आंखों में प्यार का सागर ,
सीने में दर्द समंदर लेकर
भटक रही वह तन्हा सी
अपनों में भी वह दर-दर
कृषकाय निबल अबला सी वह
अंतर्मन को धिक्कार रही
करुण रुदन सुन बालक का
सीने से ममता की धार बही
वह ममता थी बिन ब्याही सी
जिसे जीने का अधिकार नहीं
ममता की आंखों के आगे
ममता की रुधिर की धार बही
विक्षिप्त बनी वह घूम रही
ज्ञानी दुनिया के आगे
ममता हार गई फिर से
अभिमानी दुनिया के आगे।