डायरी दिनांक १२/०५/२०२२
शाम के छह बजकर पच्चीस मिनट हो रहे हैं ।
कल की डायरी पर बहन मीनाक्षी शर्मा ने समीक्षा कर पूछा कि किस तरह एक पढी लिखी महिला अनपढ़ की तरह आचरण कर सकती है। इस विषय में बहुत विचार किया। अंत में सोचा कि जिस घटना पर मैंने अपने विचार व्यक्त किये, उस घटना को विस्तार के साथ लिख देना चाहिये। एक इंजीनियरिंग पढी और अच्छे पद पर कार्यरत कन्या की उसके पति से जो खुद इंजीनियर और अच्छे पद पर कार्यरत है, से पटरी नहीं खायी। क्या बात थी, मुझे विस्तार से नहीं पता। फलतः दोनों कानूनन अलग हो गये। ज्ञात हुआ है कि उस कन्या ने एक बहुत कम पढे मुस्लिम युवक से विवाह कर लिया है। उस मुस्लिम युवक का उससे दूसरा विवाह है। मुस्लिम युवक की पहली पत्नी और बच्चे भी उसके साथ रहते हैं। मैं इस निर्णय के भीतर के तथ्य को समझ नहीं पा रहा हूँ । मुझे नहीं लगता है कि कोई अनपढ कन्या भी किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करना चाहेगी जिसकी पहली पत्नी उसी के साथ रह रही हो। हालांकि कभी हिंदू धर्म में भी बहुविवाह प्रचलन में था, पर यह सत्य है कि ऐसे विवाह कभी भी सुखद नहीं रहे।
आजकल विभाग में हर रोज नये विवाद जन्म ले रहे हैं। शुद्ध डायरी में मन के विचार निर्भीकता से लिखे जा सकते हैं। पर किसी भी आनलाइन मंच की डायरी में ऐसा संभव नहीं है। अतः कुछ बातों को मन में ही रख लेता हूँ।
हाईस्कूल में मैंने कक्षा में एक गणित का ऐसा प्रश्न हल कर दिया जिसे हमारे अध्यापक महोदय के पूरे कैरियर में किसी भी छात्र ने स्वयं हल नहीं कर पाया था। फलतः उन्होंने इनाम में मुझे पांच रुपये दिये। वही मेरे जीवन की पहली कमाई है। हालांकि इनाम की राशि से बहुत ज्यादा साथियों को टिक्की खिलाने में लग गयी।
यदि मुझे ईश्वर से एक प्रश्न करने का मौका मिले तो मैं तो यही पूछूंगा कि जिस समत्व योग को आपने इतनी सहजता से कह दिया, उस समत्व योग को आत्मसात करने में मुझे इतनी दिक्कत क्यों आती है। क्यों मैं स्तुति और निंदा, सुख और दुख, लाभ और हानि में सम नहीं रह पाता।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।