फूलों की नाव बहाओ री,यह रात रुपहली आई ।
फूटी सुधा-सलिल की धारा
डूबा नभ का कूल किनारा
सजल चान्दनी की सुमन्द लहरों में तैर नहाओ री !
यह रात रुपहली आई ।
मही सुप्त, निश्चेत गगन है,
आलिंगन में मौन मगन है ।
ऐसे में नभ से अशंक अवनी पर आओ-आओ री !
यह रात रुपहली आई ।
मुदित चाँद की अलकें चूमो,
तारों की गलियों में घूमो,
झूलो गगन-हिन्डोले पर, किरणों के तार बढ़ाओ री !
यह रात रुपहली आई ।