कहते हम सब स्वतंत्र हैं,
पर कितने परतंत्र रहे।
कहते हम सब आगे बढे,
पर कितने पीछे रहे।
कहते अपनी सँस्कृति प्यारी,
यहीं हमारी शान है।
पर हो गए पश्चिम के दीवाने,
उसपर बसती जान है।
अपनी मनमोहक संस्कृति को,
हमने आज भुला दिया।
पश्चिम की अश्लील संस्कृति को,
हमने हैं अपना लिया।
अपने हिंदी भाषा के ,
महत्व को है भुला दिया।
अंग्रेजी को समझ के अच्छा,
हमने है सम्मान किया
इतना ही होता भारत में,
तब तो सहने योग्य था ।
ऐसा होता है भारत में,
ये कैसा दुर्भाग्य है ।
यह देश अपना सम्मान खो रहा है,
हिंदी भाषी देश में इंग्लिश का प्रचार हो रहा है।
प्रचार करने वाले,
सब भारत के जन हैं।
हिंदी को तुच्छसमझ कर,
इंग्लिश में खोया मन है।
वेद पुराणों का सम्मान,
करना हमने छोड़ दिया।
इन्हीं वेद पुराणों से,
विदेशीयों ने ज्ञान लिया।
नई नई वस्तुओं की खोज,
सब अपनी संस्कृति की देन है।
पर कितने अछूते रहे हम,
सोच मन बेचैन है।
वेद पुराणों को पढ़कर,
कहते हैं पाखण्ड भरा।
पश्चिम की अश्लील संस्कृति से,
मन अब तक है नहीं भरा।
इन कुरीतियों का परिणाम ,
आज हमारे सामने है।
एड्स जैसी बीमारी से ,
ग्रसित हर वर्ग के जनहै।
इससे मुक्ति पाने को मैं,
आज करु किससे पुकार।
युवकों ने तो अपनी नसों में,
पानी भर लिया है अपार।
जिन युवकों का रक्त अभी भी,
पानी नहीं है हो पाया।
उनसे विनती है देखों तुम ,
छीन होती भारत काया।
पोषण इसको चाहिए,
हम युवकों के बलिदान का।
लाज हमे ही रखनी है,
भारत के सम्मान का।