वज़्न- २२१ १२२२ २२१ १२२२ काफ़िया- अ रदीफ़ आओगे
“गज़ल”
अनुमान लगा लो रुक फिर से पछताओगे
हर जगह नहीं मिलती मदिरालय की महफिल
ख़्वाहिश के जनाजे को तकते रह जाओगे॥
पदचाप नहीं सुनता अंबर हर सितारों का
जो टूट गए नभ से उन परत खिलाओगे॥
इक बात सभी कहते हद में रहना अच्छा
नजदीक हिमालय के जाकर हिल जाओगे॥
अहसान करो इतना अपने मन के मालिक
उड़ना मत बे-पर तुम गिर कर तड़फाओगे॥
सुंदर लगता सूरज पर रात चाँदनी की
खोकर इस आभा को क्या तुम रह पाओगे॥
गौतम जल जाएगी रौनक इस चाहत से
मुँह हाथ छुपा करके क्या दर्द जिलाओगे॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी