बेटे की माँ ही जग में,
क्यों सम्मानित होती है।
जिसने बेटी को जन्म दिया,
क्यों गम पलकों पर ढोती हैं।
क्यों बेटा ही इस जग में,
वंश भार को ढोता है ।
घर में यदि ना हो बेटा ,
तो क्यों समाज यह रोता है।
एक कोख में पले बढे ,
एक रक्त से रचे गये ।
ईश्वर नें भेद न किया तनिक ,
ये भेद समाज में गढे गये।
माँ को निज तन का टुकडा ,
प्राणों से प्यारा होता है ।
बेटी हो या हो बेटा ,
जीवन से न्यारा होता है।
आखों में आँसू लेकर क्यों ,
वह गर्भपात करवाती हैI
अपने तन के टुकड़े को,
वह टुकड़ों में कटवाती है l
ऐसी रूढ़ि परंपराओं से,
कैसे निकलेगा यह समाज l
कब तक बलि चढ़ाओगे,
प्रश्न पूछती हूं मैं आज l
कब तक बलि चढ़ाओगे,
प्रश्न पूछती हूं मैं आज l