डायरी दिनांक १७/०५/२०२२ - सायंकालीन चर्चा
शाम के पांच बजकर पचपन मिनट हो रहे हैं ।
विगत दो दिनों से मिक्की (मकान-मालिक की कुतिया) के व्यवहार में बहुत ज्यादा बदलाव अनुभव कर रहा हूँ। पहले वह हमारे साथ ज्यादा घुल मिल गयी थी। मेरे आफिस से आते ही मेरे साथ ऊपर आ जाती थी। सुबह सुबह भी आ जाती थी। फिर घंटों हमारे घर में ही रहती थी। खाना भी हमारे यहाँ ही खाती थी। पर दो तीन दिनों से वह बहुत ज्यादा देर रुकती नहीं है। खाना देने पर उसे खाती नहीं है। फिर चुपचाप चली जाती है। जबकि पहले वह कमरे में आराम से कहीं भी बैठी रहती थी। मनुष्य हो या पशु, किसी के व्यवहार में अचानक बदलाव चिंतित तो करता ही है। जबकि हमारे बदलाव में किसी भी तरह का कोई परिवर्तन न हुआ हो।
यदि मनुष्य मन को पढना सीख जाये, उस समय कैसी स्थिति होगी। ऐसा होने पर मानव सभ्यता को कितना लाभ होगा। मुझे लगता है कि लाभ होने की प्रायिकता हानि की तुलना में कम ही रहेगी। खुद पर संयम रखना वैसे भी बहुत कठिन काम है। फिर जरा जरा सी बातों पर बड़े विवाद होते रहेंगें।
कभी कभी अनदेखी करना बहुत कठिन हो जाता है। फिर चुप रहना कठिन लगने लगता है। हालांकि संभव है कि बहुत से लोग प्रतिवाद करना चाहते हों। पर प्रतिवाद करने की इच्छाशक्ति की कमी अनुभव करते हों।
विरोध तभी अपना लक्ष्य प्राप्त करता है जबकि विरोध किसी व्यक्ति का न होकर किसी विचारधारा या व्यवस्था का हो। कभी कभी मनुष्य व्यक्ति विरोध में इतना लिप्त हो जाता है कि उसे सही और गलत का ध्यान ही नहीं रहता। ऐसे विरोध महत्वहीन हो जाते हैं।
एक पुस्तक ' सांझ तले' पढी। पुस्तक के सारांश में लिखा था कि यह उपन्यास में आजादी के बाद विभिन्न रियासतों के राजाओं की स्थिति को चित्रित किया गया है। हालांकि यह बात पूरी तरह गलत निकली। बिक्री के लिये झूठ को हथियार बनाना कुछ गलत है। किसी भी पुस्तक के परिचय में सही तथ्यों को प्रगट करना ही उचित है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।