shabd-logo

एक ज़ाहिदा, एक फ़ाहिशा

24 अप्रैल 2022

44 बार देखा गया 44


जावेद मसऊद से मेरा इतना गहरा दोस्ताना था कि मैं एक क़दम भी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उठा नहीं सकता था। वो मुझ पर निसार था मैं उस पर। हम हर रोज़ क़रीब-क़रीब दस-बारह घंटे साथ साथ रहते।


वो अपने रिश्तेदारों से ख़ुश नहीं था इसलिए जब भी वो बात करता तो कभी अपने बड़े भाई की बुराई करता और कहता सग बाश बिरादर खु़र्द बाश। और कभी कभी घंटों ख़ामोश रहता, जैसे ख़ला में देख रहा है। मैं उसके इन लम्हात से तंग आकर जब ज़ोर से पुकारता, “जावेद ये क्या बेहूदगी है?”


वो एक दम चौंकता और माज़रत करता, “ओह, सआदत भाई माफ़ करना... अच्छा तो फिर क्या हुआ?”


वो उस वक़्त बिल्कुल ख़ाली-उल-ज़हन होता। मैं कहता, “भई जावेद देखो, मुझे तुम्हारा ये वक़तन- फ़वक़तन मालूम नहीं किन गहराईयों में खो जाना बिल्कुल पसंद नहीं। मुझे तो डर लगता है, एक दिन तुम पागल हो जाओगे।”


ये सुन कर जावेद बहुत हँसा, “पागल होना बहुत मुश्किल है सआदत।”


लेकिन आहिस्ता आहिस्ता उसका खला में देखना बढ़ता गया और उसकी ख़ामोशी तवील सुकूत में तबदील होगई और वो प्यारी सी मुस्कुराहट जो उसके होंटों पर हर वक़्त खेलती रहती थी बिल्कुल फीकी पड़ गई।


मैंने एक दिन उससे पूछा, “आख़िर बात क्या है, तुम ठहरे पानी बन गए हो... हुआ क्या है तुम्हें? मैं तुम्हारा दोस्त हूँ, ख़ुदा के लिए मुझसे तो अपना राज़ न छुपाओ।”


जावेद ख़ामोश रहा। जब मैंने उसको बहुत लॉन तान की तो उसने अपनी ज़ुबान खोली, “मैं कॉलिज से फ़ारिग़ हो कर डेढ़ बजे के क़रीब आऊँगा। उस वक़्त तुम्हें जो पूछना होगा बता दूंगा।”


वादे के मुताबिक़ वो ठीक डेढ़ बजे मेरे यहां आया। वो मुझसे चार साल छोटा था, बेहद ख़ूबसूरत। उस में निस्वानियत की झलक थी। पढ़ाई से मुझे कोई दिलचस्पी नहीं थी। इसलिए मैं आवारागर्द था लेकिन वो बाक़ायदगी के साथ तालीम हासिल कर रहा था।


मैं उसको अपने कमरे में ले गया, जब मैंने उसको सिगरेट पेश किया तो उसने मुझसे कहा, “तुम मेरे रोग के मुतअल्लिक़ पूछना चाहते थे?”


मैंने कहा, “मुझे मालूम नहीं रोग है या सोग, बहर हाल तुम नॉर्मल हालत में नहीं हो, तुम्हें कोई न कोई तकलीफ़ ज़रूर है।”


वो मुस्कुराया, “है, इसलिए कि मुझे एक लड़की से मुहब्बत होगई है।”


“मुहब्बत!” मैं बौखला गया... जावेद की उम्र बमुश्किल अठार बरस की होगी। ख़ुद एक ख़ूबरू लड़की के मानिंद, उसको किस लड़की से मुहब्बत हो सकती है, या होगई है, वो तो कुंवारी लड़कियों से कहीं ज़्यादा शर्मीला और लचकीला था। वो मुझसे बातें करता, तो मुझे यूं महसूस होता कि वो एक दहक़ानी दोशीज़ा है जिसने पहली दफ़ा कोई इश्क़िया फ़िल्म देखा है। आज वही मुझसे कह रहा था कि मुझे एक लड़की से मुहब्बत होगई है।


मैंने पहले समझा शायद मज़ाक़ कर रहा है मगर उसका चेहरा बहुत संजीदा था। ऐसा लगता था कि फ़िक्र की अथाह गहराईयों में डूबा हुआ है। आख़िर मैंने पूछा, “किस लड़की से मुहब्बत हो गई है तुम्हें?”


उसने कोई झेंप महसूस न की, “एक लड़की है ज़ाहिदा, हमारे पड़ोस में रहती है, बस उससे मुहब्बत होगई है। उम्र सोलह बरस के क़रीब है, बहुत ख़ूबसूरत है और भोली-भाली। चोरी-छिपे उससे कई मुलाक़ातें हो चुकी हैं, उसने मेरी मुहब्बत क़बूल कर ली है।”


मैंने उससे पूछा, “तो फिर इस उदासी का मतलब क्या है जो तुम पर हर वक़्त छाई रहती है।”


उसने मुस्कुरा कर कहा, “सआदत तुमने कभी मुहब्बत की हो तो जानो, मुहब्बत उदासी का दूसरा नाम है। हर वक़्त आदमी खोया खोया सा रहता है, इसलिए कि उसके दिल-ओ-दिमाग़ में सिर्फ़ ख़याल-ए-यार होता है। मैंने ज़ाहिदा से तुम्हारा ज़िक्र किया और उससे कहा कि तुम्हारे बाद अगर कोई हस्ती मुझे अज़ीज़ है तो वो मेरा दोस्त सआदत है।”


“ये कहने की क्या ज़रूरत थी?”


“बस, मैंने कह दिया और ज़ाहिदा ने बड़ा इश्तियाक़ ज़ाहिर किया कि मैं तुम्हें उससे मिलाऊं। उसे मेरी वो चीज़ पसंद है जिसे मैं पसंद करता हूँ। बोलो, चलोगे अपनी भाबी को देखने।”


मेरी समझ में कुछ न आया कि उससे क्या कहूं? उसके पतले-पतले नाज़ुक होंटों पर लफ़्ज़ भाबी सजता नहीं था।


“मेरी बात का जवाब दो।”


मैंने सरसरी तौर पर कह दिया, “चलेंगे... ज़रूर चलेंगे, पर कहाँ?”


“उसने मुझसे कहा था कि कल वो शाम को पाँच बजे किसी बहाने से लॉरेंस गार्डन आएगी, आप अपने प्यारे दोस्त को ज़रूर साथ लाइएगा। अब तुम कल तैयार रहना, बल्कि ख़ुद ही पाँच बजे से पहले पहले वहां पहुंच जाना। हम जिमखाना क्लब के उस तरफ़ लॉन में तुम्हारा इंतज़ार करते होंगे।”


मैं इनकार कैसे करता, इसलिए कि मुझे जावेद से बेहद प्यार था, मैंने वादा कर लिया लेकिन मुझे उस पर कुछ तरस आरहा था। मैंने उससे अचानक पूछा, “लड़की शरीफ़ और पाकबाज़ है ना?”


जावेद का चेहरा ग़ुस्से से तमतमाने लगा। “मैं ज़ाहिदा के बारे में ऐसी बातें सोच सकता हूँ न सुन सकता हूँ, तुम्हें अगर उससे मिलना है तो कल शाम को ठीक पाँच बजे लॉरेंस गार्डन पहुंच जाना, ख़ुदा हाफ़िज़।”


जब वो एक दम उठ कर चला गया तो मैंने सोचना शुरू किया। मुझे बड़ी नदामत महसूस हुई कि मैंने क्यों उससे ऐसा सवाल किया जिससे उसके जज़्बात मजरूह हुए, आख़िर वो उससे मुहब्बत करता था। अगर कोई लड़की किसी से मुहब्बत करे तो ज़रूरी नहीं वो बदकिर्दार हो।


जावेद मुझे अपना मुख़लिस तरीन दोस्त यक़ीन करता था, यही वजह है कि वो नाराज़ी के बावजूद मुझसे ब्रहम न हुआ और मुझको जाते हुए कह गया कि वो शाम को लॉरेंस गार्डन आए।


मैं सोचता था कि ज़ाहिदा से मिल कर मैं उससे किस क़िस्म की बातें करूंगा? बेशुमार बातें मेरे ज़ेहन में आईं लेकिन वो इस क़ाबिल नहीं थीं कि किसी दोस्त की महबूबा से की जाएं। मेरे मुतअल्लिक़ ख़ुदा मालूम वो उससे क्या कुछ कह चुका था, यक़ीनन उसने मुझसे अपनी मुहब्बत का इज़हार बड़े वालिहाना तौर पर क्या होगा। ये भी हो सकता है कि ज़ाहिदा के दिल में मेरी तरफ़ से हसद पैदा होगया हो क्योंकि औरतें अपने आशिकों की मुहब्बत बटते नहीं देख सकतीं। शायद मेरा मज़ाक़ उड़ाने के लिए उसने जावेद से कहा हो कि तुम मुझे अपने प्यारे दोस्त से ज़रूर मिलाओ।


बहरहाल मुझे अपने अज़ीज़ तरीन दोस्त की महबूबा से मिलना था। उस तक़रीब पर मैंने सोचा, कोई तोहफ़ा तो ले जाना चाहिए। रात भर ग़ौर करता रहा, आख़िर एक तोहफ़ा समझ में आया कि सोने के टॉप्स ठीक रहेंगे। अनारकली में गया तो सब दुकानें बंद, मालूम हुआ कि इतवार की ता’तील है लेकिन एक जौहरी की दुकान खुली थी। उससे टॉप्स ख़रीदे और वापस घर आया। चार बजे तक शश-ओ-पंज में मुबतला रहा कि जाऊं या न जाऊं। मुझे कुछ हिजाब सा महसूस हो रहा था। लड़कियों से बेतकल्लुफ़ बातें करने का मैं आदी नहीं था, इसलिए मुझ पर घबराहट का आ’लम तारी था।


दोपहर का खाना खाने के बाद मैंने कुछ देर सोना चाहा मगर करवटें बदलता रहा। टॉप्स मेरे तकिए के नीचे पड़े थे। ऐसा लगता था कि दो दहकते हुए अंगारे हैं। उठा, ग़ुस्ल किया। इसके बाद शेव... फिर नहाया और कपड़े बदल कर बड़े कमरे में क्लाक की टिक टिकट सुनने लगा।


तीन बज चुके थे। अख़बार उठाया, मगर उसकी एक ख़बर भी न पढ़ सका, अजब मुसीबत थी। इश्क़ मेरा दोस्त जावेद कर रहा था और मैं एक क़िस्म का मजनूं बन गया था।


मेरा बेहतरीन सूट रैंकन का सिला हुआ मेरे बदन पर था। रूमाल नया, शू भी नए। मैंने ये सिंघार इस लिए किया था कि जावेद ने जो तारीफ़ के पुल ज़ाहिदा के सामने बांधे हैं कहीं टूट न जाएं।


साढे़ चार बजे में उठा अपनी रेले की सब्ज़ साईकल ली और आहिस्ता आहिस्ता लॉरेंस गार्डन रवाना होगया। जिमखाना क्लब के उस तरफ़ लॉन में मुझे जावेद दिखाई दिया, वो अकेला था। उसने ज़ोर का नारा बुलंद किया। मैं जब साईकल पर से उतरा तो वो मेरे साथ चिमट गया, कहने लगा, “तुम पहले ही पहुंच गए बहुत अच्छा किया। ज़ाहिदा अब आती ही होगी, मैंने उससे कहा था कि मैं अपनी कार भेज दूँगा मगर वो रज़ामंद न हुई, तांगे में आएगी।”


जावेद के बाप की एक कार थी। बेबी ऑस्टिन, ख़ुदा मालूम किस सदी का मॉडल था। ज़्यादा तर ये जावेद ही के इस्तेमाल में आती थी। लॉरेंस गार्डन में दाख़िल होते वक़्त ये अजूबा-ए-रोज़गार मोटर देख ली थी। मैंने उससे कहा, “आओ बैठ जाएं।”


लेकिन वो रज़ामंद न हुआ। मुझसे कहने लगा, “तुम ऐसा करो... बाहर गेट पर जाओ, एक ताँगा आएगा जिसमें एक दुबली-पतली लड़की स्याह बुर्क़ा पहने होगी। तुम तांगे वाले को ठहरा लेना और उससे कहना जावेद का दोस्त सआदत हूँ... उसने मुझे तुम्हारे इस्तक़बाल के लिए भेजा है।”


“नहीं जावेद, मुझमें इतनी जुर्रत नहीं।”


“लाहौल वला... जब तुम नाम बता दोगे तो उसे चूँ करने की भी जुर्रत नहीं होगी, तुम्हारी जुर्रत का सवाल ही कहाँ पैदा होता है? यार, ज़िंदगी में कोई न कोई ऐसी चीज़ होनी चाहिए जिसे बाद में याद कर के आदमी महज़ूज़ हो सके। जब ज़ाहिदा से मेरी शादी हो जाएगी तो हम आज के इस वाक़े को याद कर के ख़ूब हंसा करेंगे, जाओ मेरे भाई, वो बस अब आती ही होगी।”


मैं जावेद का कहना कैसे मोड़ सकता था। बादल-ए-नख़्वास्ता चला गया और गेट से कुछ दूर खड़ा रह कर उस तांगे का इंतिज़ार करने लगा जिसमें ज़ाहिदा अकेली काले बुर्के में हो।


आधे घंटे के बाद एक ताँगा अंदर दाख़िल हुआ जिसमें एक लड़की काले रेशमी बुर्के में मलबूस पिछली नशिस्त पर टांगें फैलाए बैठी थी।


मैं झेंपता, सिमटता डरता आगे बढ़ा और तांगे वाले को रोका। उसने फ़ौरन अपना ताँगा रोक लिया। मैंने उससे कहा, “ये सवारी कहाँ से आई है?”


तांगे वाले ने ज़रा सख़्ती से जवाब दिया, “तुम्हें इससे क्या मतलब, जाओ अपना काम करो।”


बुर्क़ापोश लड़की ने महीन से आवाज़ में तांगे वाले को डाँटा, “तुम शरीफ़ आदमियों से बात करना भी नहीं जानते।”


फिर वो मुझसे मुख़ातिब हुई, “आपने ताँगा क्यों रोका था जनाब?”


मैंने हकला के जवाब दिया, “जावेद... जावेद... मैं जावेद का दोस्त सआदत हूँ, आपका नाम ज़ाहिदा है ना।”


उसने बड़ी नर्मी से जवाब दिया, “जी हाँ! मैं आपके मुतअल्लिक़ उनसे बहुत सी बातें सुन चुकी हूँ।”


“उसने मुझसे कहा था कि मैं आपसे इसी तरह मिलूं और देखूं कि आप मुझसे किस तरह पेश आती हैं। वो उधर जिमखाना क्लब के पास घास के तख़्ते पर बैठा आपका इंतिज़ार कर रहा है।”


उसने अपनी नक़ाब उठाई, अच्छी-ख़ासी शक्ल-सूरत थी। मुस्कुरा कर मुझसे कहा, “आप अगली नशिस्त पर बैठ जाइए। मुझे एक ज़रूरी काम है, अभी चंद मिनटों में लौट आयेंगे। आपके दोस्त को ज़्यादा देर तक घास पर नहीं बैठना पड़ेगा।”


मैं इनकार नहीं कर सकता था। अगली नशिस्त पर कोचवान के साथ बैठ गया। ताँगा असैंबली हाल के पास से गुज़रा तो मैंने तांगे वाले से कहा, “भाई साहब यहां कोई सिगरेट वाले की दुकान हो तो ज़रा देर के लिए ठहर जाना मेरे सिगरेट ख़त्म होगए हैं।”


ज़रा आगे बढ़े तो सड़क पर एक सिगरेट-पान वाला बैठा था। तांगे वाले ने अपना ताँगा रोका। मैं उतरा तो ज़ाहिदा ने कहा, “आप क्यों तकलीफ़ करते हैं, ये तांगे वाला ले आएगा।”


मैंने कहा, “इसमें तकलीफ़ की क्या बात है”, और उस पान-सिगरेट वाले के पास पहुंच गया। एक डिबिया गोल्ड फ्लेक की ली एक माचिस और दो पान, जब पाँच के नोट से बाक़ी पैसे लेकर मुड़ा तो कोचवान मेरे पीछे खड़ा था। उसने दबी ज़बान में मुझसे कहा, “हुज़ूर इस औरत से बच के रहिएगा।”


मैं बड़ा हैरान हुआ, “क्यों?”


कोचवान ने बड़े वुसूक़ से कहा, “फ़ाहिशा है, इसका काम ही यही है कि शरीफ़ और नौजवान लड़कों को फांसती रहे, मेरे तांगे में अक्सर बैठती है।”


ये सुन कर मेरे औसान ख़ता होगए। मैंने तांगे वाले से कहा, “ख़ुदा के लिए तुम इसे वहीं छोड़ आओ जहां से लाए हो, कह देना कि मैं उसके साथ जाना नहीं चाहता, इसलिए कि मेरा दोस्त वहां लॉरेंस गार्डन में इंतिज़ार कर रहा है।”


तांगे वाला चला गया, मालूम नहीं उसने ज़ाहिदा से क्या कहा? मैंने एक दूसरा ताँगा लिया और सीधा लॉरेंस गार्डन पहुंचा। देखा जावेद एक ख़ूबसूरत लड़की से मह्वे गुफ़्तुगू है। बड़ी शर्मीली और लजीली थी। मैं जब पास आया तो उसने फ़ौरन अपने दुपटटे से मुँह छुपा लिया।


जावेद ने बड़ी ख़फ़्गी आमेज़ लहजे में मुझसे कहा, “तुम कहाँ ग़ारत होगए थे, तुम्हारी भाबी कब की आई बैठी हैं।”


समझ में न आया क्या कहूं, सख़्त बौखला गया। उस बौखलाहट में ये कह गया, “तो वो कौन थीं जो मुझे तांगे में मिलीं?”


जावेद हंसा, “मज़ाक़ न करो मुझ से, बैठ जाओ और अपनी भाबी से बातें करो। ये तुमसे मिलने की बहुत मुश्ताक़ थीं।”


मैं बैठ गया और कोई सलीक़े की बात न कर सका इसलिए कि मेरे दिल-ओ-दिमाग़ पर वो लड़की या औरत मुसल्लत हो गई थी जिसके मुतअल्लिक़ तांगे वाले ने मुझे बड़े ख़ुलूस से बता दिया था कि फ़ाहिशा है। 

42
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की इरोटिक कहानियाँ
0.0
सवाल यह हैं की जो चीज जैसी हैं उसे वैसे ही पेश क्यू ना किया जाये मैं तो बस अपनी कहानियों को एक आईना समझता हूँ जिसमें समाज अपने आपको देख सके.. अगर आप मेरी कहानियों को बर्दास्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब यह हैं की ये ज़माना ही नक़ाबिल-ए-बर्दास्त हैं||
1

खुदकुशी का इक़दाम

23 अप्रैल 2022
64
0
0

इक़बाल के ख़िलाफ़ ये इल्ज़ाम था कि उसने अपनी जान को अपने हाथों हलाक करने की कोशिश की, गो वो इसमें नाकाम रहा। जब वो अदालत में पहली मर्तबा पेश किया गया तो उसका चेहरा हल्दी की तरह ज़र्द था। ऐसा मालूम होता

2

औरत ज़ात

23 अप्रैल 2022
35
1
1

महाराजा ग से रेस कोर्स पर अशोक की मुलाक़ात हुई। इसके बाद दोनों बेतकल्लुफ़ दोस्त बन गए। महाराजा ग को रेस के घोड़े पालने का शौक़ ही नहीं ख़ब्त था। उसके अस्तबल में अच्छी से अच्छी नस्ल का घोड़ा मौजूद था औ

3

ब्लाउज़

23 अप्रैल 2022
31
2
0

कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उसको ऐसा महसूस होता था कि उसका वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द

4

इंक़िलाब पसंद

23 अप्रैल 2022
10
0
0

मेरी और सलीम की दोस्ती को पाँच साल का अर्सा गुज़र चुका है। उस ज़माने में हम ने एक ही स्कूल से दसवीं जमात का इम्तिहान पास किया, एक ही कॉलेज में दाख़िल हूए और एक ही साथ एफ़-ए- के इम्तिहान में शामिल हो कर

5

बू

23 अप्रैल 2022
10
0
0

बरसात के यही दिन थे। खिड़की के बाहर पीपल के पत्ते इसी तरह नहा रहे थे । सागवन के स्प्रिन्गदार पलंग पर, जो अब खिड़की के पास थोड़ा इधर सरका दिया गया, एक घाटन लड़की रणधीर के साथ लिपटी हुई थी। खिड़की

6

अक़्ल दाढ़

23 अप्रैल 2022
6
0
0

“आप मुँह सुजाये क्यों बैठे हैं?” “भई दाँत में दर्द हो रहा है... तुम तो ख़्वाह-मख़्वाह...” “ख़्वाह-मख़्वाह क्या... आपके दाँत में कभी दर्द हो ही नहीं सकता।” “वो कैसे?” “आप भूल क्यों जाते हैं क

7

इज़्ज़त के लिए

23 अप्रैल 2022
3
0
0

चवन्नी लाल ने अपनी मोटर साईकल स्टाल के साथ रोकी और गद्दी पर बैठे बैठे सुबह के ताज़ा अख़बारों की सुर्ख़ियों पर नज़र डाली। साईकल रुकते ही स्टाल पर बैठे हुए दोनों मुलाज़िमों ने उसे नमस्ते कही थी। जिसका जवा

8

दो क़ौमें

23 अप्रैल 2022
3
0
0

मुख़्तार ने शारदा को पहली मर्तबा झरनों में से देखा। वो ऊपर कोठे पर कटा हुआ पतंग लेने गया तो उसे झरनों में से एक झलक दिखाई दी। सामने वाले मकान की बालाई मंज़िल की खिड़की खुली थी। एक लड़की डोंगा हाथ में ल

9

मेरा नाम राधा है

23 अप्रैल 2022
7
0
0

ये उस ज़माने का ज़िक्र है जब इस जंग का नाम-ओ-निशान भी नहीं था। ग़ालिबन आठ नौ बरस पहले की बात है जब ज़िंदगी में हंगामे बड़े सलीक़े से आते थे। आज कल की तरह नहीं कि बेहंगम तरीक़े पर पै-दर-पै हादिसे बरपा हो

10

चौदहवीं का चाँद

23 अप्रैल 2022
5
0
0

अक्सर लोगों का तर्ज़-ए-ज़िंदगी, उनके हालात पर मुनहसिर होता है और बा’ज़ बेकार अपनी तक़दीर का रोना रोते हैं। हालाँकि इससे हासिल-वुसूल कुछ भी नहीं होता। वो समझते हैं अगर हालात बेहतर होते तो वो ज़रूर दुनिया

11

ठंडा गोश्त

23 अप्रैल 2022
10
1
1

ईशर सिंह जूंही होटल के कमरे में दाख़िल हुआ, कुलवंत कौर पलंग पर से उठी। अपनी तेज़ तेज़ आँखों से उसकी तरफ़ घूर के देखा और दरवाज़े की चटख़्नी बंद कर दी। रात के बारह बज चुके थे, शहर का मुज़ाफ़ात एक अजीब पुर-

12

काली शलवार

23 अप्रैल 2022
14
0
0

दिल्ली आने से पहले वो अंबाला छावनी में थी जहां कई गोरे उसके गाहक थे। उन गोरों से मिलने-जुलने के बाइस वो अंग्रेज़ी के दस पंद्रह जुमले सीख गई थी, उनको वो आम गुफ़्तगु में इस्तेमाल नहीं करती थी लेकिन जब

13

खोल दो

23 अप्रैल 2022
15
0
0

अमृतसर से स्शपेशल ट्रेन दोपहर दो बजे को चली और आठ घंटों के बाद मुग़लपुरा पहुंची। रास्ते में कई आदमी मारे गए। मुतअद्दिद ज़ख़्मी हुए और कुछ इधर उधर भटक गए। सुबह दस बजे कैंप की ठंडी ज़मीन पर जब सिराजुद

14

टोबा टेक सिंह

23 अप्रैल 2022
5
1
0

बटवारे के दो-तीन साल बाद पाकिस्तान और हिंदोस्तान की हुकूमतों को ख़्याल आया कि अख़लाक़ी क़ैदियों की तरह पागलों का तबादला भी होना चाहिए यानी जो मुसलमान पागल, हिंदोस्तान के पागलख़ानों में हैं उन्हें पाकिस

15

1919 की एक बात

23 अप्रैल 2022
2
0
0

ये 1919 ई. की बात है भाई जान, जब रूल्ट ऐक्ट के ख़िलाफ़ सारे पंजाब में एजिटेशन हो रही थी। मैं अमृतसर की बात कर रहा हूँ। सर माईकल ओडवायर ने डिफ़ेंस आफ़ इंडिया रूल्ज़ के मातहत गांधी जी का दाख़िला पंजाब में

16

बेगू

24 अप्रैल 2022
3
0
0

तसल्लियां और दिलासे बेकार हैं। लोहे और सोने के ये मुरक्कब में छटांकों फांक चुका हूँ। कौन सी दवा है जो मेरे हलक़ से नहीं उतारी गई। मैं आपके अख़लाक़ का ममनून हूँ मगर डाक्टर साहब मेरी मौत यक़ीनी है। आप क

17

बाँझ

24 अप्रैल 2022
4
0
0

मेरी और उसकी मुलाक़ात आज से ठीक दो बरस पहले अपोलोबंदर पर हुई। शाम का वक़्त था, सूरज की आख़िरी किरनें समुंदर की उन दराज़ लहरों के पीछे ग़ायब हो चुकी थी जो साहिल के बेंच पर बैठ कर देखने से मोटे कपड़े की त

18

बारिश

24 अप्रैल 2022
2
0
0

मूसलाधार बारिश हो रही थी और वो अपने कमरे में बैठा जल-थल देख रहा था... बाहर बहुत बड़ा लॉन था, जिसमें दो दरख़्त थे। उनके सब्ज़ पत्ते बारिश में नहा रहे थे। उसको महसूस हुआ कि वो पानी की इस यूरिश से ख़ुश ह

19

औलाद

24 अप्रैल 2022
1
0
0

जब ज़ुबैदा की शादी हुई तो उसकी उम्र पच्चीस बरस की थी। उसके माँ-बाप तो ये चाहते थे कि सतरह बरस के होते ही उसका ब्याह हो जाये मगर कोई मुनासिब-ओ-मौज़ूं रिश्ता मिलता ही नहीं था। अगर किसी जगह बात तय होने प

20

उसका पति

24 अप्रैल 2022
1
0
0

लोग कहते थे कि नत्थू का सर इसलिए गंजा हुआ है कि वो हर वक़्त सोचता रहता है। इस बयान में काफ़ी सदाक़त है क्योंकि सोचते वक़्त नत्थू सर खुजलाया करता है। उसके बाल चूँकि बहुत खुरदरे और ख़ुश्क हैं और तेल न

21

नंगी आवाज़ें

24 अप्रैल 2022
2
0
0

भोलू और गामा दो भाई थे, बेहद मेहनती। भोलू क़लईगर था। सुबह धौंकनी सर पर रख कर निकलता और दिन भर शहर की गलियों में “भाँडे क़लई करा लो” की सदाएं लगाता रहता। शाम को घर लौटता तो उसके तहबंद के डब में तीन चार

22

आमिना

24 अप्रैल 2022
1
0
0

दूर तक धान के सुनहरे खेत फैले हुए थे जुम्मे का नौजवान लड़का बिंदु कटे हुए धान के पोले उठा रहा था और साथ ही साथ गा भी रहा था; धान के पोले धर धर कांधे भर भर लाए खेत सुनहरा धन दौलत रे बिंदू

23

हतक

24 अप्रैल 2022
1
0
0

दिन भर की थकी मान्दी वो अभी अभी अपने बिस्तर पर लेटी थी और लेटते ही सो गई। म्युनिसिपल कमेटी का दारोग़ा सफ़ाई, जिसे वो सेठ जी के नाम से पुकारा करती थी, अभी अभी उसकी हड्डियाँ-पस्लियाँ झिंझोड़ कर शराब के

24

आम

24 अप्रैल 2022
0
0
0

खज़ाने के तमाम कलर्क जानते थे कि मुंशी करीम बख़्श की रसाई बड़े साहब तक भी है। चुनांचे वो सब उसकी इज़्ज़त करते थे। हर महीने पेंशन के काग़ज़ भरने और रुपया लेने के लिए जब वो खज़ाने में आता तो उसका काम इसी वज

25

वह लड़की

24 अप्रैल 2022
2
0
0

सवा चार बज चुके थे लेकिन धूप में वही तमाज़त थी जो दोपहर को बारह बजे के क़रीब थी। उसने बालकनी में आकर बाहर देखा तो उसे एक लड़की नज़र आई जो बज़ाहिर धूप से बचने के लिए एक सायादार दरख़्त की छांव में आलती पालत

26

असली जिन

24 अप्रैल 2022
0
0
0

लखनऊ के पहले दिनों की याद नवाब नवाज़िश अली अल्लाह को प्यारे हुए तो उनकी इकलौती लड़की की उम्र ज़्यादा से ज़्यादा आठ बरस थी। इकहरे जिस्म की, बड़ी दुबली-पतली, नाज़ुक, पतले पतले नक़्शों वाली, गुड़िया सी। नाम

27

जिस्म और रूह

24 अप्रैल 2022
2
0
0

मुजीब ने अचानक मुझसे सवाल किया, “क्या तुम उस आदमी को जानते हो?” गुफ़्तुगू का मौज़ू ये था कि दुनिया में ऐसे कई अश्ख़ास मौजूद हैं जो एक मिनट के अंदर अंदर लाखों और करोड़ों को ज़र्ब दे सकते हैं, इनकी तक़

28

बादशाहत का ख़ात्मा

24 अप्रैल 2022
0
0
0

टेलीफ़ोन की घंटी बजी, मनमोहन पास ही बैठा था। उसने रिसीवर उठाया और कहा, “हेलो... फ़ोर फ़ोर फ़ोर फाईव सेवन...” दूसरी तरफ़ से पतली सी निस्वानी आवाज़ आई, “सोरी... रोंग नंबर।” मनमोहन ने रिसीवर रख दिया और क

29

ऐक्ट्रेस की आँख

24 अप्रैल 2022
0
0
0

“पापों की गठड़ी” की शूटिंग तमाम शब होती रही थी, रात के थके-मांदे ऐक्टर लकड़ी के कमरे में जो कंपनी के विलेन ने अपने मेकअप के लिए ख़ासतौर पर तैयार कराया था और जिसमें फ़ुर्सत के वक़्त सब ऐक्टर और ऐक्ट्रसें

30

अल्लाह दत्ता

24 अप्रैल 2022
0
0
0

दो भाई थे। अल्लाह रक्खा और अल्लाह दत्ता। दोनों रियासत पटियाला के बाशिंदे थे। उनके आबा-ओ-अजदाद अलबत्ता लाहौर के थे मगर जब इन दो भाईयों का दादा मुलाज़मत की तलाश में पटियाला आया तो वहीं का हो रहा। अल

31

झुमके

24 अप्रैल 2022
0
0
0

सुनार की उंगलियां झुमकों को ब्रश से पॉलिश कर रही हैं। झुमके चमकने लगते हैं, सुनार के पास ही एक आदमी बैठा है, झुमकों की चमक देख कर उसकी आँखें तमतमा उठती हैं। बड़ी बेताबी से वो अपने हाथ उन झुमकों की तर

32

गुरमुख सिंह की वसीयत

24 अप्रैल 2022
0
0
0

पहले छुरा भोंकने की इक्का दुक्का वारदात होती थीं, अब दोनों फ़रीक़ों में बाक़ायदा लड़ाई की ख़बरें आने लगी जिनमें चाक़ू-छुरियों के इलावा कृपाणें, तलवारें और बंदूक़ें आम इस्तेमाल की जाती थीं। कभी-कभी देसी

33

इश्क़िया कहानी

24 अप्रैल 2022
0
0
0

मेरे मुतअ’ल्लिक़ आम लोगों को ये शिकायत है कि मैं इ’श्क़िया कहानियां नहीं लिखता। मेरे अफ़सानों में चूँकि इ’श्क़-ओ-मोहब्बत की चाश्नी नहीं होती, इसलिए वो बिल्कुल सपाट होते हैं। मैं अब ये इ’श्क़िया कहानी लि

34

बाबू गोपीनाथ

24 अप्रैल 2022
0
0
0

बाबू गोपीनाथ से मेरी मुलाक़ात सन चालीस में हुई। उन दिनों मैं बंबई का एक हफ़तावार पर्चा एडिट किया करता था। दफ़्तर में अबदुर्रहीम सेनडो एक नाटे क़द के आदमी के साथ दाख़िल हुआ। मैं उस वक़्त लीड लिख रहा था।

35

मोज़ेल

24 अप्रैल 2022
0
0
0

त्रिलोचन ने पहली मर्तबा... चार बरसों में पहली मर्तबा रात को आसमान देखा था और वो भी इसलिए कि उसकी तबीयत सख़्त घबराई हुई थी और वो महज़ खुली हवा में कुछ देर सोचने के लिए अडवानी चैंबर्ज़ के टेरिस पर चला आ

36

एक ज़ाहिदा, एक फ़ाहिशा

24 अप्रैल 2022
0
0
0

जावेद मसऊद से मेरा इतना गहरा दोस्ताना था कि मैं एक क़दम भी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उठा नहीं सकता था। वो मुझ पर निसार था मैं उस पर। हम हर रोज़ क़रीब-क़रीब दस-बारह घंटे साथ साथ रहते। वो अपने रिश्तेदारों स

37

बुर्क़े

24 अप्रैल 2022
1
0
0

ज़हीर जब थर्ड ईयर में दाख़िल हुआ तो उसने महसूस किया कि उसे इश्क़ हो गया है और इश्क़ भी बहुत अशद क़िस्म का जिसमें अक्सर इंसान अपनी जान से भी हाथ धो बैठता है। वो कॉलिज से ख़ुश ख़ुश वापस आया कि थर्ड

38

आँखें

24 अप्रैल 2022
0
0
0

ये आँखें बिल्कुल ऐसी ही थीं जैसे अंधेरी रात में मोटर कार की हेडलाइट्स जिनको आदमी सब से पहले देखता है। आप ये न समझिएगा कि वो बहुत ख़ूबसूरत आँखें थीं, हरगिज़ नहीं। मैं ख़ूबसूरती और बदसूरती में तमीज़ क

39

अनार कली

24 अप्रैल 2022
3
0
0

नाम उसका सलीम था मगर उसके यार-दोस्त उसे शहज़ादा सलीम कहते थे। ग़ालिबन इसलिए कि उसके ख़द-ओ-ख़ाल मुग़लई थे, ख़ूबसूरत था। चाल ढ़ाल से रऊनत टपकती थी। उसका बाप पी.डब्ल्यू.डी. के दफ़्तर में मुलाज़िम था। तन

40

टेटवाल का कुत्ता

24 अप्रैल 2022
1
0
0

कई दिन से तरफ़ैन अपने अपने मोर्चे पर जमे हुए थे। दिन में इधर और उधर से दस बारह फ़ायर किए जाते जिनकी आवाज़ के साथ कोई इंसानी चीख़ बुलंद नहीं होती थी। मौसम बहुत ख़ुशगवार था। हवा ख़ुद रो फूलों की महक में

41

धुआँ

24 अप्रैल 2022
1
0
0

वो जब स्कूल की तरफ़ रवाना हुआ तो उसने रास्ते में एक क़साई देखा, जिसके सर पर एक बहुत बड़ा टोकरा था। उस टोकरे में दो ताज़ा ज़बह किए हुए बकरे थे खालें उतरी हुई थीं, और उनके नंगे गोश्त में से धुआँ उठ रहा था

42

आर्टिस्ट लोग

24 अप्रैल 2022
4
0
0

जमीला को पहली बार महमूद ने बाग़-ए-जिन्ना में देखा। वो अपनी दो सहेलियों के साथ चहल क़दमी कर रही थी। सबने काले बुर्के पहने थे। मगर नक़ाबें उलटी हुई थीं। महमूद सोचने लगा। ये किस क़िस्म का पर्दा है कि बुर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए