डायरी दिनांक २८/०५/२०२२
शाम के पांच बजकर पंद्रह मिनट हो रहे हैं ।
आज सुबह सुबह मेरे एक हितैषी ने एक चकित कर देने बाली सूचना दी। हालांकि घटना लगभग आठ से दस महीने पुरानी है। फिर भी इस घटना के पीछे की घटना से मेरा अपरिचित रहना भी आश्चर्य की बात थी।
ज्यादातर शक्ति अहंकार लाती है। जिस शक्ति का मूल आधार ही निर्बलों की रक्षा है, वही शक्ति तानाशाही के लिये प्रयोग होने लगती है। अहंकार के मद में चूर मनुष्य यह भी नहीं समझ पाता है कि एक न एक दिन पतन सभी का होता है। अहंकार तो चकनाचूर होता ही है।
दिल्ली में खेल विभाग के आईएएस पति पत्नी अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते पकड़े गये। पति का स्थानांतरण लद्दाख और पत्नी का गुवाहाटी कर दिया है।
वास्तव में इस दंडात्मक स्थानांतरण के उद्देश्य को पूरी तरह समझ पाना कुछ कठिन ही है। पति और पत्नी का इस तरह प्रथक करना संभवतः उचित नहीं है। दोनों का स्थानांतरण किसी एक जगह हो जाता, यही पर्याप्त था। अप्रत्यक्ष रूप से संदेश जाता है कि पति और पत्नी दोनों की शक्ति बढ़ना समाज के लिये घातक है।मेरी राय में ऐसा सोचना उचित नहीं है। मानो या न मानो, पर यह निर्णय पूरी तरह पुरुषवादी सोच का ही प्रतिनिधित्व कर रहा है।यहाँ पुरुष की गलती का दंड स्त्री को भी देना ही आवश्यक माना जाता है। जब बड़े रूपों में यह मानसिकता है तो सामान्य और छोटी जगहों की घटनाओं को किस तरह रोका जायेगा। इस तरह के आदेशों को अनुचित मानने के पर्याप्त आधार हैं।
शक्ति का प्रयोग साहित्य में भी होते देखा गया है। किसी वरिष्ठ पद पर आसीन कुछ भी लिखें, पत्र, पत्रिकाओं में वाहवाही के साथ प्रकाशित हो जाता है। कुछ आनलाइन मंच भी उनके प्रभाव में आते देखे गये हैं। जबकि बहुत उत्कृष्ट लिखने बालों के हाथ निराशा आती देखी गयी है।
फिर भी देखा गया है कि भले ही कुछ लोग अपने पद का प्रयोग अपने साहित्य का प्रचार करने में कर लेते हैं, पर जल्द ही ऐसा साहित्य सभी के दिमाग से हट जाता है। उत्कृष्ट साहित्य खुद व खुद अपनी पहचान बनाता है।
आफिस में आज कुछ व्यस्तता रही। व्यर्थ का विवाद भी बढा। जिन्होंने कभी कोई काम किया ही नहीं है, पूरी नौकरी बस मक्खन लगाकर और दूसरों की बुराई कर की है, वे कुछ ज्यादा ही बकबास करते हैं। फिर सुनते भी हैं। शायद कुछ लोगों को अपने पद के सम्मान को सम्हालना भी नहीं आता।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।