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आमिना

24 अप्रैल 2022

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दूर तक धान के सुनहरे खेत फैले हुए थे जुम्मे का नौजवान लड़का बिंदु कटे हुए धान के पोले उठा रहा था और साथ ही साथ गा भी रहा था;


धान के पोले धर धर कांधे


भर भर लाए


खेत सुनहरा धन दौलत रे


बिंदू का बाप जुम्मा गांव में बहुत मक़बूल था। हर शख़्स को मालूम था कि उसको अपनी बीवी से बहुत प्यार है, उन दोनों का इश्क़ गांव के हर शख़्स को मालूम था। उनके दो बच्चे थे एक बिंदू जिस की उम्र तेरह बरस के क़रीब थी दूसरा चंदू।


सब ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम थे मगर एक रोज़ अचानक जुम्मे की बीवी बीमार पड़ गई, हालत बहुत नाज़ुक हो गई। बहुत इलाज किए, टोने-टोटके आज़माए मगर उसको कोई इफ़ाक़ा न हुआ। जब मर्ज़ मोहलिक शक्ल इख़्तियार कर गया तो उसने अपने शौहर से नहीफ़ लहजे में कहा, “तुम मुझे कबूतरी कहा करते थे और ख़ुद को कबूतर। हम दोनों ने दो बच्चे पैदा किए, अब ये तुम्हारी कबूतरी मर रही है। कहीं ऐसा न हो कि मेरे मरने के बाद तुम कोई और कबूतरी अपने घर ले आओ।”


थोड़ी देर के बाद उस पर हज़यानी कैफ़ियत तारी हो गई। जम्मे की आँखों से आँसू रवां थे और उस की बीवी बोले चली जा रही थी, “तुम और कबूतरी ले आओगे। वो सोचेगी कि जब तक मेरे बच्चे ज़िंदा हैं तुम उससे मोहब्बत नहीं करोगे, चुनांचे वो उनको ज़बह कर के खा जाएगी।”


जुम्मे ने अपनी बीवी से बड़े प्यार के साथ कहा, “सकीना! मैं तुमसे वादा करता हूँ कि ज़िंदगी भर दूसरी शादी नहीं करूंगा मगर तुम्हारे दुश्मन मरें, तुम बहुत जल्द ठीक हो जाओगी।”


सकीना के होंटों पर मुर्दा सी मुस्कुराहट नुमूदार हुई, इसके फ़ौरन बाद उसकी रूह क़फ़स-ए-उंसुरी से परवाज़ कर गई। जुम्मा बहुत रोया। जब उसने अपने हाथों से उसको दफ़न किया तो उसको ऐसा महसूस हुआ कि उसने अपनी ज़िंदगी मनों मिट्टी के नीचे गाड़ दी है।


अब वो हर वक़्त मग़्मूम रहता, काम-काज में उसे कोई दिलचस्पी न रही एक दिन उसके एक वफ़ादार मुज़ारा ने उससे कहा, “सरकार! बहुत दिनों से मैं आपकी ये हालत देख रहा हूँ और जी ही जी में कुढ़ता रहा हूँ। आज मुझसे नहीं रहा गया तो आपसे ये अर्ज़ करने आया हूँ कि आप अपने बच्चों का बहुत ख़याल रखते हैं, अपनी ज़मीनों की तरफ़ कोई तवज्जो नहीं देते। आपको इसका इल्म भी नहीं कितना नुक़्सान हो रहा है।”


जुम्मे ने बड़ी बेतवज्जही से कहा, “होने दो, मुझे किसी चीज़ का होश नहीं।”


“सरकार, आप होश में आइए, चारों तरफ़ दुश्मन ही दुश्मन हैं। ऐसा न हो वो आप की ग़फ़लत से फ़ाएदा उठाकर आपकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर लें। आपसे मुक़द्दमाबाज़ी क्या होगी, मेरी तो यही मुख़्लिसाना राय है कि आप दूसरी शादी कर लें। इससे आपके ग़म का बोझ हल्का हो जाएगा और वो आपके लड़कों से प्यार-मोहब्बत भी करेगी।”


जुम्मे को बहुत ग़ुस्सा आया, “बकवास न करो रमज़ानी, तुम समझते नहीं कि सौतेली माँ क्या होती है, इसके अलावा तुम ये भी तो सोचो मेरी बीवी की रूह को कितना बड़ा सदमा पहुंचेगा।”


बहुत दिनों के इसरार के बाद आख़िर रमज़ानी अपने आक़ा को दूसरी शादी पर रज़ामंद करने में कामयाब हो गया। जब शादी हो गई तो उसने अपने लड़कों को एक अलाहिदा मकान में भेज दिया। हर रोज़ वहां कई कई घंटे रहता और बिंदू और चंदू की दिलजूई करता रहता।


नई बीवी को ये बात बहुत नागवार गुज़री। एक बात और भी थी कि मक्खन-दूध का बेशतर हिस्सा उसके सौतेले बेटों के पास चला जाता था। इससे वो बहुत जलती, उसका तो ये मतलब था कि घर- बार के मालिक वही हैं।


एक दिन जुम्मा जब खेतों से वापस आया तो उसकी नई बीवी ज़ार-ओ-क़तार रोने लगी। जुम्मे ने इस आह-ओ-ज़ारी की वजह पूछी तो उसने कहा, “तुम मुझे अपना नहीं समझते। इसीलिए बच्चों को दूसरे मकान में भेज दिया। मैं उनकी माँ हूँ, कोई दुश्मन तो नहीं हूँ। मुझे बहुत दुख होता है जब मैं सोचती हूँ कि बेचारे अकेले रहते हैं।”


जुम्मा इन बातों से बहुत मुतअस्सिर हुआ और दूसरे ही दिन बिंदू और चंदू को ले आया और उनको सौतेली माँ के हवाले कर दिया जिसने उनको इतने प्यार-मोहब्बत से रखा कि आस-पास के तमाम लोग उसकी तारीफ़ में रतब-उल-लिसान हो गए।


नई बीवी ने जब अपने ख़ाविंद के दिल को पूरी तरह मोह लिया तो एक दिन एक मुज़ारा को बुला कर अकेले में उससे बड़े राज़-दाराना लहजे में कहा, “मैं तुमसे एक काम लेना चाहती हूँ, बोलो करोगे?”


उस मुज़ारा ने जिसका नाम शबराती था, हाथ जोड़ कर कहा, “सरकार! आप माई-बाप हैं, जान तक हाज़िर है।”


नई बीवी ने कहा, “देखो, कल दरिया के पास बहुत बड़ा मेला लग रहा है, मैं अपने सौतेले बच्चों को तुम्हारे साथ भेजूंगी। उनको कश्ती की सैर कराना और किसी न किसी तरह जब कोई और देखता न हो उन्हें गहरे पानी में डुबो देना।”


शबराती की ज़हनियत ग़ुलामाना थी, इसके अलावा उसको बहुत बड़े इनाम का लालच दिया गया था। वो दूसरे रोज़ बिंदू और चंदू को अपने साथ ले गया। उन्हें कश्ती में बिठाया, उसको ख़ुद खेना शुरू किया। दरिया में दूर तक चला गया, जहाँ कोई देखने वाला नहीं था।


उसने चाहा कि उन्हें धक्का दे कर डुबो दे मगर एक दम उसका ज़मीर जाग उठा उसने सोचा इन बच्चों का क्या क़ुसूर है, सिवाए इसके कि उनकी अपनी माँ मर चुकी है और अब ये सौतेली माँ के रहम-ओ-करम पर हैं। बेहतर यही है कि मैं इन्हें किसी शख़्स के हवाले कर दूं और सौतेली माँ से जा कर कह दूँ कि दोनों डूब चुके हैं।


दरिया के दूसरे किनारे उतर कर उसने बिंदू और चंदू को एक ताजिर के हवाले कर दिया जिसने उन को मुलाज़िम रख लिया।


बड़ा लड़का बिंदू खेल-कूद का आदी मेहनत मशक़्क़त से बहुत घबराता था, ताजिर के हाँ से भाग निकला और पैदल चल कर दूसरे शहर में पहुंचा मगर वहाँ उसे एक दौलतमंद आदमी के हाँ जिसका नाम क़लंदर बेग था पनाह लेना पड़ी। क़लंदर बेग नेक दिल आदमी था उसने चाहा कि बिंदू को अपने हाँ नौकर रख ले, चुनांचे उसने उससे पूछा, “बरख़ुरदार! क्या तनख़्वाह लोगे?”


बिंदू ने जवाब दिया, “जनाब मैं तनख़्वाह नहीं लूंगा।”


क़लंदर बेग को किसी क़दर हैरत हुई लड़का शक्ल-ओ-सूरत का अच्छा था, उसमें गंवारपन भी नहीं था। उसने पूछा, “तुम किस ख़ानदान के हो, किस शहर के बाशिंदे हो?”


बिन्दू ने इस सवाल का कोई जवाब न दिया और ख़ामोश रहा फिर रोने लगा। क़लंदर बेग ने उससे मज़ीद इस्तिफ़सार करना मुनासिब न समझा, जब बिंदू को उसके यहाँ रहते हुए काफ़ी अर्सा गुज़र गया तो क़लंदर बेग उसकी ख़ुश अतवारी से बहुत मुतअस्सिर हुआ। एक दिन उसने अपनी बीवी से कहा, बिंदू मुझे बहुत पसंद है। मैं तो सोचता हूँ उससे अपनी एक लड़की ब्याह दूँ ।”


बीवी को अपने ख़ाविंद की ये बात बुरी लगी लेकिन आख़िर उसने कहा, “आप उसके ख़ानदान के मुतअल्लिक़ तो दर्याफ़्त कीजिए।”


क़लंदर बेग ने कहा, “मैंने एक मर्तबा उससे उसके ख़ानदान के मुतअल्लिक़ पूछा तो वो ज़ार-ओ-क़तार रोने लगा। फिर मैंने इस मौज़ू पर उससे कभी गुफ़्तुगू नहीं की।”


बिंदू कई बरस क़लंदर बेग के हाँ रहा, जब बीस बरस का हो गया तो क़लंदर बेग ने अपना सारा कारोबार उसके सपुर्द कर दिया।


काफ़ी अर्सा गुज़र गया एक दिन बिंदू ने बड़े अदब से अपने आक़ा से दरख़्वास्त की, “दरिया के उस पार दूर जो एक गांव है, वहाँ मैं छोटा मकान बनवाना चाहता हूँ। क्या मुझे आप इतना रुपया मरहमत फ़रमा सकते हैं कि मेरी ये ख़्वाहिश पूरी हो जाये।”


“क़लंदर मुस्कुराया तुम जितना रुपया चाहो ले सकते हो बेटा, लेकिन ये बताओ कि तुम दरिया पार उतनी दूर मकान क्यों बनवाना चाहते हो।”


बिंदू ने जवाब दिया, “ये राज़ आप पर अनक़रीब खुल जाएगा।”


बिंदू और चंदू का बाप अपने बेटों के फ़िराक़ में घुल-घुल के मर चुका था। मुज़ारों की बड़ी अबतर हालत थी इसलिए कि ज़मीनों की देख भाल करने वाला कोई भी न था।


बिंदू बहुत सा रुपया लेकर अपने गांव पहुंचा एक पक्का मकान बनवाया और मुज़ारों को ख़ुशहाल कर दिया।


बिंदू का भाई चंदू जिस शख़्स के हाँ मुलाज़िम हुआ था उसने उसको बेटा बना लिया था। एक दफ़ा वो ख़तरनाक तौर पर बीमार पड़ गया तो उस शख़्स की बीवी ने जिसका नाम समद ख़ान था, अपनी बेटी आमिना से कहा कि वो उसकी तीमारदारी करे।”


आमिना बड़ी नाज़ुक इंदाम हसीन लड़की थी। दिन-रात उसने चंदू की ख़िदमत की, आख़िर वो सेहत-मंद हो गया। तीमारदारी के इस दौर में वो कुछ इस तरह घुल मिल गए कि उन दोनों को एक दूसरे से मोहब्बत हो गई।


मगर चंदू सोचता था कि आमिना एक दौलतमंद की लड़की है और मैं महज़ कंगला। उनका आपस में क्या जोड़ है, उसके वालिद भला कब उनकी शादी पर राज़ी होंगे, लेकिन आमिना को किसी क़दर यक़ीन था कि उसके वालिदैन राज़ी हो जाऐंगे, इसलिए कि वो चंदू को बड़ी अच्छी निगाहों से देखते थे।


एक दिन चंदू गाय-भैंसों के रेवड़ को जोहड़ पर पानी पिला रहा था कि आमिना दौड़ती हुई आई, उस की सांस फूली हुई थी, नन्हा सा सीना धड़क रहा था। उसने ख़ुश-ख़ुश चन्दू से कहा, “एक अच्छी ख़बर लाई हूँ, आज मेरी माँ और बाप मेरी शादी की बात कर रहे थे। उन्होंने फ़ैसला किया है कि तुम बड़े अच्छे लड़के हो, इसलिए तुम्हें मेरे साथ ब्याह देना चाहिए।”


चंदू इस क़दर ख़ुश हुआ कि उसने आमिना को उठा कर नाचना शुरू कर दिया।


उन दोनों की शादी हो गई। एक साल के बाद उनके हाँ एक लड़का पैदा हुआ जिसका नाम जमील रखा गया।


जब बिंदू अपने गांव में अच्छी तरह जम गया तो उसने भाई का पता लिया। जाके उससे मिला। दोनों बहुत ख़ुश हुए। बिंदू ने उससे कहा, “अब अल्लाह का फ़ज़ल है, चलो मेरे साथ और दीवानी सँभालो। मैं चाहता हूँ तुम्हारी शादी अपनी साली से करा दूँ, बड़ी प्यारी लड़की है।”


चंदू ने उसको बताया कि वो पहले ही शादीशुदा है, सारे हालात सुनकर बिंदू ने उसको समझाया, “क़लंदर बेग बेहद दौलतमंद आदमी है, उसकी लड़की से शादी कर लो। सारी उम्र ऐश करोगे। आमिना के बाप के पास क्या पड़ा है।”


चंदू अपने भाई की ये बातें सुन कर लालच में आ गया और दौलतमंद आमिना को छोड़ दिया। तलाक़ नामा किसी के हाथ भिजवा दिया और उससे मिले बगै़र चला गया।


चंद रोज़ के बाद ही बिंदू ने अपने भाई की शादी क़लंदर बेग की छोटी लड़की से करा दी। आमिना हैरान-ओ-परेशान थी कि उसका प्यारा चंदू एकदम कहाँ ग़ाएब हो गया, लेकिन उसको यक़ीन था कि वो मुझसे मोहब्बत करता है। एक दिन ज़रूर वापस आ जाएगा। बड़ी देर उसने उसकी वापसी का इंतिज़ार किया और उसकी याद में आँसू बहाती रही। जब वो न आया तो आमिना के बाप ने जमील को साथ लिया और बिंदू के गांव पहुंचा। उसकी मुलाक़ात चंदू से हुई। वो दौलत के नशे में सबको भूल चुका था।


आमिना के बाप ने उसकी बड़ी मिन्नत समाजत की और उससे कहा, “और कुछ नहीं तो अपने इस कमसिन बेटे का ख़याल करो, तुम्हारे बगै़र इस बच्चे की ज़िंदगी क्या है?”


चंदू ने ये कोरा जवाब दिया, “मैं अपनी दौलत और इज़्ज़त इस बच्चे के लिए छोड़ सकता हूँ। जाओ इसे ले जाओ और मेरी नज़रों से दूर कर दो।”


जब आमिना के बाप ने और ज़्यादा मिन्नत समाजत की तो चंदू ने उस बुड्ढे को धक्के दे कर बाहर निकलवा दिया, साथ ही अपने बच्चे को भी।


बूढ़ा बाप ग़म-ओ-अंदोह से चूर घर पहुंचा और आमिना को सारी दास्तान सुना दी। आमिना को इस क़दर सदमा पहुंचा कि पागल हो गई। चंदू पर पे-दर-पे इतने मसाएब आए कि उसकी सारी दौलत उजड़ गई, भाई ने भी आँखें फेर लीं।


बीवी लड़-झगड़ कर अपने मैके चली गई। अब उसको आमिना याद आई, वो उससे मिलने के लिए गया। उसका बेटा जमील हड्डियों का ढांचा उससे घर के बाहर मिला। उसने उसको प्यार किया और आमिना के मुतअल्लिक़ उससे पूछा।


जमील ने उससे कहा, “आओ तुम्हें बताता हूँ, मेरी माँ आज कल कहाँ रहती है?”


वो उसे दूर ले गया और एक क़ब्र की तरफ़ इशारा कर के “यहाँ रहती है आमिना अम्मां।” 

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की इरोटिक कहानियाँ
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पहले छुरा भोंकने की इक्का दुक्का वारदात होती थीं, अब दोनों फ़रीक़ों में बाक़ायदा लड़ाई की ख़बरें आने लगी जिनमें चाक़ू-छुरियों के इलावा कृपाणें, तलवारें और बंदूक़ें आम इस्तेमाल की जाती थीं। कभी-कभी देसी

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इश्क़िया कहानी

24 अप्रैल 2022
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मेरे मुतअ’ल्लिक़ आम लोगों को ये शिकायत है कि मैं इ’श्क़िया कहानियां नहीं लिखता। मेरे अफ़सानों में चूँकि इ’श्क़-ओ-मोहब्बत की चाश्नी नहीं होती, इसलिए वो बिल्कुल सपाट होते हैं। मैं अब ये इ’श्क़िया कहानी लि

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बाबू गोपीनाथ

24 अप्रैल 2022
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बाबू गोपीनाथ से मेरी मुलाक़ात सन चालीस में हुई। उन दिनों मैं बंबई का एक हफ़तावार पर्चा एडिट किया करता था। दफ़्तर में अबदुर्रहीम सेनडो एक नाटे क़द के आदमी के साथ दाख़िल हुआ। मैं उस वक़्त लीड लिख रहा था।

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मोज़ेल

24 अप्रैल 2022
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त्रिलोचन ने पहली मर्तबा... चार बरसों में पहली मर्तबा रात को आसमान देखा था और वो भी इसलिए कि उसकी तबीयत सख़्त घबराई हुई थी और वो महज़ खुली हवा में कुछ देर सोचने के लिए अडवानी चैंबर्ज़ के टेरिस पर चला आ

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एक ज़ाहिदा, एक फ़ाहिशा

24 अप्रैल 2022
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जावेद मसऊद से मेरा इतना गहरा दोस्ताना था कि मैं एक क़दम भी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उठा नहीं सकता था। वो मुझ पर निसार था मैं उस पर। हम हर रोज़ क़रीब-क़रीब दस-बारह घंटे साथ साथ रहते। वो अपने रिश्तेदारों स

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बुर्क़े

24 अप्रैल 2022
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ज़हीर जब थर्ड ईयर में दाख़िल हुआ तो उसने महसूस किया कि उसे इश्क़ हो गया है और इश्क़ भी बहुत अशद क़िस्म का जिसमें अक्सर इंसान अपनी जान से भी हाथ धो बैठता है। वो कॉलिज से ख़ुश ख़ुश वापस आया कि थर्ड

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आँखें

24 अप्रैल 2022
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ये आँखें बिल्कुल ऐसी ही थीं जैसे अंधेरी रात में मोटर कार की हेडलाइट्स जिनको आदमी सब से पहले देखता है। आप ये न समझिएगा कि वो बहुत ख़ूबसूरत आँखें थीं, हरगिज़ नहीं। मैं ख़ूबसूरती और बदसूरती में तमीज़ क

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अनार कली

24 अप्रैल 2022
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नाम उसका सलीम था मगर उसके यार-दोस्त उसे शहज़ादा सलीम कहते थे। ग़ालिबन इसलिए कि उसके ख़द-ओ-ख़ाल मुग़लई थे, ख़ूबसूरत था। चाल ढ़ाल से रऊनत टपकती थी। उसका बाप पी.डब्ल्यू.डी. के दफ़्तर में मुलाज़िम था। तन

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टेटवाल का कुत्ता

24 अप्रैल 2022
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कई दिन से तरफ़ैन अपने अपने मोर्चे पर जमे हुए थे। दिन में इधर और उधर से दस बारह फ़ायर किए जाते जिनकी आवाज़ के साथ कोई इंसानी चीख़ बुलंद नहीं होती थी। मौसम बहुत ख़ुशगवार था। हवा ख़ुद रो फूलों की महक में

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धुआँ

24 अप्रैल 2022
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वो जब स्कूल की तरफ़ रवाना हुआ तो उसने रास्ते में एक क़साई देखा, जिसके सर पर एक बहुत बड़ा टोकरा था। उस टोकरे में दो ताज़ा ज़बह किए हुए बकरे थे खालें उतरी हुई थीं, और उनके नंगे गोश्त में से धुआँ उठ रहा था

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आर्टिस्ट लोग

24 अप्रैल 2022
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जमीला को पहली बार महमूद ने बाग़-ए-जिन्ना में देखा। वो अपनी दो सहेलियों के साथ चहल क़दमी कर रही थी। सबने काले बुर्के पहने थे। मगर नक़ाबें उलटी हुई थीं। महमूद सोचने लगा। ये किस क़िस्म का पर्दा है कि बुर

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