कह रहे हैं कि "तुम मुसलमान हो ही नहीं सकते.. जैसा तुम लिखते हो और सोचते हो ऐसा कोई मुसलमान नहीं लिखता.. तुम मुसलमानों के दुश्मन हो"
ठीक है.. फिर आप बताईये मुसलमान कैसा होता है? वो क्या लिखता है और क्या सोचता है? आपको नहीं पता? ठीक है मैं बताता हूँ कि आपका वाला आइडियल मुसलमान क्या होता है:
आपके हिसाब से.. मुसलमान वो होता है जो आतंकवाद पर चुप रहे.. मुसलमान वो होता है जो पूरी दुनिया में लाखों लोगों के आतंकवाद के मारे जाने पर खामोशी अख्तियार रखे मगर चार मुसलमान आस पास मर जाएँ तो दहाड़ मार के रोये.. मुसलमान वो होता है जो आलिमों और मौलानाओं की "शातिर हक़ीक़त" को जानते हुवे भी चुप रहे और दुसरे धर्मों के संगठनो के लोगों पर ऊँगली उठा के उन्हें "शातिर" बताता रहे.. मुसलमान वो होता है जो ये जाने कि आस पास कुछ लोग दूसरे धर्म द्वारा मानी जा रही पवित्र गाय की "ह्त्या" में शामिल हैं मगर धूर्त्तता के साथ न तो उन पर कभी ऊँगली उठाये और न उनको रोके.. मुसलमान वो होता है जो सिर्फ अपनी ही कौम का भला सोचे और उन्ही को ज़कात और दान दे मगर जब दुसरे कौम के लोग ये करें तो उनको "साम्प्रादायिक" बोले.. मुसलमान वो होता है जो ये जाने कि उसकी "हदीसों" में ज़हर भरा हुवा है और ये जानते हुवे भी उन्हें सीने से लगाये घूमे और ख़ुद को फ़ख्र से "अहले हदीस" कहे और दूसरों को मनुस्मृति की तरफदारी करने पर "मनुवादी" बोल के गाली दे.. मुसलमान वो होता है जो अपने ख़लीफ़ाओं द्वारा दूसरे धर्मों के लोगों का सफाया करने को उनकी बहादुरी बताये और दुसरे धर्मों के लोग जब ये करें तो उन्हें बुरा भला कहे.. मुसलमान वो होता है जो दूसरे लोगों और देशों पर सेक्युलर होने का दबाव डाले और जहाँ ख़ुद बहुसंख्यक हो जाए उसे तुरंत "इस्लामिक" राष्ट्र बनाने की पैरवी कर दे.. मुसलमान वो होता है जो ख़ुद के धर्म और प्रतीकों की इज्ज़त न करने के लिए लोगों की जान ले ले मगर ख़ुद के दिल में किसी भी "धर्म" या "संस्कृति" के लिए कोई भी इज्ज़त न रखे, बल्कि उन्हें "हराम" समझे.. आपके "मुसलमान होने वाली" परिभाषा की लिस्ट बहुत लम्बी है.. इसलिए अगर आपके मुसलमान होने का "लब्बो लुबाब" देखा जाए तो वो ये है कि आपके हिसाब से मुसलमान होना मतलब "धूर्त" और "मक्कार" होना होता है
इसलिए आप सही कहते हैं कि मैं मुसलमान नहीं हूँ.. और शुक्र है कि मैं "आपका" वाला मुसलमान नहीं हूँ.. आपके लिए फेसबुक और ज़ाती ज़िन्दगी में मक्कारी करना, अपनी कौम की ही बात करना.. सिर्फ उन्हें ही बचाना और उन्ही के भले के लिए सोचना अगर "धर्म" है तो बिलकुल मैं आपके धर्म में नहीं हूँ.. मेरे लिए धर्म आपकी राजनीति का हिस्सा नहीं है
धर्म ये सब है ही नहीं जिन्हें आप "धर्म" समझते हैं.. गुंडों और धूर्त "धार्मिक" लोगों की बातों को आगे बढ़ाना और उनका बचाव करना "धर्म" नहीं होता है.. आपके किसी भी कर्मकांड में धर्म नहीं होता है.. इसे आप बहुत अच्छी तरह से समझ लीजिये.. ट्रेन में, हवाई जहाज़ में और रेल की पटरी पर नमाज़ पढ़ लेना धर्म का हिस्सा नहीं होता है.. कार्टून के लिए बवाल काटना धर्म का हिस्सा नहीं है.. दरअसल अब "आपके" धर्म में धार्मिक कोई बचा ही नहीं है.. देखिये अपने मौलवियों को जो चीख चीख कर तक़रीर करते हैं.. ये मंचों से यहूदी और इसाईयों को गाली देते हैं और आपको ये धर्म लगता है.. ये नेतागिरी आपको अपने "मज़हब" का हिस्सा लगती है.. ये मौलाना मंचों से सिर्फ ये बताते हैं कि कौन जन्नत जाएगा और कौन नहीं.. यकीन मानिए ये सब "हवा" बाज़ी होती है.. न उन्हें जन्नत का कुछ पता है न आपको.. इसलिए आप इतना लड़ मर रहे हैं.. ये सब धर्म नहीं है.. धर्म का इस सब से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है.. इसीलिए इतनी मारकाट मची है आपके यहाँ क्यूंकि "धर्म" गायब हो चुका है आपके "मज़हब" से
धर्म बिलकुल एक अकेले व्यक्ति के "भीतर" की बात होती है.. जब आप धार्मिक होते हैं तो आप भीड़ में जा के प्रार्थना नहीं करते हैं बल्कि आप एकांत चाहते हैं.. भीड़ ने कभी किसी "ईश्वर" के दर्शन किये हैं भला? ये एक ख़ास तरह का कपड़ा, दाढ़ी, चाल ढाल से किसी को अल्लाह मिलता है?
धर्म का तो मकसद ही होता है "अल्लाह" से जुड़ना.. और आप गौर कीजिये कि आपके "धार्मिक" गुरु तो अब किसी "अल्लाह" और उस से "जुड़ने' की बात ही नहीं करते हैं.. वो आपको बताते हैं कि ये करो तो जन्नत में इतना बड़ा महल मिलेगा, ये करो तो हूरें मिलेगी, ये करो तो जन्नत में शराब पियोगे.. ये कभी नहीं आपको बताते हैं कि क्या करो कि "अल्लाह" मिल जाए तुम्हे.. कभी नहीं बताते हैं.. क्यूंकि ये ख़ुद भी नहीं जानते हैं और न इनकी पुश्तों में किसी ने कभी जाना है कुछ.. ये पांचवीं फ़ेल मौलाना आपके आपको "स्नातक" होने का पाठ पढ़ाते हैं
मुहम्मद को "मदरसे" में पढ़ के अल्लाह नहीं मिला था.. मुहम्मद को "गुफा" में ध्यान से मिला था.. मगर ये आपको बताएँगे कि तुम और बड़ी भीड़ बना के नमाज़ पढो.. अपनी ताक़त दिखाओ.. नमाज़ का जितना भी दिखावा आप करोगे उतना ही बड़ा महल आपको जन्नत में मिलेगा.. और इसी सब दिखावे को आपने धर्म समझ लिया है.. अब "आपकी भीड़" आपका धर्म है.. उस भीड़ की "मक्कारी" आपका धर्म है.. और उस "मक्कारी" का बचाव आपका धर्म है.. ये सब धर्म है.. और इसके बीच में "अल्लाह/भगवान" एकदम गायब हो गया है.. राजनीति को आपने "धर्म" समझ रखा है और उसी राजनीति करने वालों को आप "मुसलमान" कहते हैं
इसलिए शुक्र है कि मैं आपका वाला "मुसलमान" नहीं हूँ
मूल लेखक : Tabish Siddiqui