छंद दुर्मिल सवैया (वर्णिक ) शिल्प - आठ सगण सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा, ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२
माँ शैलपुत्री मंच परिवार को सुख स्वास्थ्य और सम्पदा प्रदान करें, मेरे पूरे परिवार के तरफ से शारदीय नवरात्र के प्रतिपदा पर हार्दिक बधाई, मंगल शुभकमाना, ॐ जय माता दी....... ॐ जय माँ शारदे.....!
“दुर्मिलसवैया”
शिव शंकर रूप अपार सखी, नर नारि निहार दुलार सखी
शिव धाम गणेश सुहाय रहे, सह मूषक वाहन प्यार सखी।
इक देह शिवा शिव धारि लियो, भव के हित खेवनहार सखी।
कर ज़ोर करूँ विनती प्रभु से, खुशियाँ भर दें परिवार सखी॥
अपने मन की मलिका दुरगा (दुर्गा), जय माँ जय हो सुखदा समता।
सिंह वाहिनि माँ शुभदा सरिता, विनयावत को प्रभुता क्षमता।
करुणा जननी जग में भर दे, विनती सुन ले महिमा ममता।
जिनके घर में अपराध चढ़े, उनके अँगना भर दे मृदुता ॥
नवरी नवरात सुहात समी, दियना नयना पुलकात जमी।
पद कोमलता नगरी सगरी, धरनी छलकी ममता सु अमी।
सुत ‘गौतम’ राह निहार रह्यो, जगदंब विलंब न आय वरो।
यह जीवन तो उपहार दियो, अब पूजन माँ स्वीकार करो॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी