डायरी दिनांक १८/०५/२०२२
शाम के छह बजकर पच्चीस मिनट हो रहे हैं।
धारावाहिक गीता में बकरी के लिये वार्तालाप के दौरान छिरिया शव्द का प्रयोग किया गया है। चूंकि यह प्रयोग मात्र वार्तालाप में हुआ है, इसलिये प्रायः सभी को समझ में आ गया है। परन्तु एक स्थान पर चिनौरी शव्द के विषय में कुछ जिज्ञासा आयी है। चिनौरी वास्तव में प्रसाद के लिये प्रयोग किया जाने बाला बहुत छोटा सा प्रसाद है। वैसे धनी लोग प्रसाद में प्रायः लड्डू आदि का भोग लगाते हैं। हनुमानजी का प्रसाद प्रायः बूंदी का लगाया जाता है। अक्सर किसी तीर्थ स्थल से वापस आने पर लोग वहां से प्रसाद लेकर आते हैं जो कि पड़ोसियों में भी बांटते हैं। इस प्रसाद में अक्सर बताशे, चिनौरी और कभी कभी चिउड़ा (पोहा) का प्रयोग ही अधिक होता है। बताशे आकार में बड़े होते हैं तथा मार्ग में टूटते भी ज्यादा हैं। इसीलिये चिनौरी का प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। इस समय मेरे घर में चिनौरी नहीं है। नहीं तो आप सभी को चिनौरी का फोटो अवश्य साझा करता।
सुख और दुख के विषय में सभी की धारणा अलग अलग होती है। वैसे यह भी सत्य है कि सुख केवल मन की धारणा मात्र है। गीता की जो कहानी मेरे मन में बनी हुई है, उस आधार पर इस कहानी के सुखांत या दुखांत के विषय में अलग अलग राय हो सकती है।
गर्मियों के मौसम में कच्चे आम के पने का सेवन बहुत उत्तम होता है। पना न केवल गर्मी से रक्षा करता है, अपितु लू की अचूक औषधि भी है। विगत कुछ वर्षों से मेरे घर में पना नहीं बन पा रहा था। आज मम्मी से कहकर पना तैयार कराया।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।