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"शापित चाँद"

28 दिसम्बर 2021

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" शालिनी रसोई के काम निपटा कर जब खाली हुई तो उसे एहसास हुआ कि आज गर्मी बहुत  है, बंद कमरे की उमस भी उसे बेचैन कर रही थी इसलिए ताजी हवा लेने के लिए वह छत पर आ गईl
सहसा उसकी नजर चांद पर गई और वह कांप गईl
वैसे तो आज का चांद बहुत ही खूबसूरत दिख रहा था क्योंकि आज पूर्णिमा थी और चांद की चांदनी भी पूरे शबाब में थीl
परंतु यही चांद शालिनी के जीवन का "  शापित चांद "था l
जिसे देखकर वह आज भी डर के मारे कांपने लग जाती हैl
  डरी हुई  शालिनी चांद की ओर देखते हुए अतीत की गहराइयों में खो जाती हैl
जब अनु 10 साल की थी,  मां बाबूजी एक छोटा भाई  और वह चार लोग थे उसके परिवार में l    खुशहाल परिवार था उसका बाबूजी का स्वभाव भी बहुत ही शांत  था l   वे कभी किसी से झगड़ा नहीं करते थे इसी तरह माँ  भी बहुत शांत स्वभाव की थी l  सबकी मदद करना और अपने काम से काम रखना यही उस परिवार का उसूल था  l
शालिनी का परिवार रोज रात में खाना खाने के बाद  टहलने के लिए जाया करता था l
उस रात भी  शालिनी और उस का परिवार सड़क पर चहलकदमी कर रहा था  l
शालिनी अपने बाबू जी से बातें करते हुए जा रही थी l
" बाबूजी आज यह चांद इतना बड़ा और पूरा पूरा गोल कैसे दिखाई दे रहा है,  आज चांद की रोशनी भी बहुत ज्यादा है जैसे रात ही ना हुई हो"
हां बेटा आज पूर्णिमा है  के दिन  चांद गोल दिखाई देता है हर महीने में एक पूर्णिमा और एक  अमावस्या होती है पूर्णिमा के दिन चांद पूरा   गोल हो जाता है, और अमावस्या के दिन बिल्कुल  गायब हो जाता है l
बातें करते करते ही चारों टहल रहे थे  पर उन्हें नहीं पता था कि यह चांद उनके जीवन का शापित चांद होगा l
शालिनी के बाबूजी ने थोड़ी   दूर झाड़ियों के पास कुछ हलचल होते हुए देखा l दूर  से ही उन्हें एहसास हो गया कि कोई किसी को बांध कर ले जा रहा है  वह  दौड़ते हुएनजदीक पहुंचे तब उन्होंने देखा चार लड़के  एक लड़की का मुंह दुपट्टे से बांधकर उसे झाड़ियों की ओर घसीटते हुए ले जा रहे थेl
  बाबूजी को बात  समझते देर न लगी,  और वे उन चारों लड़कों से भिड़ पड़े, और जल्दी से उस लड़की के हाथ, मुँह खोल दिए l
हाथ मुंह खुलते ही वह लड़की वहां से भाग गईl   जिससे वे लड़के बहुत ही गुस्सा हो गए, और  बाबूजी के साथ लड़ने लग गएl
उनके पास चाकू और धारदार हथियार थे देखते देखते  परिवार के सभी सदस्य को उन्होंने मौत के घाट उतार दिया और शालिनी बस को सिर्फ अपनी हवस की भूख मिटाने के लिए छोड़ दियाl
शालिनी  चीखती रही  पर उन पत्थर दिलों का दिल नहीं पसीजा l वह उसे  वैसे ही उसे मृत अवस्था  के समकक्ष छोड़कर भाग गएlI
वहां का मंजर बहुत ही दर्दनाक था l
  शालिनी रात भर दर्द से तड़पती रही, भोर होते ही लोगों की आवाजाही शुरू हो गई,  पर किसी ने उन्हें हाथ तक नहीं लगाया l भीड़ के ही किसी व्यक्ति ने पुलिस स्टेशन में सूचना दे दी थी जिससे पुलिस लाशों को उठा ले गईl
वही रास्ते से एक निसंतान दंपति भी गुजर रहे थे जिन्हें  शालिनी की हालत पर तरस आ गया उन्होंने उसका इलाज करवाया और उसे गोद ले लियाl
धीरे-धीरे समय पंख लगा कर उड  गया, नए माता-पिता ने साली के जख्मों को भर दिया उनके साथ वह सामान्य जिंदगी जीने लग गई परंतु पूर्णिमा का  चांद आज भी जख्मों को हरा कर देता है,क्यों यहीं उसके जीवन का "शापित चाँद "है जिसने उसका सब कुछ छीन लिया l


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रचनाएँ
"मन के उद्गार"
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मन के उद्गार नामक इस पुस्तक में मैं ने, नारी, समाज ,भावनाओं, कुप्रथाओं को संदर्भ मे रख कर ।अपनी काव्य रचनाओं को संग्रहित किया है ।
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