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जिन्दगी मेरे घर आना

22 दिसम्बर 2021

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  ओ जिंदगी मेरे घर आना,
 अकारण ही मौत के घाट
उतार दी जाने वाली हर लड़की को,
हर औरत को,
हर बच्ची को ,
और हर  स्त्री गर्भ को तुम बचानाl
ओ  जिंदगी मेरी  घर  आना,
जींस पहनने पर बेटी को मार दे,
ऐसे  बाप को तुम सबक सिखाना
ओ जिंदगी मेरे घर आना
इतनी  उत्कृष्टसंस्कृति, योग,  अध्यात्म, ज्ञान विज्ञान जिसका संपूर्ण विश्व लोहा मानता  हो, ऐसे देश में जब कपड़ों को लेकर हत्याएं   हो
और जब ऐसे खोखले विचारधारा के समाचार विदेशी पृष्ठभूमि पर पहुंचते हैं  तो उनके जेहन में भारतीयों की निकृष्ट छवि बनना स्वाभाविक हैl
कितने और कितने खोखले हैं हम और हमारे विचार कितना दोगलापन हमारी सोच   मे भरा हुआ हैl
भारत में स्त्रियों को  देवीकी तरह पूजा जाता है एक ऐसी देवी जो पुरुष रूपी ईश्वर के समक्ष उसकी  हर इच्छाओं, भावनाओं को तुष्ट करने के लिए सदैव बलिवेदी पर रखी गई होl
भारत में औरतों की स्थिति केवल  बली बकरे के जैसी है बलि देने से पहले इसे विधिवत पूछा जाता है फिर
अपने स्वार्थ  सिद्धि के लिए... कभी  गर्भ में कभी  जिस्म की आग  बुझाने के लिए, कभी अपने सम्मान के लिए और कभी उसके वस्त्रों के लिए बिना किसी संकोच के
  सहर्ष बलिदान कर दिया जाता है
और यह समाचार सुनकर ,पढ़कर हर बार हम और हमारा समाज   मौन रह जाता हैl कोई फर्क नहीं पड़ता किसी को न हीं ऐसी घटनाओं के लिए कोई आंदोलन करता न हीं  धरने  पर बैठताl
परंतु ऐसी घटनाएं  पढ़, सुनकर मेरी आत्मा फट जाती है,
कुछ पल के लिए ऐसा लगता है कि  परशुराम की तरह  फरसा उठाकर धरती सभी कुत्सित मानसिकता वाले पुरुषों से विहीन कर  दूंl परंतु मेरी यह सोच भी श्मशान वैराग्य की तरह ही है, कुछ देर बाद  मैंभी सब कुछ भूल जाती हूं और अपने काम करने लग  जाती हूl
क्योंकि मैं जानती हूं मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती
जीवन के इस क्षेत्र में   मैं हर बारस्वयं को अकेला  पाती हूं हूं, मैं जानती हूं कि लीक से हटकर चलने वाले को समाज में कोई स्थान नहीं मिलता हैl सच बोलने  वाला सच के लिए लड़ने वाला हमेशा समाज में दबाया और प्रताड़ित किया जाता हैl  या संदेह के घेरे में जकड़ कर घुटने के लिए मजबूर कर दिया जाता हैl
फिर चाहे सरकार हो या आम जनता अपने खिलाफ बोलने वाले को अपनी मुट्ठी  के शिकंजेमें कसकर जकड़ देना चाहती हैl अंततः मजबूरन सभी किंकर्तव्यविमूढ़ की  भांति सब कुछ देख सुनकर मौन साधना में लीन रहने में ही अपनी भलाई समझते हैंl
पर क्या यह जिंदगी वास्तव में कोई जिंदगी है खुद के लिए खाना, खुद के लिए  कमाना,खुद के लिए जीना और 1 दिन नाली के कीड़े की तरह मर जानाl
यह सोच कर मैं अक्सर अपराध बोध से ग्रस्त रहती हूंl और जिंदगी से कहती हूं "ओ जिंदगी मेरे घर आना"!


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रचनाएँ
"मन के उद्गार"
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मन के उद्गार नामक इस पुस्तक में मैं ने, नारी, समाज ,भावनाओं, कुप्रथाओं को संदर्भ मे रख कर ।अपनी काव्य रचनाओं को संग्रहित किया है ।
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रहस्यमई मेकअप

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जिन्दगी मेरे घर आना

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तन्हाइयों में,अकेले में गमों के मेले में खो ना जाऊं मैं कहीं जिन्दगी के झमेले में जीवन के हर मोड पे तुम मेरा नाम लो ऐ हमदम, ऐ हमराही मेरा हाँथ थाम लो । हो यौवन का प्यार या प्रौढा की तकर

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वो अजनबी दिल की गहराइयों में अपना घर बना गया दूर जाते जाते न जाने कैसे पास आ गया तन्हाइयों में जिसको तलाशती थी मैं मन में उसकी सूरत तराशती थी मैं वह अक्स उभर कर

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दूर कहीं इस दुनिया में वो बेगाना एक रहता है बिन बोले ही वह समझे सब दिल मेरा यह कहता है थाम के उसका हाथ दुनिया को भूल जाऊं मैं बिना झिझक अपने दिल की हर बात उससे

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यह दुनिया खूबसूरत बेहिसाब है रंगों से भरी जिंदगी की एक किताब है कुछ गहरे, कुछ उजले, चटकीले रंग है कोई पृष्ठ जिंदगी के बेरंग है दुख से रंगा कोई पृष्ठ अंधकार सा किसी में खुशियां भी बेहिसाब ह

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जिंदगी रुक सी गई मंजर ठहर सा गया हैl दूर से जो दिख रहा, क्या वह नया आसमां है? क्या नयी हवा वहां, क्या नई उमंग है? जिंदगी को सजा दे फिर से, क्या वो नए रंग हैं? स्वप्न देखती रही स्वप्न देखती रही एक नए

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गुजरा हुआ पल

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वक्त के आगे तो सब कुछ छूट जाता है गुजरा हुआ पल कहां लौट के आता है जी लो जी भर के जिंदगी यारो यह प्यार भरा लम्हा हमेशा याद आता है वो गुजरा हुआ पल कहाँ लौट के आता है वह लड़ना झगड़ना वह रूठना मनाना छ

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कहते हम सब स्वतंत्र हैं, पर कितने परतंत्र रहे। कहते हम सब आगे बढे, पर कितने पीछे रहे। कहते अपनी सँस्कृति प्यारी, यहीं हमारी शान है। पर हो गए पश्चिम के दीवाने, उसपर बसती जान है। अपनी मनमोहक संस्कृति क

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सभ्य सभा में हुआ आज एक अनर्थ भारी अपनों के समक्ष अपनों से ही लज्जित होती थी एक नारी थे पांच पति उस सभा बीच पांचों के पांचों मौन रहें यह कठिन कुठाराघात हृदय में कोमल हृदया कैसे सहे

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5 मई 2022
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दर्द और प्यास में अपनो की तलाश में जिन्दगी कहाँ रुकती है जीत और हार में नफरत और प्यार मे जिन्दगी कहाँ रूकती है वर्षा और बाढ में सूखे की मार में जिन्दगी कहाँ रुकती है चलती रहती है यह आखिरी साँस त

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माँ

8 मई 2022
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माँ

8 मई 2022
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शान्त और बीहड मग में , एक छाया चलती जाती है। पलकों से छलके जो मोती , हाँथों से मलती जाती है। सिंहिंन की भाँति रही जग में, जिस नन्हे बालक की खातिर। सिंह सदृश दहाड रहा , बन गया वही जग में शातिर।

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