उमस
******
© ओंकार नाथ त्रिपाठी
अशोक नगर बशारतपुर
गोरखपुर उप्र।
इन दिनों चारों तरफ एक ही चर्चा आभ हुए हैं कि कहां पानी बरसा, कहां पानी नहीं बरसा। किसान, मजदूर, नौकरी पेशा लोग, बच्चे,बुढ़े, जवान सभी आसमान की ओर टकटकी लगाए हैं।कभी बादल उमड़ घुमड़ कर लगते भी हैं,तो बरसते नहीं और कभी कहीं इक्का दुक्का जगह पर बारिश हुई भी तो बौछार मात्र।मौसम विभाग कहता है कि मानसून तो आया है लेकिन कम दबाव के कारण बारिश नहीं हो रही है,तो सरकार कहती है कि जनता को घबराने की जरूरत नहीं,सूखे की दशा में एक भी व्यक्ति भोजन के अभाव मरने नहीं पायेगा। भण्डार में पर्याप्त खाद्यान्न उपलब्ध हैं। राजनेता भी सूखे से निपटने के लिए जहां आये दिन सरकार के सामने अपनी योजनाएं लिये खड़े हैं वहीं पब्लिक के बीच अपनी साख बचायें रखने के लिए सूखे से निपटने में सरकार की विफलता,बिजली की कटौती,ॠणों की अदायगी,ब्याज माफी, खाद्यान्न वितरण आदि समस्याओं को लेकर सरकार की ईंट से ईंट बजाने की हुंकार भर रहे हैं।रोज की तरह आज भी कुएं की सरदर पर
गलचौर मची है। रेडियो बीच में रखा गया है। चर्चा का विषय है कि प्रदेश की सरकार ने कितने जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया।
एक तो सूखा,दुसरे बिजली महारानी की अनुपलब्धता तिसपर भी तेज उमस।पवन देव तो लगता है कि सूरज के साथ करार में हार जाने के बाद कहीं गायब ही हो गये हैं।शाम घिर रही है।सरजू बाबा अपनी लाठी टेकते हुए कुएं के पास आकर रुक जाते हैं।कंधे पर रखे अंगोछे से अपने चेहरे तथा गर्दन और पेट का पसीना पोंछकर अंगोछा कंधे पर रखते हुए कहते हैं-
"अरे!सुनें हैं कि पूरब में आज बहुत पानी बरसा है"।
"हां काका!बरसा होगा क्योंकि उधर ही बादल तेज लगा था।तभी तो दुपहर में कुछ देर हवा कुछ नम लग रही थी।"-सरजू बाबा के हां में हां मिलाते हुए तीरथ ने कहा।
"पता नहीं क्यों इधर उधर बारिश हो रही है लेकिन अपने गांव के आस-पास नहीं हो रही।कौन सा पाप हुआ है हम लोगों से?"-अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कलपू चाचा ने कहा।
"अरे! इधर-उधर जो बारिश हुई है वह से तीयं थोड़े हुई है।मेहना गांव की औरतें जिस रात नंगे होकर इन्द्र भगवान को खुश करने के लिए हल चलाईं उसी दिन पानी बरसा था।हियां औरतों का हल चलाना तो दूर लड़के काल कलौटी तक नहीं खेले।पहिले पानी जब नहीं बरसता था तब शालीगराम भगवान को कुंए में लटकाया जाता था और पानी बरसता था।इन्दर भगवान नाराज हैं तो उन्हें खुश तो करना ही पड़ेगा।"-अपनी हेकड़ी दिखाते हुए चैतू ने कहा।
"खैर जो भी हो,हम लोगन क खेती त गइल।बिजलियो नहीं मिल रही है कि टिबोल से ही खेत सिची के कुछ बचावल जाये।"-चिंताग्रस्त सिरपत अपने सिर रख हाथ रखे बोले।
"अरे!बिजली इंहां कांहें के दिहं।साहेब लोग मंत्री लोग तो शहर में रहते हं।बिजली ऊंहां मिली।इंहां कानि के पूछ.. ता।"-रामभवन अंगिराते हुए बोला।
"का बाबु!शहर में तो लाइन रहते होई?एह समय गांव में त बड़ा सांसत होत होई।कहां शहर क पंखा और कहां इंहां के उमस,मच्छर और घाम!"-गजआधर की चुटकी लेते हुए महातम ने कहा।
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।क्या गां, क्या शहर।इन दिनों तो बिजली कटौती हर जगह है।और होंगी भी क्यों नहीं। पुरानी मशीनें जर्जर हो चुकी हैं।उनका मरम्मत नहीं हो रहा।नये बिजली घर लगायें नहीं गये।कोटा पूरा करने की गरज से राजनेता तथा सरकारें गांवों में विद्युतीकरण कर रही हैं।नित नये विद्युत कनेक्शन लिये जा रहे हैं जबकि बिजली का उत्पादन आज से25-30बर्ष पहले जितना ही है।खपत में बृद्धि उत्पादन में घटोत्तरी तब भला बिजली मिलेगी कहां से।अरे!शहर की दशा तो और दयनीय है।सुबह से रात तक आग उगलती चिमनियां,मोटर गाड़ियां,कम्प्यूटर्स,कल कारखाने,उपर से ऊंची ऊंची बिल्डिंगें,
बृक्षों का सफाया सा।लान विहिन दरबों से
घर,सीमित स्थान पर असीमित लोगों का ठहराव ऐसे में शहर की गरमी!शरीर पर छाले उगा देने वाली गरमी।उपर से रात के बारह बजे से सुबह चार बजे तक की निश्चित और दिन की अनेक अनिश्चित कटौतियां शहर को अधमरा बना दी हैं। यहां तो गनीमत है।अरे आप लोगों को कम से कम खुली हवा तो कभी-कभी नसीब हो जा रही है,खुले आकाश के नीचे सो कर ही सही,कुछ ठंडक तो पा ही जा रहे हैं,शहर में तो यह भी नसीब नहीं।"-
गजाधर महातम की चुटकी पर अपनी पक्ष शालीनता कू साथ रखा।
"अरे!जब से यह सरकार ससुरी आयी है तबसे तो बइपत्तई का पहाड़ पूरे देश पर टूट पड़ा है। कहीं बआढ़कहईं तूफान,कहीं भूकम्प तो कहीं सूखा।बड़े बड़े नेताओं का मरना, पाकिस्तान से युद्ध, कश्मीर में आतंकवाद अमेरिका का पिछलग्गूपन कहां तक गिना जाय।अरे!सुदेशी सुदेशी कहकर आया और पूरे देश में विदेशी का राज फैला दिया।अरे विरोध करना दुसरी बात है और सरकार चलाना दुसरी बात।जब अपने चलाना पड़ रहा है तब नानी याद आ रही है।जब विपक्ष में थे तब खूब चिल्ला पों मचाये थे।अब तो नेता लोग अपना जेब भरने में लगे हैं। सरकार कंगाल हो गयी है। बिजलीघर, कारखाने, उद्योग-धंधे कहां से चलायेगी।यह तो तनख्वाह तक नहीं देखा रही है।केवल मंत्री लोग हेलीकॉप्टर से घूम रहे हैं।अरे!गुण्डे,मवाली, बेइमान,चोर सब सरकार बना लिये।पूरा धन जेब भरने में खर्च हो रहा है। विकास के बारे में कौन सोचता है।ह:अपनी जेब तो भरी रही है।"-
शफात चाचा झुंझलाते हुए बोले।
"अरे!जानते नहीं।आज तो शहर में मंत्री जी के नेतृत्व में बिजली कटौती के विरुद्ध तथा सूखा राहत को लेकर बहुत बड़ा प्रदर्शन था।करीब आधा किलोमीटर की लंबी कतार थी,जिसमें जवान,बड़े,बुढ़े,
औरतों, लड़कियों के अलावा दस-दस साल तक के बच्चे भी थे।खूब नारा लगा रहे थे-
"बिजली पानी दे न सके जओ-वह सरकार निकम्मी है।"
"सरकार निकम्मी हऐ-वह सरकार बदलनी है।"
"सूखा ग्रस्त -घोषित करो।"
"बिजली कटौती बंद करो।"
"बैंक का कर्ज- माफ करो"
इतनी प्रचंड गर्मी में भी अधिकतर औरतें व बच्चे नंगे पैर थे।पता नहीं कैसे बेचारे चल पा रहे थे?"-निरंकार अपनी बात कहते-कहते गमगीन सा हो गये।मेरा ध्यान आज रास्ते में अयोध्या से भदेश्वर नाथ जाने वाले सड़कों पर शंकर भक्त कांवड़ियों की ओर चला गया।गेरुए रंग की कमीज,बंडी, हाफ पैंट, जांघिया,
साड़ी,ब्लाउज पहने अनेक वय के स्त्री, पुरुष, बच्चे नंगे पांव बोल बम,ताड़क बम,डाक बम बने कंधे पर कांवड़ लिये जा रहे थे। मन श्रद्धा से भर उठा।सोचने लगा-"कैसी-कैसी श्रद्धा है। पैरों में छाले पड़ गये हैं,इन शिव भक्तों को पैदल चलते चलते,फिर भी चले जा रहे हैं।"
अचानक मन उचटकर देश की जनता व राजनेताओं पर चला जाता है।
"सचमुच कितनी श्रद्धा है देश की जनता का लोकतंत्र में।कितने उत्साह से चुनाव में नेताओं को चुनती है, लेकिन चुन जाने के बाद यही नेता किस तरह से ओल्हापाती खेल कर अपने स्वार्थ की पूर्ति करने में जुट जाते हैं।तब इन्हें नहीं पता चलता है जनता के दर्द का,ठीक उसी तरह से जिस तरह पैरों का छाला लिए पैदल ही चलकर श्रद्धालु शिव की पूजा करते हैं। लेकिन भगवान शिव यह जानने की चेष्ठा करते हैं कि कितनी पीड़ा हो रही है भक्त को?कैसे व्यवस्था करके यात्रा पर निकला है भक्त?कैसा होगा इतने दिनों तक भक्त का शेष परिवार?"
"उफ्फ!"-मैं एक लंबी सांस लेकर अपना सिर खुजलाने लगा।
इतने समय तक कुएं पर बैठे लोगों में क्या गलचौर हुई नहीं जान सका।मौसम अब कुछ ठंड हो चला था।घटाएं अचानक चारो ओर से घिर आयी थीं।पुरवा हवा भी खुल गयी थी।नमी पाने से शरीर को सुकून मिलने लगा था।गांव के मंदिर पर लगे लाउडस्पीकर समवेत स्वर में रामायण पढ़ने की अनवरत आवाज आ रही थी। बूंदाबांदी शुरु हो गयी थी।सहसा सीमा की अम्मा की आवाज पर कलपू चाचा गेहूं उठाने,महातम धोती हटाने सिरपत प्लास्टर हो रहे मकान के बाहर रखे सीमेंट की बोरियों को ढ़ंकने के लिए लपके।प्रीती भी अपने जीजा को इस उमस भरी गरमी से निजात दिलाने के लिए बाहर बिछायी गयी चारपाई से बिस्तर उठाने लगी। बूंदा बांदी तेज हो गयी थी लेकिन हवा पुन: बंद हो गयी।उमस बढ़ने लगी।
-"यह बारिश होने वाली नहीं।"
भावना चाय बनाकर दीं।मैं पीने लगा। बारिश हुई नहीं।केवल बूंदा बांदी होकर रह गयी।बादल छंट गये। आसमान साफ हो गया।उमस फिर जब की तस हो गयी।चाय खत्म होते होते पूरा शरीर पसीने से तर बतर हो गया।उमस से अफनाकर मैं शर्ट की बटन खोलने लगा।
© ओंकार नाथ त्रिपाठी
अशोक नगर बशारतपुर
गोरखपुर।
(चित्र:साभार)