डायरी दिनांक ०३/०५/२०२२
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आज अक्षय त्रितिया है। भगवान परसुराम की आज जयंती है। भगवान परसुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। उनकी गिनती महर्षियों में भी होती है। शस्त्र और शास्त्र ज्ञान दोनों में वह अद्वितीय हैं। भगवान शिव के वे परम भक्त हैं।
अंशावतार और पूर्णावतार के विषय में माना जाता है कि किसी विशेष उद्देश्य के लिये लिया भगवान का अवतार अंशावतार होता है। तथा अनेकों उद्देश्यों के लिये लिया गया अवतार पूर्णावतार होता है। जैसे मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन अवतार अंशावतार कहे जाते हैं। तथा राम और कृष्ण पूर्णावतार माने जाते हैं।
भगवान परसुराम भले ही अंशावतार नहीं है तथा उनका अवतार काल सभी अवतारों से अधिक विस्तृत है। फिर भी उन्हें पूर्णावतार भी नहीं माना जाता है। क्योंकि उनका अवतार जीवन के सारे तत्वों को निरूपित करने के लिये नहीं हुआ है। दुष्टों और आतताइयों का संहार करते करते एक पूरे विशेष वर्ग को आततायी समझने की भूल भी उन्होंने इक्कीस बार की है।
वर्ण वैमन्यता के वर्तमान युग में विभिन्न महापुरुषों का बटबारा सा अलग अलग वर्णों के मध्य हो चुका है। भगवान परसुराम ब्राह्मण जाति से संबंधित थे। इसलिये ब्राह्मण वर्ण ने उन्हें अपनी जाति का भगवान मान लिया है। हर शहर में ब्राह्मण संगठनों द्वारा परसुराम जयंती का आयोजन धूमधाम से किया जाता है। हालांकि जातीय आधार पर महापुरुषों के बटबारे का मैं तो पक्षधर नहीं हूँ।
अभी के लिये इतना ही। यदि समय मिला तो सायंकालीन डायरी भी लिखूंगा। एक गहन विचार मन में है जिसे लिखना आवश्यक है।
आप सभी को राम राम।