गीतिका चौपाई हास्य रस
राधा मधुबन तेरा आना रोज रोज का नया बहाना
बोल सखी कैसा याराना बैरी मुरली राग बजाना।।
बस कर अब नहि ढ़ोल बजाना मोहन गोकुल गाँव पुराना
बहती यमुना चित हरषाना यशुदा नंदन ग्वाल सयाना।।
सुंदर है तू ऊंचा घराना काहें न लाज शरम जी जाना
सुध बुध खोकर ई गति पाना लौटो जाओ अब बरसाना।।
लला मोर मोहन बचकाना तनि समझो तुम बरस बिताना
जोड़ी कस बड़ छोट सुहाना धीरज धरहु राधिका धाना।।
कर मेहँदी उस समय लगाना जब वर बाबुल घर पहि आना
पहर परख शुभ अति बलवाना यह आशीष धरहु तुम छाना।।
मत लरिकाईं अब पुलकाना चपल बहुत है कान्हा नाना
मोर मुकुट गैयों रि दिवाना फोड़े मटकी दही मखाना।।
ग्वाल बाल सब चोर पुराना वृंदावन है वाहि ठिकाना
साँझ भोर दोपहर बिहाना कब कित जाए को पहिचाना।।
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी