shabd-logo

"शापित चाँद"

28 दिसम्बर 2021

31 बार देखा गया 31

" शालिनी रसोई के काम निपटा कर जब खाली हुई तो उसे एहसास हुआ कि आज गर्मी बहुत  है, बंद कमरे की उमस भी उसे बेचैन कर रही थी इसलिए ताजी हवा लेने के लिए वह छत पर आ गईl
सहसा उसकी नजर चांद पर गई और वह कांप गईl
वैसे तो आज का चांद बहुत ही खूबसूरत दिख रहा था क्योंकि आज पूर्णिमा थी और चांद की चांदनी भी पूरे शबाब में थीl
परंतु यही चांद शालिनी के जीवन का "  शापित चांद "था l
जिसे देखकर वह आज भी डर के मारे कांपने लग जाती हैl
  डरी हुई  शालिनी चांद की ओर देखते हुए अतीत की गहराइयों में खो जाती हैl
जब अनु 10 साल की थी,  मां बाबूजी एक छोटा भाई  और वह चार लोग थे उसके परिवार में l    खुशहाल परिवार था उसका बाबूजी का स्वभाव भी बहुत ही शांत  था l   वे कभी किसी से झगड़ा नहीं करते थे इसी तरह माँ  भी बहुत शांत स्वभाव की थी l  सबकी मदद करना और अपने काम से काम रखना यही उस परिवार का उसूल था  l
शालिनी का परिवार रोज रात में खाना खाने के बाद  टहलने के लिए जाया करता था l
उस रात भी  शालिनी और उस का परिवार सड़क पर चहलकदमी कर रहा था  l
शालिनी अपने बाबू जी से बातें करते हुए जा रही थी l
" बाबूजी आज यह चांद इतना बड़ा और पूरा पूरा गोल कैसे दिखाई दे रहा है,  आज चांद की रोशनी भी बहुत ज्यादा है जैसे रात ही ना हुई हो"
हां बेटा आज पूर्णिमा है  के दिन  चांद गोल दिखाई देता है हर महीने में एक पूर्णिमा और एक  अमावस्या होती है पूर्णिमा के दिन चांद पूरा   गोल हो जाता है, और अमावस्या के दिन बिल्कुल  गायब हो जाता है l
बातें करते करते ही चारों टहल रहे थे  पर उन्हें नहीं पता था कि यह चांद उनके जीवन का शापित चांद होगा l
शालिनी के बाबूजी ने थोड़ी   दूर झाड़ियों के पास कुछ हलचल होते हुए देखा l दूर  से ही उन्हें एहसास हो गया कि कोई किसी को बांध कर ले जा रहा है  वह  दौड़ते हुएनजदीक पहुंचे तब उन्होंने देखा चार लड़के  एक लड़की का मुंह दुपट्टे से बांधकर उसे झाड़ियों की ओर घसीटते हुए ले जा रहे थेl
  बाबूजी को बात  समझते देर न लगी,  और वे उन चारों लड़कों से भिड़ पड़े, और जल्दी से उस लड़की के हाथ, मुँह खोल दिए l
हाथ मुंह खुलते ही वह लड़की वहां से भाग गईl   जिससे वे लड़के बहुत ही गुस्सा हो गए, और  बाबूजी के साथ लड़ने लग गएl
उनके पास चाकू और धारदार हथियार थे देखते देखते  परिवार के सभी सदस्य को उन्होंने मौत के घाट उतार दिया और शालिनी बस को सिर्फ अपनी हवस की भूख मिटाने के लिए छोड़ दियाl
शालिनी  चीखती रही  पर उन पत्थर दिलों का दिल नहीं पसीजा l वह उसे  वैसे ही उसे मृत अवस्था  के समकक्ष छोड़कर भाग गएlI
वहां का मंजर बहुत ही दर्दनाक था l
  शालिनी रात भर दर्द से तड़पती रही, भोर होते ही लोगों की आवाजाही शुरू हो गई,  पर किसी ने उन्हें हाथ तक नहीं लगाया l भीड़ के ही किसी व्यक्ति ने पुलिस स्टेशन में सूचना दे दी थी जिससे पुलिस लाशों को उठा ले गईl
वही रास्ते से एक निसंतान दंपति भी गुजर रहे थे जिन्हें  शालिनी की हालत पर तरस आ गया उन्होंने उसका इलाज करवाया और उसे गोद ले लियाl
धीरे-धीरे समय पंख लगा कर उड  गया, नए माता-पिता ने साली के जख्मों को भर दिया उनके साथ वह सामान्य जिंदगी जीने लग गई परंतु पूर्णिमा का  चांद आज भी जख्मों को हरा कर देता है,क्यों यहीं उसके जीवन का "शापित चाँद "है जिसने उसका सब कुछ छीन लिया l


28
रचनाएँ
"मन के उद्गार"
0.0
मन के उद्गार नामक इस पुस्तक में मैं ने, नारी, समाज ,भावनाओं, कुप्रथाओं को संदर्भ मे रख कर ।अपनी काव्य रचनाओं को संग्रहित किया है ।
1

रहस्यमई मेकअप

23 अक्टूबर 2021
3
0
2

<div>एक नकाब चेहरे पर</div><div> श्रृंगार का जो ओढतीं</div><div> सौंदर्य की नित नयी</div><

2

बेटी की मां

23 अक्टूबर 2021
1
0
0

<div>क्यों बेटे की मां इस जग में </div><div>हर पल सम्मानित होती है</div><div> जिसने बेटी क

3

गौरैया

23 अक्टूबर 2021
1
0
0

<div>मेरे घर के आंगन में कल</div><div> खेल रही थी गौरैया</div><div> मुझको ही तो बुला रही थ

4

"बेटी की माँ"

19 दिसम्बर 2021
1
1
2

<div align="left"><p dir="ltr">बेटे की माँ ही जग में, <br> क्यों सम्मानित होती है।<br> जिसने बेटी को

5

मन के दरवाजे के पीछे

19 दिसम्बर 2021
1
0
2

<div align="left"><p dir="ltr">कितनी ही ख्वाहिशों को, <br> सहेज कर<br> परत दर परत<br> रख दिया है मैं

6

जिन्दगी मेरे घर आना

22 दिसम्बर 2021
0
0
0

<div align="left"><p dir="ltr"> ओ जिंदगी मेरे घर आना,<br> अकारण ही मौत के घाट<br> उतार द

7

यूं ही कट जाएगा सफर

22 दिसम्बर 2021
2
1
2

<div align="left"><p dir="ltr">हाथों में मेरे तेरा हाथ हो, <br> सुख हो या द

8

बादलों के पार

23 दिसम्बर 2021
0
0
0

<div align="left"><p dir="ltr"> अंधकार भरे इस जंगल से, <br> ले चलो उस पार, <br> प्रियतम

9

बादलों के पार

23 दिसम्बर 2021
0
0
0

<div align="left"><p dir="ltr"> अंधकार भरे इस जंगल से, <br> ले चलो उस पार, <br> प्रियतम

10

मैं स्त्री हूँ

23 दिसम्बर 2021
2
1
2

<div align="left"><p dir="ltr">""मैं स्त्री हूं"</p> <p dir="ltr">हां, मैं स्त्री हूं,<b

11

जख्म

25 दिसम्बर 2021
1
1
0

<div align="left"><p dir="ltr">जिंदगी बड़ी जालिम<br> जीने नहीं देती<br> जहर भी खुशी से<br> पीने नहीं

12

जख्म

25 दिसम्बर 2021
1
1
1

<div align="left"><p dir="ltr">जिंदगी बड़ी जालिम<br> जीने नहीं देती<br> जहर भी खुशी से<br> पीने नहीं

13

"शापित चाँद"

28 दिसम्बर 2021
0
0
0

<div align="left"><p dir="ltr">" शालिनी रसोई के काम निपटा कर जब खाली हुई तो उसे एहसास हुआ कि आज गर्म

14

ममता

29 जनवरी 2022
1
0
0

आंखों में प्यार का सागर , सीने में दर्द समंदर लेकर भटक रही वह तन्हा सी अपनों में भी वह दर-दर कृषकाय निबल अबला सी वह अंतर्मन को धिक्कार रही करुण रुदन सुन बालक का सीने से ममता की धार बही वह ममता

15

मेरा हाँथ थाम लो

17 मार्च 2022
0
0
0

तन्हाइयों में,अकेले में गमों के मेले में खो ना जाऊं मैं कहीं जिन्दगी के झमेले में जीवन के हर मोड पे तुम मेरा नाम लो ऐ हमदम, ऐ हमराही मेरा हाँथ थाम लो । हो यौवन का प्यार या प्रौढा की तकर

16

एक अजनबी

23 मार्च 2022
0
0
0

वो अजनबी दिल की गहराइयों में अपना घर बना गया दूर जाते जाते न जाने कैसे पास आ गया तन्हाइयों में जिसको तलाशती थी मैं मन में उसकी सूरत तराशती थी मैं वह अक्स उभर कर

17

"आईना"

23 मार्च 2022
0
0
0

आईना जो शक्लें दिखाता हैरूह से कहां रूबरू करवाता है ?दिखती है केवल परछाइयां उसमेंअसलियत को वह भी छुपाता हैकाश कोई आईना हो जहां मेंजो मुझे सच बता सकेकौन हूँ,क्या पहचान है मेरीमुझे मेरी खूबी दिखा सकेदेख

18

दूर कहीं इस दुनिया में

2 अप्रैल 2022
1
1
0

दूर कहीं इस दुनिया में वो बेगाना एक रहता है बिन बोले ही वह समझे सब दिल मेरा यह कहता है थाम के उसका हाथ दुनिया को भूल जाऊं मैं बिना झिझक अपने दिल की हर बात उससे

19

प्रियतम

2 अप्रैल 2022
1
0
0

अंधकार भरे इस जंगल से, ले चलो उस पार, प्रियतम ले चलो उस पारl वहां जहां संगम होता है, धरती और गगन का l वहां जहां मौसम होता है, खुशियों और चमन का l बादलों के पार, जहां न हो कोई बंधन, जहां

20

जिन्दगी एक किताब है

4 अप्रैल 2022
0
0
0

यह दुनिया खूबसूरत बेहिसाब है रंगों से भरी जिंदगी की एक किताब है कुछ गहरे, कुछ उजले, चटकीले रंग है कोई पृष्ठ जिंदगी के बेरंग है दुख से रंगा कोई पृष्ठ अंधकार सा किसी में खुशियां भी बेहिसाब ह

21

आक्रोश स्वयं पर

5 अप्रैल 2022
1
1
0

किस पर करे हम आक्रोश परिस्थितियों पर या स्वयं पर परिस्थितियां जो हमारे बस में न थी और खुद से लड़ने की मुझ में हिम्मत न थी पर अब समय आ गया है आक्रोश करने का खुद पर अपनी कुंठाओं पर अपनी कमजोरी पर औ

22

नया आसमान

6 अप्रैल 2022
1
1
2

जिंदगी रुक सी गई मंजर ठहर सा गया हैl दूर से जो दिख रहा, क्या वह नया आसमां है? क्या नयी हवा वहां, क्या नई उमंग है? जिंदगी को सजा दे फिर से, क्या वो नए रंग हैं? स्वप्न देखती रही स्वप्न देखती रही एक नए

23

गुजरा हुआ पल

7 अप्रैल 2022
1
1
2

वक्त के आगे तो सब कुछ छूट जाता है गुजरा हुआ पल कहां लौट के आता है जी लो जी भर के जिंदगी यारो यह प्यार भरा लम्हा हमेशा याद आता है वो गुजरा हुआ पल कहाँ लौट के आता है वह लड़ना झगड़ना वह रूठना मनाना छ

24

झूठी शान

9 अप्रैल 2022
0
0
0

कहते हम सब स्वतंत्र हैं, पर कितने परतंत्र रहे। कहते हम सब आगे बढे, पर कितने पीछे रहे। कहते अपनी सँस्कृति प्यारी, यहीं हमारी शान है। पर हो गए पश्चिम के दीवाने, उसपर बसती जान है। अपनी मनमोहक संस्कृति क

25

द्रौपदी

9 अप्रैल 2022
2
2
2

सभ्य सभा में हुआ आज एक अनर्थ भारी अपनों के समक्ष अपनों से ही लज्जित होती थी एक नारी थे पांच पति उस सभा बीच पांचों के पांचों मौन रहें यह कठिन कुठाराघात हृदय में कोमल हृदया कैसे सहे

26

जिन्दगी कहाँ रुकतीं है

5 मई 2022
1
0
2

दर्द और प्यास में अपनो की तलाश में जिन्दगी कहाँ रुकती है जीत और हार में नफरत और प्यार मे जिन्दगी कहाँ रूकती है वर्षा और बाढ में सूखे की मार में जिन्दगी कहाँ रुकती है चलती रहती है यह आखिरी साँस त

27

माँ

8 मई 2022
0
0
0

मां एक ऐसा शब्द जो स्वयं में ही पूर्ण जिस में सारा संसार निहित है गर्भ में 9 महीने तक संतान को रखकर अपने तन का सर्वस्व नवजीवन के निर्माण में लगा देती है संतान की भूख प्यास तकली

28

माँ

8 मई 2022
1
0
0

शान्त और बीहड मग में , एक छाया चलती जाती है। पलकों से छलके जो मोती , हाँथों से मलती जाती है। सिंहिंन की भाँति रही जग में, जिस नन्हे बालक की खातिर। सिंह सदृश दहाड रहा , बन गया वही जग में शातिर।

---

किताब पढ़िए