम्मेदारियों को इग्नोर कर दें लेकिन अब समय आ गया है कि घर के लोग गृहिणी से कुछ उम्मीदें छोड़ दें. वे काम जो हाउसवाइफ करती है तो ही एक आदर्श गृहिणी कहलाती है. रिश्तेदार और घरवाले वैसे तो हाउसवाइफ की तारीफ करते हैं लेकिन अगर वह जरा सा भी अपने बारें में सोच ले तो उसे बुरा भी बना देते हैं।
असल में सदियों से आदर्श बहू की परिभाषा की लकीर खींच दी गई है। लोगों को लगता है कि हाउसवाइफ को तो आराम ही आराम है। बस दो लोगों का खाना ही तो बनाना है, फिर दिनभर सोना है और टीवी देखना है। जबकि खाना बनाने के अलावा भी घर में 10 काम होते हैं. अगर कोई भी महिला उस लकीर के जरा सा भी इधर-उधर होती है तो उसे अपशगुनी और अवगुण वाली महिला बता देते हैं।
सुकून इस बात का है कि अब लोग बदल रहे हैं. समाज की सोच भी धीरे-धीरे बदल रही है लेकिन काफी बदलाव आना अभी बाकी है, जहां किसी घर की महिला को सबसे पहले इंसान समझा जाए.
इस लेख में मैंने अपने निजी विचार व्यक्त किए है।