23 अक्टूबर 2021
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<div>एक नकाब चेहरे पर</div><div> श्रृंगार का जो ओढतीं</div><div> सौंदर्य की नित नयी</div><
<div>क्यों बेटे की मां इस जग में </div><div>हर पल सम्मानित होती है</div><div> जिसने बेटी क
<div>मेरे घर के आंगन में कल</div><div> खेल रही थी गौरैया</div><div> मुझको ही तो बुला रही थ
<div align="left"><p dir="ltr">बेटे की माँ ही जग में, <br> क्यों सम्मानित होती है।<br> जिसने बेटी को
<div align="left"><p dir="ltr">कितनी ही ख्वाहिशों को, <br> सहेज कर<br> परत दर परत<br> रख दिया है मैं
<div align="left"><p dir="ltr"> ओ जिंदगी मेरे घर आना,<br> अकारण ही मौत के घाट<br> उतार द
<div align="left"><p dir="ltr">हाथों में मेरे तेरा हाथ हो, <br> सुख हो या द
<div align="left"><p dir="ltr"> अंधकार भरे इस जंगल से, <br> ले चलो उस पार, <br> प्रियतम
<div align="left"><p dir="ltr">""मैं स्त्री हूं"</p> <p dir="ltr">हां, मैं स्त्री हूं,<b
<div align="left"><p dir="ltr">जिंदगी बड़ी जालिम<br> जीने नहीं देती<br> जहर भी खुशी से<br> पीने नहीं
<div align="left"><p dir="ltr">" शालिनी रसोई के काम निपटा कर जब खाली हुई तो उसे एहसास हुआ कि आज गर्म
आंखों में प्यार का सागर , सीने में दर्द समंदर लेकर भटक रही वह तन्हा सी अपनों में भी वह दर-दर कृषकाय निबल अबला सी वह अंतर्मन को धिक्कार रही करुण रुदन सुन बालक का सीने से ममता की धार बही वह ममता
तन्हाइयों में,अकेले में गमों के मेले में खो ना जाऊं मैं कहीं जिन्दगी के झमेले में जीवन के हर मोड पे तुम मेरा नाम लो ऐ हमदम, ऐ हमराही मेरा हाँथ थाम लो । हो यौवन का प्यार या प्रौढा की तकर
वो अजनबी दिल की गहराइयों में अपना घर बना गया दूर जाते जाते न जाने कैसे पास आ गया तन्हाइयों में जिसको तलाशती थी मैं मन में उसकी सूरत तराशती थी मैं वह अक्स उभर कर
आईना जो शक्लें दिखाता हैरूह से कहां रूबरू करवाता है ?दिखती है केवल परछाइयां उसमेंअसलियत को वह भी छुपाता हैकाश कोई आईना हो जहां मेंजो मुझे सच बता सकेकौन हूँ,क्या पहचान है मेरीमुझे मेरी खूबी दिखा सकेदेख
दूर कहीं इस दुनिया में वो बेगाना एक रहता है बिन बोले ही वह समझे सब दिल मेरा यह कहता है थाम के उसका हाथ दुनिया को भूल जाऊं मैं बिना झिझक अपने दिल की हर बात उससे
अंधकार भरे इस जंगल से, ले चलो उस पार, प्रियतम ले चलो उस पारl वहां जहां संगम होता है, धरती और गगन का l वहां जहां मौसम होता है, खुशियों और चमन का l बादलों के पार, जहां न हो कोई बंधन, जहां
यह दुनिया खूबसूरत बेहिसाब है रंगों से भरी जिंदगी की एक किताब है कुछ गहरे, कुछ उजले, चटकीले रंग है कोई पृष्ठ जिंदगी के बेरंग है दुख से रंगा कोई पृष्ठ अंधकार सा किसी में खुशियां भी बेहिसाब ह
किस पर करे हम आक्रोश परिस्थितियों पर या स्वयं पर परिस्थितियां जो हमारे बस में न थी और खुद से लड़ने की मुझ में हिम्मत न थी पर अब समय आ गया है आक्रोश करने का खुद पर अपनी कुंठाओं पर अपनी कमजोरी पर औ
जिंदगी रुक सी गई मंजर ठहर सा गया हैl दूर से जो दिख रहा, क्या वह नया आसमां है? क्या नयी हवा वहां, क्या नई उमंग है? जिंदगी को सजा दे फिर से, क्या वो नए रंग हैं? स्वप्न देखती रही स्वप्न देखती रही एक नए
वक्त के आगे तो सब कुछ छूट जाता है गुजरा हुआ पल कहां लौट के आता है जी लो जी भर के जिंदगी यारो यह प्यार भरा लम्हा हमेशा याद आता है वो गुजरा हुआ पल कहाँ लौट के आता है वह लड़ना झगड़ना वह रूठना मनाना छ
कहते हम सब स्वतंत्र हैं, पर कितने परतंत्र रहे। कहते हम सब आगे बढे, पर कितने पीछे रहे। कहते अपनी सँस्कृति प्यारी, यहीं हमारी शान है। पर हो गए पश्चिम के दीवाने, उसपर बसती जान है। अपनी मनमोहक संस्कृति क
सभ्य सभा में हुआ आज एक अनर्थ भारी अपनों के समक्ष अपनों से ही लज्जित होती थी एक नारी थे पांच पति उस सभा बीच पांचों के पांचों मौन रहें यह कठिन कुठाराघात हृदय में कोमल हृदया कैसे सहे
दर्द और प्यास में अपनो की तलाश में जिन्दगी कहाँ रुकती है जीत और हार में नफरत और प्यार मे जिन्दगी कहाँ रूकती है वर्षा और बाढ में सूखे की मार में जिन्दगी कहाँ रुकती है चलती रहती है यह आखिरी साँस त
मां एक ऐसा शब्द जो स्वयं में ही पूर्ण जिस में सारा संसार निहित है गर्भ में 9 महीने तक संतान को रखकर अपने तन का सर्वस्व नवजीवन के निर्माण में लगा देती है संतान की भूख प्यास तकली
शान्त और बीहड मग में , एक छाया चलती जाती है। पलकों से छलके जो मोती , हाँथों से मलती जाती है। सिंहिंन की भाँति रही जग में, जिस नन्हे बालक की खातिर। सिंह सदृश दहाड रहा , बन गया वही जग में शातिर।