डायरी दिनांक ०४/०५/२०२२
शाम के तीन बजकर तीस मिनट हो रहे हैं ।
आज घर व्यवस्थित करने के लिये अवकाश लिया था। फिर आज डाक्टर को भी दिखाने जाना था। क्योंकि उस दिन तो डाक्टर साहब ने मात्र एक दिन की आपातकालीन दवा लिखी थी। ब्लड के रिपोर्ट उस समय तक आयीं नहीं थीं।
परसों पेट दर्द के कारण और कल नवीन स्थल के कारण बहुत कम नींद आयी थी। वैसे भी मुझे बेड पर नींद नहीं आती। मैं फोल्डिंग पलंग पर नींद लेने का अभ्यस्त हूँ।
रिपोर्ट देखने के बाद डाक्टर साहब ने पांच दिनों की दवा लिखी है। संभवतः दवाइयों का प्रभाव और कुछ थकान का असर, दिन में नींद आ गयी।
ज्यादातर घर व्यवस्थित कर दिया है पर कुछ छोटे सामान मिल नहीं रहे हैं। गैस जलाने के लिये माचिस लानी पड़ी क्योंकि लाइटर किस थैले में रखा है, पता नहीं चल रहा था। ऐसी ही छोटी पर उपयोगी वस्तुओं को तलाशना बहुत कठिन हो रहा है।
रहिमन देख बढेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आबे सुई, कहा करे तलवार।।
आयु में छोटे का भी सम्मान करना चाहिये। हालांकि आज तो स्थिति कुछ ऐसी हो गयी है कि लोग अधिक आयु बाले का और ज्ञानी का भी सम्मान नहीं करते।
कभी कभी किसी मनुष्य के विषय में व्याप्त धारणा उसके चरित्र से सर्वथा विपरीत होती है। जो बार बार कहा और सुना जाता है, अक्सर उसी को सत्य समझ लिया जाता है। लोकापवाद किसी महान व्यक्ति के चरित्र को भी धूमिल कर देता है।
देवर्षि नारद भगवान विष्णु के महान भक्त हैं। साथ ही साथ वह परम ज्ञानी भी हैं। सभी के प्रति उनका मन उदार रहता है। वे सभी का कल्याण करने बाले महान संत हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण में खुद भगवान श्री कृष्ण देवर्षि नारद के गुणों का गान करते हैं।
पूर्व जन्म में नारद एक दासी पुत्र थे। बचपन से ही उनके मन में संसार से ममता नहीं थी। उन्हें संतों की सेवा करने में आनंद मिलता था। एक बार चातुर्मास के अवसर पर उन्होंने साधुओं की सेवा की। उसी समय साधुओं ने उन्हें भगवान का परम भक्त बनने का आशीर्वाद दिया।
समय के साथ उनका निधन हुआ पर फिर उस कल्प में उनका पुनर्जन्म नहीं हुआ। फिर सृष्टि प्रलय से मिट गयी। फिर जब भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया तब नारद उनके मानस पुत्र के रूप में पैदा हुए। उसी समय से वीतराग होकर विश्व का हित करते रहे हैं।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।