कमली
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© ओंकार नाथ त्रिपाठी
"...... नहीं.....तुमसे नहीं खाऊंगा।..... मम्मी खिलायेगी"-कहते हुए नन्हें चिंटू ने कमली का हाथ झिड़क दिया।
"क्या हुआ कमली?"-अपनए ड्रेसिंग टेबल पर मेकप करती हुई सुरभि पूछी।
"दीदी जी! चिंटू भैय्या मुझसे नहीं खा रहे।आपसे खाने की जिद कर रहे हैं।"
-कमली सुरभि से बोली।
"ठीक है,तुम रहने दो।मैं आ रही हूं।"
-कहकर सुरभि अपना मेकप बीच में अधूरा छोड़कर चिंटू को खिलाने आ गयी।
कमली,जूठा हाथ लिये ही पास बैठकर चिंटू को खाते देख कलपू की यादों में खो गयी। उसके सामने गोल, सांवला सा,सलोना,मायूस, कुपोषण के कारण कृषकाय कलपू का चेहरा घूम गया।आये दिन कलपू भी कमली के हाथ से खाने का जिद करता है।रोज सबेरे किसी तरह से घर का काम निपटाकर कमली को सुरभि के घर आना रहता है।इसी वक्त कलपू भी कमली के हाथ से खाने की जिद लेकर बैठ जाता है।आज तो वह आने ही नहीं दे रहा था।किस तरह से उसे झिड़क कर आयी थी।वह जारी बेजार रोते जा रहा था।कमली की ममता कराह उठी।
"एक मां दीदी जी हैं और एक मां मैं हूं"
-कमलई मन ही मन बुदबुदायी।
मजबूरी क्या न कराये।किसी को अपना बच्चा बुरा लगता है क्या? लेकिन यदि काम पर न आऊं तब दो जून की रोटी कैसे चलेगी?
"तमली....तमली....."-आवआज सुनकर कमली की तंद्रा टुटी। चिंटू उसका हाथ पकड़ कर कहा रहा था-
"तमली...टीवी खोलो ना।"
कमली हाथ धोयी और टीवी खोलकर बैठ गयी।टीवी पर बच्चों का प्रोग्राम आ रहा था।कमली अपने भाग्य पर मन ही मन बड़बड़ाने लगी-
"हाय रे मजबूरी!अपने रोते बच्चे को छोड़कर मालकिन के बच्चे को चुप कराने के लिए तरह तरह के यत्न करती एक दुखियारी मां।कैसी है प्रभू की बिडम्बना।
"हे ईश्वर!मैं पन्ना नहीं बन सकती। इसीलिए इतनी शक्ति जरुर देना ताकि स्वंय को इसी तरह दौड़कर,बेचकर ही सही पाल सकूं कलपू को भी चिंटू की तरह।"
"कमली!घर देखना,मैं जा रही हूं।"
-सुरभि की आवाज कमली का ध्यान भंग कर दी।
सुरभि आफिस चली गयी।कमली अपने काम में लग गयी।
© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोकनगर
बशारतपुर, गोरखपुर,उप्र।