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द्रौपदी

9 अप्रैल 2022

29 बार देखा गया 29

सभ्य सभा में हुआ आज एक अनर्थ भारी


अपनों के समक्ष अपनों से ही


लज्जित होती थी एक  नारी


थे पांच पति उस सभा बीच


पांचों के पांचों मौन रहें


यह कठिन कुठाराघात हृदय में


कोमल हृदया कैसे सहे


हे पिता पितामह चुप क्यों हो


कहां गया वह धर्म उपदेश


लज्जा न आती तनिक तुम्हें


देख मेरा विक्षिप्त वेश


हे दुर्योधन तू मत कर


ऐसा घृणित नीच यह कर्म


भ्रातवधू हूं मैं तेरी


क्या नहीं जानता इसका मर्म


दुःशासन ऐसा  कर्म न कर


तू ही इसका फल भोगेगा


तेरे लहू से धूलेंगे केश मेरे


जग सारा यह देखेगा


दुर्योधन यह साम्राज्य तेरा


क्षण में धूमिल हो जाएगा


भीष्म भी होंगे बाणों पर


वह समय जल्द ही आएगा


नष्ट होगा यह कौरव समाज


सबको मरते मैं देखूंगी


सबने देखा अपमान मेरा


मैं मेरी आंखें  सेकूंगी


पर प्राण नहीं  त्यागूंगी मैं


सब सर्वनाश अब देखूंगी


जिसने देखा अपमान मेरा


सबको मरते अब देखूंगी


थी सभा मौन ,संवेदनहीन


न किसी ने करुण पुकार सुनी


गिरिधर का ध्यानधरा क्षण में


हो अति कारुण ,होकर अति दीन


हे गिरिधर नटवर आओ


आ जाओ मुझे बचाने को 


जल्दी आओ मत देर करो


  है प्राण पखेरू जाने को


थे हाथ बंधे और  आंखें नम


नयनों में बेबस लाचारी


वस्त्रों के बीच खड़ी थी वह


वस्त्रों से लिपटी एक नारी


तब गिरिधर नटवर नागर ने


ऐसी माया फैलाई थी


ना वस्त्र हीन कर सका कोई


द्रोपदी की लाज बचाई थी


क्यों नारी इस निष्ठुर जग में


निजी संपत्ति मानी जाती है


क्यों पुरुषों पर ही आश्रित  वह


पुरुषों से जानी जाती है


क्यो हमें जरूरत केशव की


क्यों पुरुष हमारे संरक्षक


इतिहास विदित है इस जग में


यही हमारे थे  भक्षक


अब द्रोपदी ,ना ही सीता


बनना हमें स्वीकार नहीं


हम से ऐसी आशा का


जग को कोई अधिकार नहीं


लक्ष्मीबाई दुर्गा जैसी


हर बाला को आज सँवरना है


छू न सके परछाई कोई


निज तन में शक्ति भरना है।


भारती

भारती

बहुत ही बढ़िया

9 अप्रैल 2022

इन्दू गुप्ता

इन्दू गुप्ता

9 अप्रैल 2022

धन्यवाद भारती जी

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रचनाएँ
"मन के उद्गार"
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मन के उद्गार नामक इस पुस्तक में मैं ने, नारी, समाज ,भावनाओं, कुप्रथाओं को संदर्भ मे रख कर ।अपनी काव्य रचनाओं को संग्रहित किया है ।
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रहस्यमई मेकअप

23 अक्टूबर 2021
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2

<div>एक नकाब चेहरे पर</div><div> श्रृंगार का जो ओढतीं</div><div> सौंदर्य की नित नयी</div><

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बेटी की मां

23 अक्टूबर 2021
1
0
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<div>क्यों बेटे की मां इस जग में </div><div>हर पल सम्मानित होती है</div><div> जिसने बेटी क

3

गौरैया

23 अक्टूबर 2021
1
0
0

<div>मेरे घर के आंगन में कल</div><div> खेल रही थी गौरैया</div><div> मुझको ही तो बुला रही थ

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"बेटी की माँ"

19 दिसम्बर 2021
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1
2

<div align="left"><p dir="ltr">बेटे की माँ ही जग में, <br> क्यों सम्मानित होती है।<br> जिसने बेटी को

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मन के दरवाजे के पीछे

19 दिसम्बर 2021
1
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2

<div align="left"><p dir="ltr">कितनी ही ख्वाहिशों को, <br> सहेज कर<br> परत दर परत<br> रख दिया है मैं

6

जिन्दगी मेरे घर आना

22 दिसम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr"> ओ जिंदगी मेरे घर आना,<br> अकारण ही मौत के घाट<br> उतार द

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यूं ही कट जाएगा सफर

22 दिसम्बर 2021
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1
2

<div align="left"><p dir="ltr">हाथों में मेरे तेरा हाथ हो, <br> सुख हो या द

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बादलों के पार

23 दिसम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr"> अंधकार भरे इस जंगल से, <br> ले चलो उस पार, <br> प्रियतम

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बादलों के पार

23 दिसम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr"> अंधकार भरे इस जंगल से, <br> ले चलो उस पार, <br> प्रियतम

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मैं स्त्री हूँ

23 दिसम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">""मैं स्त्री हूं"</p> <p dir="ltr">हां, मैं स्त्री हूं,<b

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जख्म

25 दिसम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">जिंदगी बड़ी जालिम<br> जीने नहीं देती<br> जहर भी खुशी से<br> पीने नहीं

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जख्म

25 दिसम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr">जिंदगी बड़ी जालिम<br> जीने नहीं देती<br> जहर भी खुशी से<br> पीने नहीं

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"शापित चाँद"

28 दिसम्बर 2021
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0

<div align="left"><p dir="ltr">" शालिनी रसोई के काम निपटा कर जब खाली हुई तो उसे एहसास हुआ कि आज गर्म

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ममता

29 जनवरी 2022
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आंखों में प्यार का सागर , सीने में दर्द समंदर लेकर भटक रही वह तन्हा सी अपनों में भी वह दर-दर कृषकाय निबल अबला सी वह अंतर्मन को धिक्कार रही करुण रुदन सुन बालक का सीने से ममता की धार बही वह ममता

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मेरा हाँथ थाम लो

17 मार्च 2022
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तन्हाइयों में,अकेले में गमों के मेले में खो ना जाऊं मैं कहीं जिन्दगी के झमेले में जीवन के हर मोड पे तुम मेरा नाम लो ऐ हमदम, ऐ हमराही मेरा हाँथ थाम लो । हो यौवन का प्यार या प्रौढा की तकर

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एक अजनबी

23 मार्च 2022
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वो अजनबी दिल की गहराइयों में अपना घर बना गया दूर जाते जाते न जाने कैसे पास आ गया तन्हाइयों में जिसको तलाशती थी मैं मन में उसकी सूरत तराशती थी मैं वह अक्स उभर कर

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"आईना"

23 मार्च 2022
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आईना जो शक्लें दिखाता हैरूह से कहां रूबरू करवाता है ?दिखती है केवल परछाइयां उसमेंअसलियत को वह भी छुपाता हैकाश कोई आईना हो जहां मेंजो मुझे सच बता सकेकौन हूँ,क्या पहचान है मेरीमुझे मेरी खूबी दिखा सकेदेख

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दूर कहीं इस दुनिया में

2 अप्रैल 2022
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दूर कहीं इस दुनिया में वो बेगाना एक रहता है बिन बोले ही वह समझे सब दिल मेरा यह कहता है थाम के उसका हाथ दुनिया को भूल जाऊं मैं बिना झिझक अपने दिल की हर बात उससे

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प्रियतम

2 अप्रैल 2022
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अंधकार भरे इस जंगल से, ले चलो उस पार, प्रियतम ले चलो उस पारl वहां जहां संगम होता है, धरती और गगन का l वहां जहां मौसम होता है, खुशियों और चमन का l बादलों के पार, जहां न हो कोई बंधन, जहां

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जिन्दगी एक किताब है

4 अप्रैल 2022
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यह दुनिया खूबसूरत बेहिसाब है रंगों से भरी जिंदगी की एक किताब है कुछ गहरे, कुछ उजले, चटकीले रंग है कोई पृष्ठ जिंदगी के बेरंग है दुख से रंगा कोई पृष्ठ अंधकार सा किसी में खुशियां भी बेहिसाब ह

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आक्रोश स्वयं पर

5 अप्रैल 2022
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किस पर करे हम आक्रोश परिस्थितियों पर या स्वयं पर परिस्थितियां जो हमारे बस में न थी और खुद से लड़ने की मुझ में हिम्मत न थी पर अब समय आ गया है आक्रोश करने का खुद पर अपनी कुंठाओं पर अपनी कमजोरी पर औ

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नया आसमान

6 अप्रैल 2022
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जिंदगी रुक सी गई मंजर ठहर सा गया हैl दूर से जो दिख रहा, क्या वह नया आसमां है? क्या नयी हवा वहां, क्या नई उमंग है? जिंदगी को सजा दे फिर से, क्या वो नए रंग हैं? स्वप्न देखती रही स्वप्न देखती रही एक नए

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गुजरा हुआ पल

7 अप्रैल 2022
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वक्त के आगे तो सब कुछ छूट जाता है गुजरा हुआ पल कहां लौट के आता है जी लो जी भर के जिंदगी यारो यह प्यार भरा लम्हा हमेशा याद आता है वो गुजरा हुआ पल कहाँ लौट के आता है वह लड़ना झगड़ना वह रूठना मनाना छ

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झूठी शान

9 अप्रैल 2022
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कहते हम सब स्वतंत्र हैं, पर कितने परतंत्र रहे। कहते हम सब आगे बढे, पर कितने पीछे रहे। कहते अपनी सँस्कृति प्यारी, यहीं हमारी शान है। पर हो गए पश्चिम के दीवाने, उसपर बसती जान है। अपनी मनमोहक संस्कृति क

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द्रौपदी

9 अप्रैल 2022
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सभ्य सभा में हुआ आज एक अनर्थ भारी अपनों के समक्ष अपनों से ही लज्जित होती थी एक नारी थे पांच पति उस सभा बीच पांचों के पांचों मौन रहें यह कठिन कुठाराघात हृदय में कोमल हृदया कैसे सहे

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जिन्दगी कहाँ रुकतीं है

5 मई 2022
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दर्द और प्यास में अपनो की तलाश में जिन्दगी कहाँ रुकती है जीत और हार में नफरत और प्यार मे जिन्दगी कहाँ रूकती है वर्षा और बाढ में सूखे की मार में जिन्दगी कहाँ रुकती है चलती रहती है यह आखिरी साँस त

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माँ

8 मई 2022
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मां एक ऐसा शब्द जो स्वयं में ही पूर्ण जिस में सारा संसार निहित है गर्भ में 9 महीने तक संतान को रखकर अपने तन का सर्वस्व नवजीवन के निर्माण में लगा देती है संतान की भूख प्यास तकली

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माँ

8 मई 2022
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शान्त और बीहड मग में , एक छाया चलती जाती है। पलकों से छलके जो मोती , हाँथों से मलती जाती है। सिंहिंन की भाँति रही जग में, जिस नन्हे बालक की खातिर। सिंह सदृश दहाड रहा , बन गया वही जग में शातिर।

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