डायरी दिनांक ०२/०५/२०२२
शाम के पांच बजकर बीस मिनट हो रहे हैं ।
आज आफिस में ही पहले जैसी परेशानी होने लगी। फिर आफिस से घर आ गया। फिर मम्मी की सलाह से विचार किया कि अब किसी डाक्टर को ही समस्या बतानी चाहिये। खुद अनुमान से इलाज करना कोई समझदारी नहीं है। जबकि समस्या दो दिन में दूसरी बार सामने आ गयी है। फिर डाक्टर को दिखाने गया। आज वहां बिलकुल शांति थी। डाक्टर साहब ने आराम से जांच की। कुछ ब्लड टैस्ट कराये और अल्ट्रासाउंड कराया। ब्लड टैस्टों की रिपोर्ट तो कल तक आयेगी। पर अल्ट्रासाउंड ने समस्या बता दी। बांयी किडनी में आधा सेंटीमीटर की पथरी है। वह पथरी जब पेशाब के रास्ते में आ जाती है, फिर पेशाब होने में दिक्कत होती है और पेट में दर्द भी होने लगता है।
किसी भी व्यक्ति के उत्थान में उसकी संगति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अच्छे लोगों की संगति हमेशा उसका उत्थान करती है और बुरे लोगों का साथ हमेशा मन को कलुषित ही करता है।
यथार्थवादी साहित्य लिखने का आरंभ का श्रेय जयशंकर प्रसाद जी को दिया जाता है। माना जाता है कि जयशंकर प्रसाद जी का उपन्यास कंकाल हिंदी साहित्य का पहला यथार्थवादी उपन्यास था। हालांकि मुंशी प्रेमचंद्र जी के साहित्य में भी यथार्थवादी दृष्टिकोण की पर्याप्त झलक मिलती है। मानव मन के अच्छे और बुरे दोनों पक्षों का चित्रण प्रेमचंद्र जी ने बखूबी किया है।
आज फैशन का अर्थ नग्नता बन चुका है तो साहित्य यथार्थवाद की आड़ में फूहड़ बनता जा रहा है। यथार्थ के बहाने से कुछ भी लिखना कोई साहित्य तो नहीं है।
नवीन लेखन के कुछ आइडिया मन में आ रहे हैं। फिर भी अभी जरा प्रतीक्षा करना उचित समझ रहा हूँ। कहानी को पूरी तरह मन में उतारकर ही फिर कुछ लिखना ठीक रहेगा।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।