डायरी दिनांक २०/०५/२०२२
शाम के छह बजकर तीस मिनट हो रहे हैं ।
एक कथा आज पढी। भगवान बुद्ध एक सरोवर के निकट बैठे थे। सरोवर में बहुत से कमल पुष्प खिले थे जिनकी सुगंध वातावरण में फैली हुई थी। उसी समय एक अन्य व्यक्ति सरोवर में घुसकर पुष्पों को नष्ट करने लगा।
तभी भगवान बुद्ध के निकट एक देवकन्या आयी।
" महात्मन। आप बिना दाम दिये सुगंधित पुष्पों की गंध को सूंघ रहे हैं। यह तो उचित नहीं।"
वास्तव में यह बात भी अनोखी थी। देवकन्या ने टोका किसे जो कि सरोवर के नजदीक बैठा मात्र है। सुगंध वातावरण में फैली है, इसमें उसका क्या दोष। हाॅ जो सरोवर में प्रवेश कर पुष्पों को नष्ट कर रहा है, उसका अवश्य दोष है। उसी पर आर्थिक दंड लगना चाहिये।
" ऐसा नहीं है महात्मन। जो खुद पतित है, उसकी भूल भी छोटी होती है। पर जो ज्ञानी है, जिसपर समाज को सद्मार्ग दिखाने की जिम्मेदारी है, उसकी जिम्मेदारी हर क्षेत्र में भी बड़ी ही होती है।"
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।