shabd-logo

खोल दो

23 अप्रैल 2022

829 बार देखा गया 829


अमृतसर से स्शपेशल ट्रेन दोपहर दो बजे को चली और आठ घंटों के बाद मुग़लपुरा पहुंची। रास्ते में कई आदमी मारे गए। मुतअद्दिद ज़ख़्मी हुए और कुछ इधर उधर भटक गए।


सुबह दस बजे कैंप की ठंडी ज़मीन पर जब सिराजुद्दीन ने आँखें खोलीं और अपने चारों तरफ़ मर्दों, औरतों और बच्चों का एक मुतलातिम समुंदर देखा तो उसकी सोचने समझने की क़ुव्वतें और भी ज़ईफ़ हो गईं। वो देर तक गदले आसमान को टकटकी बांधे देखता रहा। यूं तो कैंप में हर तरफ़ शोर बरपा था। लेकिन बूढ़े सिराजुद्दीन के कान जैसे बंद थे। उसे कुछ सुनाई नहीं देता था। कोई उसे देखता तो ये ख़याल करता कि वो किसी गहरी फ़िक्र में ग़र्क़ है मगर ऐसा नहीं था। उसके होश-ओ-हवास शल थे। उसका सारा वजूद ख़ला में मुअल्लक़ था।


गदले आसमान की तरफ़ बग़ैर किसी इरादे के देखते देखते सिराजुद्दीन की निगाहें सूरज से टकराईं। तेज़ रोशनी उसके वजूद के रग-ओ-रेशे में उतर गई और वो जाग उठा। ऊपर तले उसके दिमाग़ पर कई तस्वीरें दौड़ गईं। लूट, आग... भागम भाग... स्टेशन... गोलियां... रात और सकीना... सिराजुद्दीन एकदम उठ खड़ा हुआ और पागलों की तरह उसने अपने चारों तरफ़ फैले हुए इंसानों के समुंदर को खंगालना शुरू किया।


पूरे तीन घंटे वो सकीना सकीना पुकारता कैंप में ख़ाक छानता रहा। मगर उसे अपनी जवान इकलौती बेटी का कोई पता न मिला। चारों तरफ़ एक धांदली सी मची थी। कोई अपना बच्चा ढूंढ रहा था, कोई माँ। कोई बीवी और कोई बेटी। सिराजुद्दीन थक हार कर एक तरफ़ बैठ गया और हाफ़िज़े पर ज़ोर दे कर सोचने लगा कि सकीना उससे कब और कहाँ जुदा हुई। लेकिन सोचते सोचते उसका दिमाग़ सकीना की माँ की लाश पर जम जाता जिसकी सारी अंतड़ियां बाहर निकली हुई थीं। इससे आगे वो और कुछ न सोच सकता।


सकीना की माँ मर चुकी थी। उसने सिराजुद्दीन की आँखों के सामने दम तोड़ा था। लेकिन सकीना कहाँ थी जिसके मुतअल्लिक़ उसकी माँ ने मरते हुए कहा था, मुझे छोड़ो और सकीना को लेकर जल्दी यहां से भाग जाओ।


सकीना उसके साथ ही थी। दोनों नंगे पांव भाग रहे थे। सकीना का दुपट्टा गिर पड़ा था। उसे उठाने के लिए उसने रुकना चाहा था मगर सकीना ने चिल्ला कर कहा था, अब्बा जी... छोड़िए। लेकिन उसने दुपट्टा उठा लिया था... ये सोचते-सोचते उसने अपने कोट की उभरी हुई जेब की तरफ़ देखा और उसमें हाथ डाल कर एक कपड़ा निकाला... सकीना का वही दुपट्टा था... लेकिन सकीना कहाँ थी?


सिराजुद्दीन ने अपने थके हुए दिमाग़ पर बहुत ज़ोर दिया मगर वो किसी नतीजे पर न पहुंच सका। क्या वो सकीना को अपने साथ स्टेशन तक ले आया था? क्या वो उसके साथ ही गाड़ी में सवार थी? रास्ते में जब गाड़ी रोकी गई थी और बलवाई अंदर घुस आए थे तो क्या वो बेहोश होगया था जो वो सकीना को उठा करले गए?


सिराजुद्दीन के दिमाग़ में सवाल ही सवाल थे, जवाब कोई भी नहीं था। उसको हमदर्दी की ज़रूरत थी। लेकिन चारों तरफ़ जितने भी इंसान फैले हुए थे सबको हमदर्दी की ज़रूरत थी। सिराजुद्दीन ने रोना चाहा मगर आँखों ने उसकी मदद न की। आँसू जाने कहाँ ग़ायब हो गए थे।


छः रोज़ के बाद जब होश-ओ-हवास किसी क़दर दुरुस्त हुए तो सिराजुद्दीन उन लोगों से मिला जो उसकी मदद करने के लिए तैयार थे। आठ नौजवान थे, जिनके पास लारी थी, बंदूक़ें थीं। सिराजुद्दीन ने उनको लाख लाख दुआएं दीं और सकीना का हुलिया बताया, “गोरा रंग है और बहुत ही ख़ूबसूरत है... मुझ पर नहीं अपनी माँ पर थी... उम्र सत्रह बरस के क़रीब है... आँखें बड़ी बड़ी... बाल स्याह, दाहिने गाल पर मोटा सा तिल... मेरी इकलौती लड़की है। ढूंढ लाओ, तुम्हारा ख़ुदा भला करेगा।”


रज़ाकार नौजवानों ने बड़े जज़्बे के साथ बूढ़े सिराजुद्दीन को यक़ीन दिलाया कि अगर उसकी बेटी ज़िंदा हुई तो चंद ही दिनों में उसके पास होगी।


आठों नौजवान ने कोशिश की। जान हथेलियों पर रख कर वो अमृतसर गए। कई औरतों, कई मर्दों और कई बच्चों को निकाल निकाल कर उन्होंने महफ़ूज़ मुक़ामों पर पहुंचाया। दस रोज़ गुज़र गए मगर उन्हें सकीना कहीं न मिली।


एक रोज़ वो उसी ख़िदमत के लिए लारी पर अमृतसर जा रहे थे कि छः हरटा के पास सड़क पर उन्हें एक लड़की दिखाई दी। लारी की आवाज़ सुन कर वह बिदकी और भागना शुरू कर दिया। रज़ाकारों ने मोटर रोकी और सबके सब उसके पीछे भागे। एक खेत में उन्होंने लड़की को पकड़ लिया। देखा तो बहुत ख़ूबसूरत थी। दाहिने गाल पर मोटा तिल था। एक लड़के ने उससे कहा, “घबराओ नहीं... क्या तुम्हारा नाम सकीना है?”


लड़की का रंग और भी ज़र्द होगया। उसने कोई जवाब न दिया, लेकिन जब तमाम लड़कों ने उसे दम दिलासा दिया तो उसकी वहशत दूर हुई और उसने मान लिया कि वो सिराजुद्दीन की बेटी सकीना है।


आठ रज़ाकार नौजवानों ने हर तरह सकीना की दिलजोई की। उसे खाना खिलाया, दूध पिलाया और लारी में बिठा दिया। एक ने अपना कोट उतार कर उसे दे दिया क्योंकि दुपट्टा न होने के बाइस वो बहुत उलझन महसूस कर रही थी और बार बार बाँहों से अपने सीने को ढाँकने की नाकाम कोशिश में मसरूफ़ थी।


कई दिन गुज़र गए... सिराजुद्दीन को सकीना की कोई ख़बर न मिली। वो दिन भर मुख़्तलिफ़ कैम्पों और दफ़्तरों के चक्कर काटता रहता। लेकिन कहीं से भी उसकी बेटी का पता न चला। रात को वो बहुत देर तक उन रज़ाकार नौजवानों की कामयाबी के लिए दुआएं मांगता रहता। जिन्होंने उसको यक़ीन दिलाया था कि अगर सकीना ज़िंदा हुई तो चंद दिनों ही में वो उसे ढूंढ निकालेंगे।


एक रोज़ सिराजुद्दीन ने कैंप में उन नौजवान रज़ाकारों को देखा, लारी में बैठे थे। सिराजुद्दीन भागा भागा उनके पास गया। लारी चलने ही वाली थी कि उसने पूछा, “बेटा, मेरी सकीना का पता चला?”


सब ने यक ज़बान हो कर कहा, “चल जाएगा, चल जाएगा।” और लारी चला दी।


सिराजुद्दीन ने एक बार फ़िर उन नौजवानों की कामयाबी के लिए दुआ मांगी और उसका जी किसी क़दर हल्का होगया।


शाम के क़रीब कैंप में जहां सिराजुद्दीन बैठा था। उसके पास ही कुछ गड़बड़ सी हुई। चार आदमी कुछ उठा कर ला रहे थे। उसने दरयाफ़्त किया तो मालूम हुआ कि एक लड़की रेलवे लाइन के पास बेहोश पड़ी थी। लोग उसे उठा कर लाए हैं। सिराजुद्दीन उनके पीछे पीछे हो लिया। लोगों ने लड़की को हस्पताल वालों के सुपुर्द किया और चले गए। कुछ देर वो ऐसे ही हस्पताल के बाहर गढ़े हुए लकड़ी के खंबे के साथ लग कर खड़ा रहा। फिर आहिस्ता आहिस्ता अन्दर चला गया। कमरे में कोई भी नहीं था। एक स्ट्रेचर था जिस पर एक लाश पड़ी थी। सिराजुद्दीन छोटे छोटे क़दम उठाता उसकी तरफ़ बढ़ा। कमरे में दफ़अतन रोशनी हुई। सिराजुद्दीन ने लाश के ज़र्द चेहरे पर चमकता हुआ तिल देखा और चिल्लाया, “सकीना!”


डाक्टर ने जिसने कमरे में रोशनी की थी सिराजुद्दीन से पूछा, “क्या है?”


सिराजुद्दीन के हलक़ से सिर्फ़ इस क़दर निकल सका, “जी मैं... जी मैं... इसका बाप हूँ!”


डाक्टर ने स्ट्रेचर पर पड़ी हुई लाश की तरफ़ देखा। उसकी नब्ज़ टटोली और सिराजुद्दीन से कहा, “खिड़की खोल दो।”


सकीना के मुर्दा जिस्म में जुंबिश पैदा हुई। बेजान हाथों से उसने इज़ारबंद खोला और शलवार नीचे सरका दी। बूढ़ा सिराजुद्दीन ख़ुशी से चिल्लाया, “ज़िंदा है... मेरी बेटी ज़िंदा है...” डाक्टर सर से पैर तक पसीने में ग़र्क़ हो गया। 

सआदत हसन मंटो की अन्य किताबें

निःशुल्कसआदत हसन मंटो की इरोटिक कहानियाँ  - shabd.in

सआदत हसन मंटो की इरोटिक कहानियाँ

अभी पढ़ें
निःशुल्कसआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ   - shabd.in

सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ

अभी पढ़ें
निःशुल्कसआदत हसन मंटो  की बदनाम कहानियाँ   - shabd.in

सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ

अभी पढ़ें
निःशुल्कसआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानियाँ  - shabd.in

सआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानियाँ

अभी पढ़ें
निःशुल्कसआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ  - shabd.in

सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ

अभी पढ़ें
निःशुल्कसआदत हसन मंटो  के बदनाम लेख  - shabd.in

सआदत हसन मंटो के बदनाम लेख

अभी पढ़ें
निःशुल्कशिकारी औरतें - shabd.in

शिकारी औरतें

अभी पढ़ें
निःशुल्कदस रूपये - shabd.in

दस रूपये

अभी पढ़ें
शब्द mic

अन्य इरोटिक की किताबें

₹ 30/-दहकती चिंगारियाँ  - shabd.in
Dr. Mohd. Israr

दहकती चिंगारियाँ

अभी पढ़ें
निःशुल्कMumbai Escorts  - shabd.in
रहा राओ
₹ 299/-प्रतिघात - shabd.in
संतोष पाठक

प्रतिघात

अभी पढ़ें
₹ 299/- द वॉचमैन -  मर्डर इन रूम नंबर 108  - shabd.in
संतोष पाठक

द वॉचमैन - मर्डर इन रूम नंबर 108

अभी पढ़ें
निःशुल्क0 - shabd.in
Ramlakhan kushwaha
₹ 150/-हृदय की प्यास - shabd.in
आचार्य चतुरसेन शास्त्री

हृदय की प्यास

अभी पढ़ें
₹ 175/-काम-कला के भेद - shabd.in
आचार्य चतुरसेन शास्त्री

काम-कला के भेद

अभी पढ़ें
₹ 250/-लेटलतीफ़ लव - shabd.in
सुरभि सिंघल

लेटलतीफ़ लव

अभी पढ़ें
निःशुल्कसआदत हसन मंटो की इरोटिक कहानियाँ  - shabd.in
सआदत हसन मंटो

सआदत हसन मंटो की इरोटिक कहानियाँ

अभी पढ़ें
₹ 30/-सागर की गोद में  - shabd.in
Hari Shanker Goyal

सागर की गोद में

अभी पढ़ें
सवाल यह हैं की जो चीज जैसी हैं उसे वैसे ही पेश क्यू ना किया जाये मैं तो बस अपनी कहानियों को एक आईना समझता हूँ जिसमें समाज अपने आपको देख सके.. अगर आप मेरी कहानियों को बर्दास्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब यह हैं की ये ज़माना ही नक़ाबिल-ए-बर्दास्त हैं||
1

खुदकुशी का इक़दाम

23 अप्रैल 2022

0
0
1

खुदकुशी का इक़दाम

23 अप्रैल 2022
0
0
2

औरत ज़ात

23 अप्रैल 2022

1
1
2

औरत ज़ात

23 अप्रैल 2022
1
1
3

ब्लाउज़

23 अप्रैल 2022

2
0
3

ब्लाउज़

23 अप्रैल 2022
2
0
4

इंक़िलाब पसंद

23 अप्रैल 2022

0
0
4

इंक़िलाब पसंद

23 अप्रैल 2022
0
0
5

बू

23 अप्रैल 2022

0
0
5

बू

23 अप्रैल 2022
0
0
6

अक़्ल दाढ़

23 अप्रैल 2022

0
0
6

अक़्ल दाढ़

23 अप्रैल 2022
0
0
7

इज़्ज़त के लिए

23 अप्रैल 2022

0
0
7

इज़्ज़त के लिए

23 अप्रैल 2022
0
0
8

दो क़ौमें

23 अप्रैल 2022

0
0
8

दो क़ौमें

23 अप्रैल 2022
0
0
9

मेरा नाम राधा है

23 अप्रैल 2022

0
0
9

मेरा नाम राधा है

23 अप्रैल 2022
0
0
10

चौदहवीं का चाँद

23 अप्रैल 2022

0
0
10

चौदहवीं का चाँद

23 अप्रैल 2022
0
0
11

ठंडा गोश्त

23 अप्रैल 2022

1
1
11

ठंडा गोश्त

23 अप्रैल 2022
1
1
12

काली शलवार

23 अप्रैल 2022

0
0
12

काली शलवार

23 अप्रैल 2022
0
0
13

खोल दो

23 अप्रैल 2022

0
0
13

खोल दो

23 अप्रैल 2022
0
0
14

टोबा टेक सिंह

23 अप्रैल 2022

1
0
14

टोबा टेक सिंह

23 अप्रैल 2022
1
0
15

1919 की एक बात

23 अप्रैल 2022

0
0
15

1919 की एक बात

23 अप्रैल 2022
0
0
16

बेगू

24 अप्रैल 2022

0
0
16

बेगू

24 अप्रैल 2022
0
0
17

बाँझ

24 अप्रैल 2022

0
0
17

बाँझ

24 अप्रैल 2022
0
0
18

बारिश

24 अप्रैल 2022

0
0
18

बारिश

24 अप्रैल 2022
0
0
19

औलाद

24 अप्रैल 2022

0
0
19

औलाद

24 अप्रैल 2022
0
0
20

उसका पति

24 अप्रैल 2022

0
0
20

उसका पति

24 अप्रैल 2022
0
0
21

नंगी आवाज़ें

24 अप्रैल 2022

0
0
21

नंगी आवाज़ें

24 अप्रैल 2022
0
0
22

आमिना

24 अप्रैल 2022

0
0
22

आमिना

24 अप्रैल 2022
0
0
23

हतक

24 अप्रैल 2022

0
0
23

हतक

24 अप्रैल 2022
0
0
24

आम

24 अप्रैल 2022

0
0
24

आम

24 अप्रैल 2022
0
0
25

वह लड़की

24 अप्रैल 2022

0
0
25

वह लड़की

24 अप्रैल 2022
0
0
26

असली जिन

24 अप्रैल 2022

0
0
26

असली जिन

24 अप्रैल 2022
0
0
27

जिस्म और रूह

24 अप्रैल 2022

0
0
27

जिस्म और रूह

24 अप्रैल 2022
0
0
28

बादशाहत का ख़ात्मा

24 अप्रैल 2022

0
0
28

बादशाहत का ख़ात्मा

24 अप्रैल 2022
0
0
29

ऐक्ट्रेस की आँख

24 अप्रैल 2022

0
0
29

ऐक्ट्रेस की आँख

24 अप्रैल 2022
0
0
30

अल्लाह दत्ता

24 अप्रैल 2022

0
0
30

अल्लाह दत्ता

24 अप्रैल 2022
0
0
31

झुमके

24 अप्रैल 2022

0
0
31

झुमके

24 अप्रैल 2022
0
0
32

गुरमुख सिंह की वसीयत

24 अप्रैल 2022

0
0
32

गुरमुख सिंह की वसीयत

24 अप्रैल 2022
0
0
33

इश्क़िया कहानी

24 अप्रैल 2022

0
0
33

इश्क़िया कहानी

24 अप्रैल 2022
0
0
34

बाबू गोपीनाथ

24 अप्रैल 2022

0
0
34

बाबू गोपीनाथ

24 अप्रैल 2022
0
0
35

मोज़ेल

24 अप्रैल 2022

0
0
35

मोज़ेल

24 अप्रैल 2022
0
0
36

एक ज़ाहिदा, एक फ़ाहिशा

24 अप्रैल 2022

0
0
36

एक ज़ाहिदा, एक फ़ाहिशा

24 अप्रैल 2022
0
0
37

बुर्क़े

24 अप्रैल 2022

0
0
37

बुर्क़े

24 अप्रैल 2022
0
0
38

आँखें

24 अप्रैल 2022

0
0
38

आँखें

24 अप्रैल 2022
0
0
39

अनार कली

24 अप्रैल 2022

0
0
39

अनार कली

24 अप्रैल 2022
0
0
40

टेटवाल का कुत्ता

24 अप्रैल 2022

0
0
40

टेटवाल का कुत्ता

24 अप्रैल 2022
0
0
41

धुआँ

24 अप्रैल 2022

0
0
41

धुआँ

24 अप्रैल 2022
0
0
42

आर्टिस्ट लोग

24 अप्रैल 2022

0
0
42

आर्टिस्ट लोग

24 अप्रैल 2022
0
0
---