डायरी दिनांक १७/०५/२०२२ - मेरी पसंदीदा पुस्तक
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यदि मैं अपनी सभी पसंदीदा पुस्तकों का नाम लिखूं तो शायद ही यह डायरी पूरी कर पाऊं। बचपन से ही बाबूजी ने मुझे श्री रामचरित मानस का पाठ करना सिखाया। बहुत बचपन में ही महाभारत को मैंने पढा। श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ भी उस समय करना आरंभ किया था जबकि मैं इंटरमीडिएट का विद्यार्थी था। शिव पुराण, विष्णु पुराण भी बहुत पहले पढे थे। बहुत समय तक श्रीमद्भागवत महापुराण को पढने की इच्छा रही जो कि वर्ष २००६ में पूरी हुई। जबकि मेरा बी एस एन एल में चयन तो हो गया था पर ट्रैनिंग आरंभ नहीं हुई थी। हालांकि सच्ची बात यह है कि इन सभी को मैं केवल पुस्तक नहीं मानता। ये सारे ग्रंथ किसी पुस्तक की परिभाषा से बहुत आगे हैं।
मेरी पसंदीदा पुस्तकों में मुंशी प्रेमचंद्र जी का लिखा उपन्यास गोदान, जयशंकर प्रसाद जी का नाटक स्कंदगुप्त, फणीश्वर नाथ रैणु जी का उपन्यास कितने चौराहे, अमृतलाल नागर जी का उपन्यास मानस का हंस, आदि हैं। अभी बहुत सी पुस्तकों का नाम ध्यान पर नहीं आ रहा है।
जिस समय मैंने सीतायन लिखी थी, उसी समय माता सीता पर लिखा साहित्य वैदेही वनवास पढने की इच्छा बलबती हुई। हालांकि समय के साथ यह इच्छा कहीं लोप हो गयी। इधर प्रतिलिपि पर अयोध्या सिंह उपन्यास जी का उपन्यास ठेठ हिंदी का ठाठ पढा। अचानक पुरानी इच्छा फिर से ध्यान आ गयी। सौभाग्य से वैदेही वनवास अमेजन पर उपलब्ध मिला। आर्डर कर दिया है। मुझे लगता है कि संभवतः वैदेही वनवास भी केवल पुस्तक की अवधारणा से आगे की पुस्तक होगी।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।