सब शोकों का एक नाम है क्षमा
ह्रदय, आकुल मत होना।
[१]
दहक उठे जो अंगारे बन नए
कुसुम-कोमल सपने थे
अंतर में जो गाँस मार गए
अधिक सबसे अपने थे
अब चल, उसके द्वार सहज जिसकी करुणा है
और कहाँ, किसका आंसू कब थमा?
ह्रदय, आकुल मत होना
[२]
आघातों से विषण्ण म्रियमाण
गान मत छोड़ अभय का
और न कर अब अधिक मार्ग-संधान
सिद्धि का, दैहिक जय का
सुख निद्रा की निशा, विपद जागरण प्रात का
किरणों पर चढ़ पकड़ प्रकृति उत्तमा
ह्रदय, आकुल मत होना
[३]
उषः लोक का पुलकाकुल कल रोर
मधुर जिसका प्रसाद है
दुर्दिन की झंझा में वज्र-कठोर
उसी का शंखनाद है
जिसका दिवस ललाट, उसी का निशा चिकुर है
रम उसमें, जो है दिगंत में रमा
ह्रदय, आकुल मत होना