मां एक ऐसा शब्द जो स्वयं में ही पूर्ण जिस में सारा संसार निहित है गर्भ में 9 महीने तक संतान को रखकर अपने तन का सर्वस्व नवजीवन के निर्माण में लगा देती है संतान की भूख प्यास तकलीफ बिना कहे समझ जाती है आजीवन उसकी चिंता में स्वयं को भूल जाती है सृष्टि में जितने भी जीव हैं सब की उत्पत्ति मां के माध्यम से ही होती है मां के बिना सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं है ऐसे में मां को सम्मान देने के लिए कोई एक दिन निश्चित करना सिर्फ पश्चिमी सभ्यता काअंधानुकरण है भारतीय संस्कृति में मां हर दिन वंदनीय है हमें हर दिन उनके प्रति कृतज्ञ होना और उनका सम्मान करना चाहिए पर हम अपने भारतीय संस्कार को भूल चुके हैं अतः मातृत्व दिवस के दिन उनके प्रति कृतज्ञता जाहिर कर उन्हें सम्मान देकर हमें अपनी भूल सुधारने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए ।
मां तेरी निर्मल छाया से
मैं तो कोसों दूर हूं
एक झलक भी पा न सकूँ मैं
मैं कितनी मजबूर हूं
जब जब गिरी संभाला तुमने
हर मुश्किल से निकाला तुमने
थाम ना पाऊं आंचल तेरा
मैं कितनी मजबूर हूं
मां तेरी निर्मल छाया से
मैं तो कोसों दूर हूं