शान्त और बीहड मग में ,
एक छाया चलती जाती है।
पलकों से छलके जो मोती ,
हाँथों से मलती जाती है।
सिंहिंन की भाँति रही जग में,
जिस नन्हे बालक की खातिर।
सिंह सदृश दहाड रहा ,
बन गया वही जग में शातिर।
गीले में सोकर जिस माँ ने,
सूखे में उसे सुलाया था।
घर में भी सुला न सका,
क्या बेटे का फर्ज निभाया था ?
कृशकाय, निबल, अबला सी वह ,
बीहड में चलती जाती है।
सुंदर जो स्वप्न संजोये थे ,
हाँथो से मलती जाती है ।