शीर्षक- तर्पण मापनी- 22 22 22 22.......
“मुक्तक”
अर्पण करती हूँ प्यार सनम
तर्पण करती हूँ छार सनम
झंकृत वीणा की मृदु वाणी
अपनापन जीवन सार सनम॥-1
अर्पण तर्पण सत्य समर्पण
हर्षित मन कोमल प्रत्यर्पण
भाव विभाव अनुरूप तुम्हारे
आहुति करती हूँ अब घर्षण॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी