देश एक घर है। घर में कई कमरे होते हैं, देश में कई राज्य, कई धर्म, कई भाषा, कई संस्कृति हैं। कमरों को अलग करने के लिए घर के भीतर दीवारें तो होती हैं मगर एक-दूसरे से मिलने-जुलने के लिए उनमें दरवाज़े खुले होते हैं। घर का हर सदस्य अपने कमरे में पूरी प्राइवेसी के साथ रहता है, मगर बावजूद इसके वो एक ही छत के नीचे सांस लेते हैं। हर घर का अपना एक कानून होता है, लेकिन हर कमरे में भी अलग से छोटे-छोटे नियम होते हैं, मसलन भगवान जी वाले रूम में चप्पल ना ले जाना!!
घर के लोग एक-दूसरे से अक्सर मिलते हैं। कभी खाने के टेबल पर तो कभी लिविंग रूम में। वो जीने के एक-दूसरे के तरीकों में दखल नहीं देते, पर फिर भी थोड़ी बहुत बातों को सारे ही मानते हैं। घर में समस्या हो तो सब एक हो जाते हैं। उस दौरान अपने रहन-सहन को कुछ वक्त के लिए छोड़कर ज़रूरत के हिसाब से भी काम करने लगते हैं।
एक आदर्श घर के लोग अपनी-अपनी पहचान और तौर तरीकोंं से जियो और जीने दो पर चलते हैं। ऐसा होने पर बंटवारे नहीं होते बल्कि घर मज़बूत हो जाता है। घर का मुखिया भी सबको आर्मी वालों की तरह नहीं हांकता बल्कि वो बूढ़े बरगद की तरह चुपचाप सबको छांव देता हुआ मौन रहता है। जब जिसे ज़रूरत हो तब उसे थोड़ा ज़्यादा सहारा दे दिया।
देश ऐसा ही होता है, घर के जैसा।
ये देश घर जैसा रहे कोशिश यही होनी चाहिए। एक-दूसरे के कमरों में घुसकर अमन चैन भंग मत कीजिए। विविधता से भरे देश के लोगों को पारले जी के बिस्कुट जैसा एक बना देना प्रैक्टिकल नहीं है। सरकारें ज़्यादा डिमांडिंग हो जाएंगी तो लोग डिमांडिंग हो जाएंगे.. और जब लोग डिमांडिंग होते हैं तो बंटवारे हो जाते हैं.. देश के भी.. घर के भी।
वक्त है कि संभल जाओ। देश को घर की तरह संभालो। दूसरे कमरे में रहनेवाला हमें पसंद ना भी आए तो उसके साथ मारपीट हल नहीं है।