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गणना

13 फरवरी 2024

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गणना
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                 © ओंकार नाथ त्रिपाठी 
  अषाढ़ के महिने में पछुआ हवाओं से कभी उड़ती धूल तो कभी तेज सूरज की धूप से उबलती सी धरती ने जहां किसानों के आंखों का सपना छिन लिया वहीं पर नौनिहालों को दुनिया देखने पहले ही इन्सेफेलाइटिस जैसी जानलेवा बिमारी की आगोश में धकेल दिया।जन जीवन भीषण गर्मी सेअस्त व्यस्त होकर आकाश की ओर आशा भरी निगाहों से देखता रहा लेकिन मानो प्रकृति ने यह ठान ली हो कि भून कर रख देंगे इस बार।तुर्रा यह कि सरकार की अनेक घोषणाओं, आश्वासनों को मुंह चिढ़ाती बिजली की कटौती 4से6,6से8,8से सीधे15-16घंटों तक होने लगी।हद तो तब हो जाती थी जब आधी रात को पूरी बस्ती जाग उठती थी। दिन की भीषण गर्मी,रोज की दिनचर्या,रोजी रोटी के लिए व्यस्तता से थका मांदा जन-जीवन रात की इस भीषण कटौती से नींद न ले पाने की वजह से चिड़चिड़ापन अनिद्रा आदि अनेक बिमारियों का शिकार होने लगा।ऐसे में भला वर्मा एक अदना सा नगर निगम का कर्मचारी अछूता कैसे रह सकता।उप्र से इन दिनों उसकी आर्थिक गणना में लगी हुई ड्यूटी। दरवाजे दरवाजे जाकर आर्थिक गणना करना दाद में खाज का काम कर रही थी।
       वर्मा रोज नौ बजे घर से निकल कर गणना वाले क्षेत्र में दस बजते-बजते पहुंच जाता था।इस समय वही मुहल्ले जो कि शाम से सुबह तक चहकते रहते थे।इस समय शांत,थके से बेजान लगते हैं। पुरुष वर्ग के साथ ही साथ बच्चे तथा कुछ कामकाजी महिलाएं भी घर छोड़ चुकी रहती हैं।केवल रह जाती हैं बुढ़ी औरतें, युवतियां,नववधूवें, गृहणियां तथा ऐसी नवयौवनाएं जो शिक्षा से विरत हो चुकी हैं। वर्मा इसी समय मुहल्लों के सूनेपन में पधारता है। औरतें घर के कामकाज से निपटकर खुद को सजाने संवारने में व्यस्त रहती हैं,या तो सोने में या टीवी देखने मेंऔर वर्मा आर्थिक गणना में।शायद इसीलिए आज वर्मा जब आर्थिक गणना के लिए दरवाजे पर दस्तक दिया तब उसे बड़े आदर भाव से एक नवयौवना की आवाज अन्दर से ही आयी-
 "गेट खुला है।अन्दर आ जाइये।"
 वर्मा अन्दर पहुंच जाता है।एक यही कोई 24-25वर्षीया ठिगनी सी लड़की दरवाजा खोलकर पूरे आत्मीय भाव से कहती है-
  "अन्दर आइये।बैठिये। क्या काम है?"
वर्मा सकुचाते और सहमते हुए अन्दर जाता है।बैठ जाता है।उसे याद हो आता है ट्रेनिंग के समय अपने अधिकारी द्वारा दी गयी हिदायत कि-
  "गणना के समय दरवाजे के अन्दर मत घुसना।"
 वर्मा घबराता है।उसे अब तक यह आभास लग जाता है कि घर में केवल अकेली लड़की है।वह अपना कार्य निपटाकर जल्दी ही निकलना चाहता है लेकिन लड़की की जिद भरी ईच्छा पूरी करने के लिए वह पानी पी लेता है और जल्दी ही गणना की औपचारिकता पूरी करके जैसे ही गेट से बाहर निकलता है,एक जीप रुकती है।उसमें से4-5व्यक्ति असलहों के साथ उतरते हैं। वर्मा को घेर लेते हैं।इसके बाद शुरू हो जाती है वर्मा से पूछ ताछ!मसलन-
 "कौन हो?कैसे अन्दर आ गये?जब कोई पुरुष नहीं था तब अन्दर क्यों चले आये? क्या-क्या पूछे हो?आदि आदि अनेक प्रश्नों के बौछार से वर्मा की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।वह तो भला हो भगवान का कि उस लड़की के हस्तक्षेप से वर्मा वहां से निकल सका।जान बची लाखों पाया।
    अबकी बार वर्मा यह ठान लिया था किकुछ भी हो घर के अन्दर पुरुष के न रहने पर नहीं जाऊंगा।दिन के तीन बज चुके थे।पसीने से लथपथ वर्मा थक भी गया था लेकिन गणना को समय सीमा के अन्दर करने की जिम्मेदारी का भार उसे रुकने,आराम करने नहीं दे रहा था।इस बार वह गुलाबी रंग वाली बिल्डिंग में गया।गेट के बाहर लगी काल बेल की बार बजाने के बाद भी जब कोई अन्दर नहीं मिला तब हार मानकर न चाहते हुए भी गेट स्वत: खोलकर अन्दर गया।
  "कोई है?"
  "........"कोई आवाज नहीं आयी।
   "अरे भई कोई है?"
    "........."फिर कोई आवाज नहीं आयी।
  अन्त में हार मानकर वर्मा दरवाजा खटखटाया।फिर भी कोई अन्तर नहीं पाया।वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करें। अंततः वह दरवाजे को पुश किया। दरवाजा चरमरा कर खुला।यह ड्राइंग रूम का कमरा था। क्योंकि इसमें टीवी,सोफ़ा,सजावटी सामान यही बता रहे थे।कमरे के एक कोने में एक छोटे से दीवान पर यही कोई 27-28वर्ष की सुन्दर युवती स्कर्ट व टाप पहने बेसुध नींद में सोई थी।वह उतान सोई थी। दोनों पैर घुटने से खड़े मुड़कर फैले हुए थे। स्कर्ट सरक गयी थी जिससे उसका पैंटी साफ़ दिखाई दे रहा था। उन्नत उरोज अलसाये से एक तरफ ढ़लक गये थे।उसके ललाट पर पसीने की कुछ चिपचिपाहट थी।यह देखकर वर्मा तो सकपकाया । फिर भी उसकी इच्छा कर रही थी कि वह यह सब देखता रहे। उसकी आंखों की नमी महसूस हो रही थी लेकिन उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी।वह झट पीछे खिसक कर दरवाजा बन्द कर दिया और बाहर से फिर दरवाजा खटखटाने लगा-
  "कौन है?"-उनींदी आवाज में बाला की मधुर आवाज़ आयी।
 "मैं हु। आर्थिक गणना वाला।"-वर्मा बोला।
 "क्या काम है?"-एक अल्हड़ आवाज आयी।
 "आर्थिक गणना के लिए कुछ जानकारी चाहिए।"-वर्मा बोला।
 "अन्दर आ जाइये।"-बेसुध गहरी नींद से जगने का प्रयास करती आवाज आयी।
 वर्मा दरवाजा खोलकर अन्दर चला गया। युवती पूर्ववत की ही दशा में पड़ी रही। वर्मा सोफे पर बैठते ही कहा-
 "हम लोगों को अन्दर आने की मनाही है, लेकिन काम ही ऐसा है कि नहीं चलता।"
 "पूछिये,क्या पूछना है?"-युवती वर्मा को जल्दी निपटाने की‌गरज से उनींदी आवाज में बोली।
 वर्मा गणना से संबंधित प्रश्न पूछता गया। युवती उत्तर देती गयी।इस दौरान वर्मा जहां इस बात से भयाक्रांत था कि कहीं इसके घर वाले न आ जायें, वहीं यह भी चाह रहा था कि ज्यादा से ज्यादा देर तक रुका रहूं क्योंकि उसे युवती की देहयष्टि,उसके अंग प्रत्यंग की झलक स्वत: युवती के ही हाव भाव से मिलती रहती थी। वर्मा की उत्तेजना को विराम लगाया गणना के लिए प्रश्नों की समाप्ति ने। वर्मा अनिच्छा से सहमा हुआ जल्दी जल्दी में कमरे से बाहर निकला।उसकी आंतरिक काया जहां प्रसन्नचित्त थी वहीं पर भयाक्रांत भी।वह जल्दी जल्दी गेट से बाहर निकला।
  वर्मा को कभी-कभी झुंझलाहट होती थी। क्या सोचा था क्या हो गया? नौकरी म्युनिसपिलिटी की उप्र से यह आर्थिक गणना जैसा बेजान काम। संतोष केवल इतना है कि चक्षु व्यायाम हो जाता है। वर्मा भी आखिरकार रसिक तो था ही।इस बार दोपहर के पहले की घटना घटी।समय यही कोई 11.00बजे थे। वर्मा दरवाजे पर दस्तक दिया।उप्र से आवाज आयी।यह किसी प्रोढ़35-40वर्ष की कामिनी काया वाली महिला की आवाज थी।
  "....कौन है?"
"मैं! आर्थिक गणना वाला।"-वर्मा बोला।
"क्या काम है?"-महिला की आवाज आयी।
"कुछ जानकारी लेनी है"-वर्मा बोला।
"उपर ही आइये।"-महिला की आवाज आयी।
"मैं उप्र नहीं आ सकता। हमारे अधिकारी ने साफ मना किया है।"-वर्मा बोला।
 "मैं भी नीचे नहीं आ सकती।नहा कर निकली हूं।"-महिला बोली।
 "रास्ता किधर से है?"-वर्मा पूछा।
"बरामदे की सीढ़ी से आ जाइये।"-महिला बोली।
 वर्मा बरामदे की सीढ़ी के पास जा कर पहुंचा तो देखा कि एक खुबसूरत महिला 35-40वर्ष की मैक्सी पहने अपने गीले बालों को तौलिए से पोंछ रही थी।मैक्सी उसका स्लीवलेस है जिससे उसके कांख के रोंगटे साफ दिखाई दें रहे हैं।शायद अभी अभी नहा कर निकली है इसलिए तो मैक्सी कहीं कहीं पर भीगने के कारण बदन से सट गयी है।कुल्हे,वक्ष,पीठ आदि जगहों पर तो ऐसा ही है। वर्मा सीढ़ी के नीचे तथा महिला सीढ़ी के उपरी छोर पर।वह तौलिए से बाल पोंछती हुई धीरे-धीरे एक एक सीढ़ी उतर रही है।इस दौरान उसके उन्नत उरोजों की अठखेलियों पर वर्मा की नजर टिक जाती है।उरोजों के निप्पल भीगे कपड़े से सट गये हैं जिसके कारण एक हल्की काली छाया दिखाई दे रही है। वर्मा के शरीर में बिजली सी दौड़ रही है।रह रह कर महिला के टांगों के बीच पारदर्शी स्थिति बन जा रही है जिससे उसकी पैंटी भी दिखाई दे रही है।
वर्मा सीढ़ियों से उपर चढ़ रहा है। महिला सीढ़ियों से नीचे उतर रही है, बातें करती हुई।जब अंततःदोनोंकेबीचकी4-5सीढियां ही रह गयीं तब महिला वापस उप्र जाने को मुखातिब होते हुई बोली-
 "अरे!आइये इधर ही बैठ कर बात करते हैं।"
 वर्मा मंत्रमुग्ध होकर उसके पीछे-पीछे हो लिया।
 कब गणना के प्रश्नों को विराम लगा उसे पता ही नहीं चला।वह तो उस सुन्दर देहयष्टि और उसकी सौष्ठव को देखकर मंत्रमुग्ध उसका रसास्वादन करते-करते ही अपने काम को अंजाम दिया।
 वह तो बेहुदा ग्वाला आ गया।महिला दूध लेने निकली। वर्मा को भी आना ही पड़ा।
   वर्मा के आंखों के सामने इस महिला की छवि नाचती रही। वर्मा इसी की उधेड़बुन में न जाने कब मिस्टर मेहरा के घर पहुंच गया।भव्य इमारत सजावटी वनस्पतियों से ओत-प्रोत था। दरवाजे पर कुत्ते से सावधान का बोर्ड लगा था।कालबेल बजते ही एक वृद्ध की आवाज आयी।शायद यह मि.मेहरा हैं।या उनके बाप होंगे।
  "कौन?"
 "मैं गणना वाला"-वर्मा बोला।
 "आइये।"-मि.मेहरा की आवाज आयी।
वर्मा गेट खोलकर अन्दर प्रवेश किया।बरामदे में ईजी चेयर पर एक बुजुर्ग उम्र यही कोई 80-85वर्ष की होगी,बैठे हैं। वर्मा को पास पड़े तख्त पर बैठने का संकेत करते हुए पूछए-
"क्या काम है?"
"मुझे आर्थिक गणना करनी है।उसी से संबंधित कुछ जानकारी लेनी है।"-वर्मा बोला।
"बोलिये क्या जानकारी चाहिए?"-बुजुर्ग मि.मेहरा बोले।
"आपका क्या नाम है?"-वर्मा पूछा।
"जे.आर.मेहरा।"-बुजुर्ग ने जवाब दिया।
"आप क्या करते हैं?,अर्निंग मेंबर कौन है?,कितने बच्चे हैं?आदि अनेक प्रश्न वर्मा करने लगा।"
 बुजुर्ग मेहरा कुछ तो ठीक लेकिन कुछ जवाब दे पाने में असमर्थ लगने लगे तब उन्होंने आवाज दी-
 "श्यामला!"
"हां दादा जी।"-एक स्लीवलेस टाप और स्कर्ट पहनी 22-23वर्षीय सुन्दर बाला आयी।उसके वक्ष बड़े बड़े थे,सिकंदर बड़े कि उसके द्वारा पहने गये टाप में से निकल भागने को मचल रहे थे।उतावले थे।
 "यह गणना कर रहे हैं।इनकी मदद करो।"
 बुजुर्ग मेहरा के कहने पर श्यामला वर्मा के ही बगल में सटकर बैठ गयी। वर्मा आनंदातिरेक में मन ही मन ईश्वर को इस सानिध्य के लिए धन्यवाद देने लगा कि ईश्वर यदि आपने यह उबाऊ तथा नीरस कार्य दिया है तब आपने इसमें समय समय पर रस भी भर दिया। प्रश्नों का उत्तर देते समय श्यामला रह रह कर वर्मा से सटकर,झुककर जब वर्मा के आंखों को पढ़ने की चेष्टा करती थी तब उसके वक्ष वर्मा के कंधों को, बांहों को छू लेते थे जिससे वर्मा के तन मन में सनसनी फैल जाती थी।
  अभी यह सब पूछ-तांछ हो ही रही थी कि उम्र पर बात आकर टिक गयी।
 "श्यामला चिल्ला पड़ी-'भाभी!आपकी उम्र कितनी है?'
इतने में अंदर से गौरवर्णकी28-30वर्षीया
नव वधू बाहर आयी।उसका दायां हाथ जूठ से सना था, शायद वह ख़ान खा रही थी।नीली साड़ी में वह सुन्दरता की देवी लग रही थी।उसके ब्लाउज का गला गोल तथा ज्यादा ही बड़ा था। जिसके कारण ब्रा की पट्टी साफ बाहर दिखाई दे रही थी।वह वर्मा के पास आकर झुककर देखने लगी जिससे उसके वक्ष लटक कर साफ वर्मा की आंखों के आगे आ गये।वह वर्मा के आंकड़े और वर्मा उसके वक्ष को देखने में मशगूल हो गये।
 "मेरी उम्र 29वर्ष लिखिये।"
 अचानक महिला की आवाज सुनकर वर्मा का ध्यान टुटा और आंकड़े भरने लगा।यह सब बातें शायद बुजुर्ग मि.मेहरा को अच्छी नहीं लगतीं।वह बोल उठए-
 "श्यामला!तुम सब अंदर जाओ।"
"क्यों भाई!और कुछ तो नहीं न जानना है?"-मि.मेहरा वर्मा की छुट्टी करने की मुद्रा में पूछे।
 "नहीं। सहयोग के लिए धन्यवाद।"-कहकर वर्मा अपने कागज समेट कर चल दिया।
  शाम हो चली है। वर्मा भी थक चुका है।वह अब घर की तरफ मुखातिब होता है।रास्ते भर मन गणना करते हुए आर्थिक गणना नहीं बल्कि मिलने वाली युवतियां और नव यौवनाओं,कामिनीयों,कमीनों की गणना करते हुए उसका मन मस्तिष्क इन मनोहारियों के अंग प्रत्यंग की गणना करते करते अभी इसी में व्यस्त था कि अचानक -
 "मम्मी! मम्मी!!पापा आ गये।"-कई आवाज ने वर्मा की तंद्रा तोड़ दी। वर्मा कब अपने घर पहुंच गया उसे इसका भान ही नहीं हो सका।उसके बच्चे उसे घेर लिये।किसी ने चाकलेट मांगी तो किसी ने पेंसिल खत्म हो जाने की बात की।तब तक सबसे छोटा बच्चा वर्मा का पैंट पकड़कर कहने लगा-
 "पापा!पापा!! मम्मी मुझे गुब्बारा नहीं खरीदी।"
वर्मा कभी झुंझलाकर तो कभी बच्चों को पुचकार कर कपड़े बदलने लगा।
  पत्नी वर्मा के सामने बिस्कुट पानी ले आकर रखते हुए बोली -
  "पानी पी लीजिए।"
वर्मा पानी पी कर अभी चारपाई पर छोटे बच्चे के साथ लेटा ही था कि पत्नी एक पर्ची थमाते हुए वर्मा से बोली-
"तेल,सब्जी,चीनी,चायपत्ती,बिस्कुट,नमक खत्म हो गया है।देर हो रही है। खाना कब पकेगा? बच्चे सो जायेंगे।"
 वर्मा यह सब सुनते ही झुंझलाते हुए उठा।कपड़ा पहनने लगा।अपनी मजबूरी पर झुंझलाते हुए पत्नी को तसल्ली भरे लहजे में कहते हुए बड़बड़ाने लगा-
 "केवल 95.00रुपये है।30 रुपए का तेल,20 रुपये की सब्जी,10 रुपये की चीनी,16 रुपये की चायपत्ती,10 रुपये का बिस्कुट,8 रुपये का नमक, कुल94 रुपया,बेचेगा 1 रुपया।कल आफिस भी जाना है।
  झोला लेकर वर्मा फिर बाजार में सामान खरीदने चल दिया।मन में अपने जेब की आर्थिक गणना करते हुए जिसे वह प्रायः रोज ही करता है।इतनी कम आय और इतनी आवश्यकताएं।उसके सामने दिनभर मिली कामिनीयों का चित्र नहीं आ रहा है।वह तो यह सोच रहा है कि कहां से दो चार रुपये की कटौती करें कि बच्चे के लिए पेंसिल और गुब्बारा भी ले ले। पत्नी का चेहरा रह-रहकर सामने आ रहा है।वह इंतजार कर रही है। बच्चों के सोने का समय हो रहा है।वह गुस्सा भी रही है।उसका गुस्सा जायज भी है। वर्मा अब अपने परिवार की गणना में व्यस्त हो गया।न जाने कब उसे नींद आ गयी।
  सुबह हो चुकी थी। वर्मा नहा धो कर फिर आर्थिक गणना करने जाने की तैयारी में व्यस्त हो गया।सारे कागज पत्र उसके झोले में ही पड़े थे। वर्मा को अब देर हो रही है।वह बड़ी जल्दबाजी में तैयार हो रहा है।
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       ‌‌     © ओंकार नाथ त्रिपाठी
          अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर 
                     (चित्र:साभार)article-imagearticle-imagearticle-imagearticle-imagearticle-image


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रचनाएँ
समय की खिड़की
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समय की खिड़की ----------------------- © ओंकार नाथ त्रिपाठी "समय की खिड़की" मेरी प्रथम लघुकथा संग्रह है जो कि 'शब्द इन' पर आनलाइन प्रकाशित हो रही है।इस संग्रह में मेरी कई छोटी छोटी कहानियां संकलित हैं जो कि मैंने बहुत बर्षओं पहले लिखा था।इस संग्रह में मैंने समाज की ओर उनकी गतिविधियों पर झांकने का प्रयास किया है। शब्द इन पर हालांकि मेरी आठ कविता संग्रह प्रकाशित हैं लेकिन "समय की खिड़की" लघु कहानियों का पहला संग्रह है। आशा है कि यह संग्रह आप लोगों को रुचिकर लगेगा।आपके सुझाव मेरे लिए मार्गदर्शन का कार्य करेंगे तथा समीक्षाएं मेरे लेखन में निखार लायेंगी। आभार सहित।
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